सम्पूर्ण संसार एक गतिशील सत्ता है और संसार की तमाम व्यवस्थाएँ परिवर्तन की दौर से गुज़रती हैं, परंतु आज जो बदलाव हो रहा है वह पहले से कहीं अधिक तीव्र गति के साथ घटित हो रहा है। आज समय बहुत तेज़ी से बदल रहा है और बदलते हुए समय के यथार्थ के परिप्रेक्ष्य में सामाजिक स्थितियों का विघटन हो रहा है। इसमें आस्थाएँ, आकांक्षाएँ, मूल्य और मान्यताएँ सभी तेज़ी से बदल रहे हैं। स्थितियों के इस तरह के बदलाव का मूल कारण है- भूमंडलीकरण । आज सारी दुनिया को एक जैसा बनाने की बात की जा रही है, संसार भर में एकरूपता लाने की बात हो रही है, परन्तु यह कोई नयी चीज नहीं है। इसकी जड़ें बहुत पहले से ही भारतीय वाङ्मय में विद्यमान हैं और अब तक कायम भी हैं। इस संदर्भ में 'हितोपदेश' नामक नीतिशास्त्र में कहा गया है- "अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानाम् तु वसुधैव कुटुम्बकम् अर्थात् अपने और पराये का विचार तो सिर्फ निकृष्ट हृदय वाले मनुष्य ही करते हैं। उदार चरित्र वाले व्यक्ति तो संपूर्ण वसुधा को एक परिवार की दृष्टि से देखते हैं और संसार के सभी मनुष्यों के प्रति कौटुंबिक भाव रखते हैं। यही है प्राचीन भारतीय संस्कृति का वह उदात्त विचार, जो विश्व के तमाम लोगों को एक परिवार के रूप में देखने और रहने की प्रेरणा देता है। परंतु यह प्राचीन भारतीय विचारधारा ऐसा कभी नहीं सिखाती कि अपनी पहचान को विलीन कर दो, अपनी जड़ों को खो दो या अपनी संस्कृति की मर्यादा को भूल जाओ। इसमें सीधे-सीधे अपने स्वाभाविक स्वरूप को सहज रूप से बाकी दुनिया के साथ जुड़े रहने का संदेश निहित है। कहना न होगा कि भारतीय संस्कृति मानव कल्याण को सर्वोपरि मान्यता देती है, जिसमें सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय अर्थात् इसमें स्वहित की अपेक्षा परहित को श्रेयस्कर माना गया है। किसी भी सनातन रीति परंपरा में प्रार्थना के रूप में यह गाया भी जाता है कि "सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः। सर्वे भद्राणी पश्यंतु मा कश्यित् दुःखभाग् भवेत्' अर्थात सब लोग सुखी रहें, निरोग रहें, प्रत्येक एक दूसरे के साथ भद्र व्यवहार करें और संसार में कोई भी दुःखी ना रहें। इस तरह दिव्य-भाव्य शुभ कल्याणकारी भावना से भरे हमारी भारतीय सनातन परंपरा हैं। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि 'कृण्वंतोविश्वमार्यम् अर्थात् सारे संसार को संस्कारित कर श्रेष्ठ बनाने का प्रयास करना, कहने का तात्पर्य यह है कि स्वयं तो श्रेष्ठ बने, परंतु दूसरे को भी श्रेष्ठ बनाये। परंतु अर्वाचीन भूमंडलीकरण या वैश्वीकरण की अवधारण इससे बहुत अलग है एवं नए माव बोध पर आधारित आभासीय या भूलभुलैया जैसे है और इसमें अब एक नया विशेषण जुड़ गया है नव-उदारवादी भूमंडलीकरण, जो दुनिया के सारे देशों को मंडी में तब्दील कर देना चाहता है। एक ऐसी दुनिया, जो मंडी मात्र ही नहीं, अपितु उसका संचालन भी मंडी की आंतरिक ताकतों के द्वारा ही होता है। इस संदर्भमें देखा जाए तो वेदों में व्यक्त उपर्युक्त बातें व्यर्थ सिद्ध हो जाती हैं। नव-उदारवादी भूमंडलीकरण का दूर-दूर तक उदारता से या कल्याणकारी भावना से कोई लेना-देना नहीं है।
