हिन्दी साहित्य के प्रख्यात लेखक, समालोचक एवं तत्वविवेचक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की प्रसिद्ध कृति 'त्रिवेणी' का प्रकाशन मेरे लिए गौरव की बात है। त्रिवेणी वह स्थान है जहाँ गंगा, यमुना सरस्वती इन तीनों नदियों का संगम होता है। इस कृति में भी भक्तिकाल की तीन धाराओं के रूप में जायसी, सूरदास और गोस्वामी तुलसीदास जी का संगम हुआ है। इसीलिए इस कृति का नाम 'त्रिवेणी' सार्थक एवं सोद्देश्य है। निर्गुण सूफी प्रेमकाव्यधारा के प्रतिष्ठित कवि मलिक मुहम्मद जायसी, सगुण भक्ति की कृष्ण काव्य धारा के प्रतिष्ठित कवि महात्मा सूरदास तथा सगुण भक्ति की रामकाव्यधारा के महानायक एवं महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी की कृतियों पर गहन चिन्तन एवं मनन के साथ समीक्षात्मक दृष्टि डाली गई है। यह शुक्ल जी के तीन समालोचनात्मक प्रबन्धों जायसी ग्रन्थावली की भूमिका, भ्रमरगीतसार की भूमिका और तुलसी ग्रन्थावली की भूमिका के विशिष्ट अंशों का संकलन है। तत्व निरूपण समालोचक का महत्त्वपूर्ण कार्य होता है जो इस कृति में आद्यन्त विद्यमान है।
इस कृति का सम्पादन दयानन्द महाविद्यालय वाराणसी के प्राचार्य श्री कृष्णानन्द जी ने किया है। उन्होंने 'जायसी ग्रन्थावली की भूमिका' से जायसी का काल एवं परिस्थिति, परम्परा और सम्प्रदाय, प्रेमगाथा की परम्परा, पद्मावत की कथावस्तु में काल्पनिकता एवं उसका ऐतिहासिक आधार, पद्मावत की प्रेमपद्धति, जायसी का वियोग वर्णन एवं जायसी का रहस्यवाद अंश उद्धृत किये हैं।' भ्रमरगीत सार' की भूमिका से सूरदास का काल एवं तत्कालीन परिस्थिति, परम्परा और सम्प्रदाय, काव्य पद्धति, काव्य के विशिष्ट गुण भाषा, भाव आदि, संयोग एवं वियोग वर्णन तथा कवि कर्म की विशेषताओं को सन्निविष्ट किया है। संक्षिप्त होने के कारण इस प्रबन्ध में अन्य प्रबन्धों की तरह पूर्वापर योजना नहीं है। इसमें एक ही विषय की बातें भिन्न-भिन्न स्थानों में आ गई हैं। 'तुलसी ग्रन्थावली की भूमिका' से तुलसी का शील निरूपण एवं पात्रों का चरित्र चित्रण प्रमुख रूप से उद्धृत किया गया है। इस प्रकार त्रिवेणी में जायसी, सूर, तुलसी के काव्यों की समालोचना प्रसिद्ध समालोचक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा की गई है।
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