अधिकांश रोग हमारी स्वयं की गलतियों के परिणाम होते हैं। स्वास्थ्य का महत्त्व भी उस समय ज्ञात होता है जब व्यक्ति बीमार होता है। लेकिन यदि स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता, रखी जाए, सेहत की अहमियत को ध्यान में रखा जाए तो ऐसे अनेक कारणों से बचा जा सकता है जो अंततः रोगकारक बनते हैं।
रोग अपने शुरुआती दौर में प्रायः घातक नहीं होते लेकिन उपेक्षा से बाद में वे जटिल बनते चले जाते हैं। उदाहरण के लिए, कब्ज जैसा मामूली सा रोग भी हमारी लापरवाही का परिणाम होता है। हालांकि कब्ज अपनी प्रारम्भिक अवस्था में बिना हानि पहुंचाए सामान्य उपचारों से मिट जाता है लेकिन यदि लापरवाही बरती जाए तब धीरे-धीरे यह अन्य रोगों का कारण भी बन सकता है। यही हाल अन्य रोगों का भी है।
वास्तव में स्वस्थ रहने के लिए औषधियों की उतनी आवश्यकता नहीं रहती, जितनी हमारी दिनचर्या और हमारा खान-पान। फिर भी वर्तमान की जीवन-शैली के चलते घर-परिवारों में स्वास्थ्य संबंधी छोटी-मोटी परेशानियां आती रहती हैं और हमारे कदम फौरन चिकित्सक की ओर बढ़ जाते हैं। प्रस्तुत पुस्तक इसी दिशा में आयुर्वेद निष्णात डॉ. कला कासलीवाल के अनुभवों का प्रतिफल है। इस पुस्तक में बड़ी सरल भाषा में अनेक रोगों के सरल उपचार बताए गए हैं। इनमें जहां व्रत-उपवास का हमारे स्वास्थ्य के साथ संबंध, ऋतुचर्या के बारे में चर्चा की गई है, वहीं इनमें निद्रा, मधुमेह, रक्तचाप, बुखार, खांसी, जुकाम, मलेरिया, कब्ज, दस्त, अनिद्रा, मधुमेह, चेहरे के रोग, पेट की वायु, कमर दर्द के अलावा अन्य अनेक रोगों के बारे में बताया गया है और इनके प्राकृतिक रूप से सरल उपचार बताए गए हैं। विभिन्न रोगों के उपचार में उपयोग आने वाली अधिकांशतः सामग्री प्रायः घरों में ही उपलब्ध हो जाती हैं लेकिन जानकारी के अभाव में अधिकांश लोग इनका उपयोग नहीं कर पाते हैं। इस पुस्तक में कुछ ऐसी ही जानकारियों का समावेश है।
पत्रिका प्रकाशन की स्वास्थ्य-श्रृंखला में प्रकाशित श्रेष्ठ पुस्तकों की कड़ी में 'रोगों के सरल उपचार' जनसाधारण की, आयुर्वेद की ओर चेतना जागरण में सहायक होगी तथा इसमें वर्णित प्रयोगों से अवश्य ही पाठक लाभान्वित होंगे, ऐसा हमारा विश्वास है।
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