समकालीन रचनाकारों में हिंदी साहित्य के शिखर के रूप में उदय प्रकाश का नाम लिया जाता है। आप बहुआयामी, बहुमुखी, विलक्षण प्रतिभा के धनी-मानी हैं। आपका कृतित्व भी बहुआयामी है। वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य में आप स्वयं एक अवधारणा हैं। वैसे तो साहित्य में विभिन्न अवधारणाओं का समय-समय पर आवागमन होता रहता है, परंतु किन्हीं वैचारिकताओं का साहित्य पर गहरा असर पड़ता है। आधुनिक काल में ऐसी वैचारिकताओं में आधुनिकतावाद, मार्क्सवादा, संरचनावाद, मनोविश्लेषणवाद, अस्तित्ववाद, उत्तर आधुनिकतावाद, नव-मार्क्सवाद, उत्तर-संरचनावाद, नव-उपनिवेशवाद, भूमंडलीकरण आदि प्रमुख हैं, परंतु इनमें से भूमंडलीकरण एक ऐसी अवधारणा है, जो सबको अपने आप में समेटे हुए है। आज भूमंडलीकरण एक ऐसी अवधारणा या प्रवृत्ति का नाम है, जो सभी विचारधाराओं और अवधारणाओं को प्रभावित कर रही है। उदय प्रकाश का कथा-साहित्य : भूमंडलीकरण का परिप्रेक्ष्य विषय पर शोध कार्य करने के क्रम में उपर्युक्त विचारधाराओं और अवधारणाओं की सही पहचान समय के लिहाज से बहुत जरूरी है। इसी सिलसिले में उदय प्रकाश की रचनाओं का अध्ययन करते हुए यह शोध कार्य प्रस्तुत किया गया है। उक्त विषयक शोध-प्रबंध आठ अध्यायों में विभक्त है।
प्रथम अध्याय "समय के विपरीत उदय प्रकाश का व्यक्ति और कृतिकार" से संबंधित है। प्रथम चरण उदय प्रकाश का व्यक्तित्व के अंतर्गत रचनाकार का जन्म एवं परिचय, पारिवारिक पृष्ठभूमि, रचनाकार की साहित्य-सृजन के प्रति अभिरुचि तथा विभिन्न संस्थानों द्वारा दिया गया पुरस्कार और सम्मान आदि तथ्यों का संक्षिप्त विचार-विवेचन किया गया है। दूसरे चरण उदय प्रकाश का कृतित्व के अंतर्गत कवि के रूप में, कहानीकार के रूप में उदय प्रकाश की सृजनशीलता पर विचार एवं विश्लेषण किया गया है। उनकी अन्यान्य कृतियों पर उनकी विभिन्न पुस्तकें, अनुवाद कार्य, फिल्म और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में उनका महत्वपूर्ण योगदान, जीविका-उपार्जन हेतु विभिन्न समय विभिन्न दायित्वों का निर्वहन, अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियाँ, व्याख्यान और विभिन्न देशों की यात्राएँ आदि को विस्तार से समझने की प्रचेष्टा की गई है।
द्वितीय अध्याय "प्रवृत्तियों-सिद्धांतों के आइने में भूमंडलीकरण' से संबंधित है। भूमंडलीकरण को स्पष्ट करते हुए विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं के माध्यम से उसकी सम्यक विवेचना करने का प्रयास किया गया है। इसके साथ भूमंडलीकरण की विचारधाराओं से संबंधित विचारों एवं प्रवृत्तियों को स्पष्ट करते हुए विभिन्न विद्वानों द्वारा दिये गए विवेचनाओं के आधार पर परखा गया है। इसकी अवधारणा पर चर्चा करते हुए इसके षडयंत्रों पर व्यापक प्रकाश डाला गया है। साथ-साथ इसके भ्रामक चरित्र को भी विस्तार से समझने का प्रयत्न किया गया है। आज का जो समय है वह भूमंडलीकरण का है। उसका प्रभाव भारत पर पड़ना स्वाभाविक है, इस दृष्टि से भी परखने की चेष्टा की गई है। भूमंडलीकरण के इस दौर में किसी भी देश का अपना मौलिक यथार्थ नहीं रह गया है, इसकी भ्रामक षडयंत्र चारों ओर दिखाई पड़ता है और इसकी भ्रामक चाल सब देशों पर हावी है। इसी दृष्टि से इसे परखने की चेष्टा की गई है। इस क्रम में इसके साथ ही बदलते जीवन संदर्भ पर विस्तार से विचार और विश्लेषण किया गया है।
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