| Specifications |
| Publisher: SARASWATAM PUBLICATION, BIHAR | |
| Author Ramanand Shukla | |
| Language: Sanskrit Text with Hindi Translation | |
| Pages: 70 | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 9x6 inch | |
| Weight 134 gm | |
| Edition: 2025 | |
| ISBN: 9788195383283 | |
| HBC346 |
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बृहज्ज्योतिषार्णव, फेत्कारिणीतन्त्र, मन्त्रमहोदधि तथा तन्त्रसारादि आगम-ग्रन्थों में श्रीमदुच्छिष्टचाण्डालिनी की उपासना का विधान- निरूपण किया गया है। यह सिद्धविद्या वाम-अघोर मार्ग से उपासित होने पर ही शीघ्र सर्व सिद्धिप्रदायक होती है, अन्यथा नहीं। सुमुखी देवी के नाम से भी इनकी उपासना की एक अपर विधा विख्यात है। वाम का अर्थ होता है- प्रशस्त, सुन्दर और दक्षिण का विपरीत। इसमें कुछ भी त्याज्य और तिरस्कार के योग्य नहीं होता। सब कुछ उस परमसत्ता की ही अभिव्यक्ति है। सर्वांश का सार सबमें और सब कुछ उसी का व्यापार है। यह सृष्टि-संसार, सम्पूर्ण पदार्थ उसी से रचित है, उसी के हम सब हैं। उसी की क्रीडा का विलास-विकास है- शक्तिः क्रीडाजगत्सर्वम्। वही आगमागार है, इसलिए तन्त्र का आरम्भ शिव-शिवा के संवाद-संलाप (प्रश्नोत्तर) से ही होता है।
चाण्डाल शिव हैं, उनकी पत्नी हैं चाण्डालिनी। यह सम्मोहन तथा संगीत की देवी भगवती मातङ्गी जी की भेद (अंगविद्या) हैं। मतङ्ग मुनि की कन्या मातङ्गी हैं। वस्तुतः वाणी-विलास की सिद्धि प्रदान करने में इनका कोई विकल्प ही नहीं है। चाण्डाल रूप को प्राप्त शिवप्रिया होने के कारण इन्हें उच्छिष्ट चाण्डाली कहा जाता है। गृहस्थ-जीवन को सुखी बनाने, पुरुषार्थ-सिद्धि और वाग्विलास में पारंगत होने के लिए इनकी साधना श्रेयस्करी है। भगवती मातङ्गी 'तन्त्रमार्ग की सरस्वती' हैं। जो वैदिकों की सरस्वती के समान हैं।
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