मातृभाषा के प्रति सम्मान एवं अनुराग समाज की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। मातृभाषा जहाँ एक ओर अभिव्यक्ति एवं गूढ़तम विषयो/विचारों को समझने-समझाने का महज माध्यम है, वहीं दूसरी ओर इसमें सृजनशीलता की अपार सम्भावनाएँ जुड़ी होती हैं। शिक्षाविदो की भी यही मान्यता रही है है कि अध्ययन, अध्यापन और ज्ञानार्जन का सबसे सशक्त माध्यम मातृभाषा ही है। इसीलिए पाँच दशक पूर्व भारतीय संसद ने यह संकल्प पारित किया कि देश में उच्चस्तर तक की शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से सुलभ कराई जाए। इस उद्देश्य की दृष्टि से विभिन्न राज्यों में हिन्दी ग्रन्थ अकादमियों एवं विश्वविद्यालय पाठ्यपुस्तक बोर्डों की स्थापना 1970 में की गई।
इसके बावजूद कि हिन्दी देश की राष्ट्रभाषा है, देश में में सर्वाधिक लोग हिन्दीभाषी है. पिछले चार-पाँच दशकों में इस भाषा में विश्व स्तर का साहित्य रचा गया है, बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम से सम्बन्धित विभिन्न विषयों की अनेक पुस्तकें के लिखी गई हैं फिर भी मेरा मानना है कि इस दिशा में अभी भी बहुत कुछ किया जाना शेष है। आप सहमत होंगे कि अपनी भाषा और संस्कृति को लेकर हिन्दी में अनुराग भाव अपेक्षाकृत कम है मेरा मानना है कि प्रदेश में उच्च शिक्षा से जुड़े प्रबुद्धजनो का यह विशेष दायित्व बनता है कि वे इस स्थिति मे बदलाव के संवाहक बनें। इस हेतु हिन्दी ग्रंथ अकादमी ग्रन्थ निर्माण एवं प्रकाशन का जो कार्य कर रही हैं, उसमे, हर संभव सहयोग दें, तथा अकादमी की पुस्तकों को बढ़ावा दें। यह इसलिए भी कि अब स्नातकोत्तर स्तर पर भी हिन्दी माध्यम वाले विद्यार्थियों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है, जिनकी पाठ्य सामग्री से जुड़ी आवश्यकता की पूर्ति अकादमी को करना है। आप सभी प्राध्यापकों के सक्रिय लेखकीय सहयोग से ही अकादमी यह लक्ष्य प्राप्त कर सकती है।
आज विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विस्मयकारी गति से विकास हो रहा है, उच्च शिक्षा क्षेत्र में नवीन विषय जुड़ रहे है और अंतरानुशासन वाले विषयों का समावेश हो रहा है। ऐसी स्थिति में और भी आवश्यक हो जाता है कि इन परिवर्तनों को दृष्टिगत रखते हुए ग्रन्थों के लेखन-प्रकाशन के कार्य को और अधिक तेजी से आगे बढ़ाया जाये।
उच्च शिक्षा विभाग के अन्तर्गत कार्यरत मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी की कार्य उपलब्धियों को समूचे देश में स्वीकारा गया है। इस स्थिति को बनाये रखने के लिए मैं चाहती हूँ कि प्रदेश के सभी अध्यापक अकादमी की पुस्तकों को अपना संबल एवं सहयोग दें। साथ ही मेरी यह अपेक्षा भी है कि आप अपना रचनात्मक परामर्श भी दें। मेरा मानना है कि यह राष्ट्रभाषा हिन्दी के चहुमुखी विकास के पुनीत कार्य में अण्ना सार्थक अवदान होगा।
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