| Specifications |
| Publisher: Bharatiya Jnanpith, New Delhi | |
| Author Veersagar Jain | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 187 | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 9.00x6.00 inch | |
| Weight 310 gm | |
| Edition: 2019 | |
| ISBN: 9789326354936 | |
| HBX967 |
| Delivery and Return Policies |
| Usually ships in 3 days | |
| Returns and Exchanges accepted within 7 days | |
| Free Delivery |
'तत्त्वार्थसूत्र' जैनदर्शन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसे हम एक प्रकार से जैनदर्शन के प्रायः सभी विषयों और ग्रन्थों का आधारभूत ग्रन्थ भी कह सकते हैं, क्योंकि इसमें उन सभी के बीज या संकेत उपलब्ध हो जाते हैं। जैन धर्म में आदिकाल से आज तक अनेक उपसम्प्रदाय भी बन चुके हैं, परन्तु यह अत्यधिक हर्ष व आश्चर्य का विषय है कि 'तत्त्वार्थसूत्र' उन सभी को श्रद्धापूर्वक मान्य है। इसकी प्रामाणिकता के प्रति किसी भी सम्प्रदाय को कोई सन्देह नहीं है। जिस प्रकार 'णमोकार मन्त्र' सभी जैनों को एकमत से श्रद्धासहित स्वीकार है, 'तत्त्वार्थसूत्र' भी सभी जैनों को एक जैसी श्रद्धा-सहित स्वीकार है। 'तत्त्वार्थसूत्र' के समान सर्वमान्य ग्रन्थ जैनों में भी सम्भवतः दूसरा कोई नहीं।
संस्कृत भाषा और सूत्रात्मक शैली में जैनदर्शन के सभी विषयों का शास्त्रीय ढंग से प्रतिपादन करने के कारण 'तत्त्वार्थसूत्र' का स्थान सम्पूर्ण भारतीय वाङ्मय में अनूठा माना जाता है। अन्य दर्शनों के छात्र-अध्यापक भी प्रायः इसके अध्ययन से ही जैनदर्शन का ज्ञान प्राप्त करते हैं।
1. नामकरण तत्त्वार्थसूत्र के दो नाम प्रचलित हैं- 1. तत्त्वार्थसूत्र, और 2. मोक्षशास्त्र ।
यद्यपि इसका मूल नाम 'तत्त्वार्थसूत्र' ही प्रतीत होता है, परन्तु कहीं-कहीं इसे 'मोक्षशास्त्र' भी कहा गया है।
'मोक्षशास्त्र' नाम का कारण यह प्रतीत होता है कि इस शास्त्र में मोक्ष एवं मोक्षमार्ग का वर्णन किया गया है। अथवा इस शास्त्र का प्रारम्भ 'मोक्ष' शब्द से होता है। ऐसे प्रयोग अन्यत्र भी बहुतायत से प्राप्त होते हैं। जैसे-
1. भक्तामर स्तोत्र (ऋषभदेव स्तोत्र) को 'भक्तामर स्तोत्र' इसीलिए कहते हैं, क्योंकि उसका प्रारम्भ 'भक्तामर' शब्द से होता है।
2. देवागम-स्तोत्र (आप्तमीमांसा) को 'देवागम-स्तोत्र' इसीलिए कहते हैं, क्योंकि उसका प्रारम्भ 'देवागम' शब्द से होता है।
3. कल्याणमन्दिर-स्तोत्र को 'कल्याणमन्दिर-स्तोत्र' इसीलिए कहते हैं क्योंकि उसका प्रारम्भ 'कल्याणमन्दिर' शब्द से होता है।
इसी प्रकार के और भी अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं।
इसके 'तत्त्वार्थसूत्र' नाम का कारण यह है कि इसमें तत्त्वार्थ का सूत्र शैली में वर्णन किया गया है। तत्त्वार्थ सात हैं-जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष। जीव के मोक्ष एवं मोक्षमार्ग-हेतुक इन सात तत्त्वों को जानना अत्यन्त आवश्यक है, अतः इन्हें प्रयोजनभूत तत्त्व भी कहते हैं। 'तत्त्वार्थसूत्र' में इन्हीं 7 तत्त्वार्थों का कुल मिलाकर 10 अध्यायों में वर्णन किया गया है। यथा-
प्रथम से चतुर्थ अध्याय तक जीव तत्त्व का वर्णन है।
Send as free online greeting card