सम्पूर्ण देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। आज़ादी का अमृत महोत्सव प्रगतिशील भारत के आज़ादी के 75 वर्ष पूरे होने और यहाँ के लोगों की संस्कृति और उपलब्धियों के गौरवशाली इतिहास को याद करने और जश्न मनाने के लिये भारत सरकार की ओर से की जाने वाली एक पहल है। भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा दांडी यात्रा की 91वीं वर्षगांठ के अवसर पर 12 मार्च 2021 से 15 अगस्त 2022 के मध्य चलने वाले 75 सप्ताह के अमृत महोत्सव का प्रारंभ किया गया था जो 15 अगस्त 2023 को अपनी पूर्णता को प्राप्त हुआ।
इस आज़ादी के अमृत महोत्सव को मनाने के उद्देश्य से भारतीय इतिहास संकलन समिति छत्तीसगढ़ प्रांत के द्वारा दिनांक 06-08 अगस्त 2022 को "स्व" का संघर्ष स्वाधीनता आन्दोलन के विशेष संदर्भ में" विषय पर तीन दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन रायपुर में किया गया था। इस संगोष्ठी में 165 शोध पत्र प्राप्त हुये थे जिसमें से 75 उत्कृष्ठ शोध पत्रों को प्रकाशन हेतु सम्पादकों द्वारा चयनित किया गया है चयनित शोध पत्रों में स्वाधीनता आन्दोलन से जुड़े नायक-नायिकाओं संस्थाओं आदि से सम्बन्धित लेखों को विशेष रूप से प्रकाशित किया जा रहा है यह पुस्तक स्वाधीनता आन्दोलन के विविध पक्षों पर शोध करने वाले अध्येताओं के लिये विशेष रूप से उपयोगी होगी जो उनके शोध को नवीन दिशा प्रदान करेगी।
प्रो. सच्चिदानंद शुक्ल का जन्म सन् 1967 में वाराणसी (उ.प्र.) में हुआ था। आपने अपनी शिक्षा M.Sc. एवं Ph.D भौतिकशास्त्र में डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या, उत्तर प्रदेश से पूर्ण किया, उसके पश्चात आपने लगभग 32 वर्षों से डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या में प्राध्यापक के रूप में अपनी सेवाएं देते हुए महत्वपूर्ण दायित्वों यथा प्रति कुलपति, कुलसचिव, कार्य परिषद् सदस्य, विभागाध्यक्ष भौतिक विज्ञान आदि का निर्वहन किया। आपके द्वारा 07 पुस्तकों का लेखन 126 शोध पत्रों का प्रकाशन, 18 उत्कृष्ट समाचार पत्रों में आलेखों का प्रकाशन तथा 30 से अधिक अन्तरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय सेमिनारों में शोध पत्रों का वाचन किया जा चुका है। आपके कुशल निर्देशन में 15 छात्रों ने अपना शोध कार्य पूर्ण किया है। आपको 06 प्रतिष्ठित संस्थाओं के द्वारा अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका हैं। वर्तमान में आप पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर, (छत्तीसगढ़) में कुलपति हैं।
डॉ. नितेश कुमार मिश्र का जन्म 15 जुलाई 1983 को टाण्डा, जिला अम्बेडकर नगर उत्तर प्रदेश में हुआ था। आपने स्नातक इलाहाबाद विश्वविद्यालय, परास्नातक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग से पूर्ण किया तथा अपनी Ph.D जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर मध्य प्रदेश से 2014 में प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग से पूर्ण किया। आप प्राध्यापक के रूप में 15 वर्षों से सेवा में हैं। आपके द्वारा 52 शोध पत्रों का प्रकाशन विविध शोध पत्रिकाओं में किया गया है तथा आपने 56 राष्ट्रीय तथा 8 अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया है, आप 4 विश्वविद्यालयों के अध्ययन मण्डल के सदस्य हैं आपको ICHR, ICSSR, DST, DMF से प्रोजेक्ट प्राप्त हो चुके है। आपने परियोजना निदेशक के रूप में 2 प्रोजेक्ट पूर्ण किया है तथा वर्तमान में आप 2 मेजर प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहे हैं। आपके संयोजकत्व में 2 अन्तरराष्ट्रीय सेमीनार तथा 4 राष्ट्रीय कार्यशालाओं का आयोजन सकुशल किया जा चुका है आपके निर्देशन में 3 छात्रों ने अपना शोध कार्य पूर्ण किया है तथा वर्तमान में पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व अध्ययनशाला में वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं।
भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी द्वारा दांडी यात्रा की 91वीं वर्षगांठ के अवसर पर 12 मार्च 2021 से 15 अगस्त 2022 के मध्य चलने वाले 75 सप्ताह के 'अमृत महोत्सव' का प्रारंभ किया गया था, जिसका परिपाक 15 अगस्त 2023 को हुआ। प्रधानमंत्री महोदय ने 12 मार्च के अपने भाषण में यजुर्वेद के रुद्राध्याय के मंत्र 'मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्' का उल्लेख किया, जिसका अभिप्राय है- मृत्यु से मुक्त कर अमृत अर्थात् अमरता की ओर प्रशस्त करो। 'आजादी के अमृत महोत्सव की संकल्पना इसी दृष्टि से की गई थी कि विगत दशकों के भटकाव से निकलकर अमृत की ओर जाने का मार्ग प्रशस्त हो।
स्वाभाविक प्रश्न है कि यह मृत्यु, विष, दुख, विषाद क्या है तथा अमृत का मार्ग कौन सा है? इस प्रश्न के समाधान के लिए स्वाधीनता के इतिहास का सिंहावलोकन अपरिहार्य है। एक बात और विचारणीय है कि वह कौन सा भाव था जिसने ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ संघर्ष में हमारे क्रांतिवीरों को, हमारे राष्ट्रीय नेताओं को आत्माहुति देने की प्रेरणा दी? यह बड़ा और प्रासंगिक प्रश्न है कि क्या केवल राजनीतिक सत्ता और ताकत वापस प्राप्त कर लेने की इच्छा ने बड़ी संख्या में हमारे क्रांति नायकों को अपना सर्वस्व लुटाने के लिए विवश कर दिया? वास्तव में जब आजादी के दीवानों ने मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व अर्पित किया, तो उन्होंने केवल एक ही स्वप्न देखा- 'स्व' के पुनरुत्थान का। भारत में आक्रांताओं के आने के बाद जिस एक तत्व ने देश के कोने-कोने में क्रांति की मशाल जलाई, अपना सब कुछ आहूत करते हुए संघर्ष की प्रेरणा दी और नए-नए अभियानों को जन्म दिया, वह वास्तव में अपने 'स्व' की ही रक्षा करने के हमारे चरम प्रयास थे। ब्रिटिश दमन, यातना और शोषण, चाहे वह राजनीतिक स्तर पर हो, आर्थिक स्तर पर या सांस्कृतिक स्तर पर, उनका एक ही लक्ष्य था- भारतीयों में 'स्व' के प्रति आग्रह की समाप्ति। इसके विपरीत भारतीय स्वाधीनता संघर्ष केवल इस 'स्व' की पुनर्स्थापना के लिए किया जाने वाला चरम प्रयास था। पूरा स्वाधीनता संघर्ष, केवल राजनीतिक और आर्थिक दमन से स्वतंत्र होने का हमारा संघर्ष नहीं था, बल्कि हमारे 'स्वत्व' और हमारी मूल पहचान को ही पुनर्स्थापित करने का संघर्ष था। उन क्रांतिवीरों ने आत्माहुति करते हुए जिस भारत की संकल्पना की, उसमें स्व संस्कृति का पुनरुत्थान, स्वभाषा, स्व शिक्षा प्रणाली, स्व राजनीतिक व्यवस्था और स्व समाज व्यवस्था आदि का ही स्थान था। इस पूरी संकल्पना में यूरोपीय चश्मे की ना कोई आवश्यकता थी, न जगह।
किंतु दुर्भाग्य से आजादी के बाद इस तथ्य को लेकर हम भटकाव की ओर चले गए, एक तरफ तो हमने विभाजन की त्रासदी झेली, कृत्रिम रूप से हमारी मातृभूमि को काटकर इसके टुकड़े कर दिए गए। इसके समानांतर जो लोग उस समय सत्तासीन हुए, शायद उनमें उस राष्ट्र भाव का अभाव था, जिससे कोई भी राष्ट्र या समाज रस पाता है, स्वयं पर गर्व करता है तथा अपनी परंपराओं, संस्कृति भाषा, इतिहास और अपनी थाती पर दृढ़ रहता है।
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