'तिनके की कलाकृतियाँ' मेरी कविता संग्रह की पिटारी है। जिसका आशय हमने हौसले के पंछी बया के सुन्दर घोंसले से लिया है। मैंने अपनी दृष्टि सभी ओर दौड़ायी किन्तु ऐसी सुन्दर कलाकृतियाँ कहीं नहीं पायी। मैंने सोचा भी नहीं था कि जिस बया पंछी के जीवन से जुड़े घोसले पर मेरी लेखनी कविता उगा रही है वही कविता मेरी कविता की पिटारी की शीर्षक होगी ।
बया पंछी तिनके जुटाता हजार चोंच से जैसा घोंसला की आकृति बना लेता है शायद ही इस दुनिया में आदमी बना पायेगा। नकल की प्रवृतियाँ तो यहाँ काफी पायी जाती है। कोई हिरण का तस्वीर खींच कर बेचता है तो कोई हल जोतता किसान का । और कोई सौदा करता है बया पंछी के घोसले का चित्र उकेर कर। इतना छोटा पंछी और इतनी बड़ी कलाकृति। धन्य है यह पंछी ।
आदमी तो हिरण का शिकार कर डालता है किसान को देता है तकलीफ और बया पंछी जैसे छोटे से पंछी को भी मारकर कर जाता है भक्षण। क्या हर जीव उसके भक्षण की सूची में शामिल है। एक ओर किसान को तकलीफ तो दूसरी ओर जीवन के आवश्यक सामग्रियों की मूल्य वृद्धि में तनिक नहीं संकोच। कला कला है कला में सौंदर्य है कला में जिंदगी की सुंदर झाँकी है तो फिर उससे छेड़ छाड़ क्यों? दानवी प्रवृत्तियाँ क्यों हावी हैं आदमी पर? बातें दुधारी क्यों हैं? एक तरफ कला बचाओ और दूसरी तरफ नकाब पहन कर कला मिटाओ।
भारतीय आचार्यों ने साहित्य की विभिन्न विधाओं में जीवन दर्शन/रसादि का जो निरूपण किया है; वह निरूपण क्या मात्र पुस्तक के पन्नों तक के लिए किया है ? व्यस्तता की जिंदगी साहित्य से आदमी को जुदा करती जा रही है और आदमी की दृष्टि इस ओर जाती तो है किन्तु अहमियत नहीं देती है वह। ठीक वैसे ही जैसे बच्चें, बूढ़े माता-पिता को अहमियत नहीं देते। बूढ़े माँ और बाप अपने बेटे की नौकरी के जीवन में कहीं आये तो नौकरानी/नौकर की संज्ञा से अलंकृत अर्थात
अपमानित होते हुए अपनी औलाद से उपेक्षा का जखम लिये गाँव लौटते हैं। ऐसे बेटे के बेटे और बेटियाँ अंग्रेजी स्कूल का छात्र/छात्रा होते हैं। हिंदी उनके घर की दासी सी लगती है। जब माँ और पिता नहीं टिक पाते तो भला और कौन ठहर पायेगा उनके यहाँ। और गँवायेगा अपनी प्रतिष्ठा ।
हिंदी साहित्य की गरिमा गयी नहीं है बढ़ी है। गयी है तो उनके यहाँ से गयी है जो वास्तविकता की नहीं बल्कि नकल और बिना अक्ल की जिंदगी जीते हैं। जिनके माँ और बाप जिनसे नौकरानी/नौकर की संज्ञा पाकर गाँव लौटते हैं। हिंदी में आज धड़ल्ले से अन्य भाषाओं से अनुवाद कार्य हो रहे हैं और अन्य भाषाओं में हिंदी का अनुवाद कार्य।
मुझे उम्मीद ही नहीं बल्कि पूर्णरूपेण विश्वास है कि हिंदी और भी प्रगति करेगी, बलवती होगी और मेरी 'तिनके की कलाकृतियाँ' भी अपनायी जायेंगी।
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