दर्शनशास्त्र एक ऐसा विषय है जो सारे विषयों का आधार कहलाता है। पूरी दुनिया ही इसकी विषयवस्तु है। यह दो ग्रीक शब्दों से बना है-Philos+sophia जिसका अर्थ होता है-प्रेम और ज्ञान। जहाँ philos का अर्थ ज्ञान, बुद्धिमता तथा sophia का अर्थ प्रेम, अनुराग या or Love होता है। इस तरह इसका शाब्दिक अर्थ Wisdom of Knowledge अथवा विद्या के प्रति अनुराग या ज्ञान होता है। दर्शनशास्त्र विषयों की खामियों को दूर कर उसे रोचक तथा तर्क पूर्ण बनाता है। किसी विषय की मौलिकता को समझने के लिए उस विषय के दर्शन को समझना जरूरी होता है।
परम्परागत विषयों में फिलॉसफी सबसे पुराना विषय माना जाता है।
इसका अर्थ होता है देखना या जिसके द्वारा देखा जा सके। यह कह सकते हैं कि दर्शन शास्त्र के द्वारा किसी चीज या विषय का असली रूप देखा जा सके। 'दृश्यते अनेन इति दर्शनम्'। फिर प्रश्न उठता है कि दर्शन शास्त्र क्या है? विश्व या जगत को उसकी सम्पूर्णता या समग्रता में देखना या समझना ही दर्शन शास्त्र है। दर्शनशास्त्र का बहुत ही व्यापक अर्थ है। इसमें विज्ञान, धर्म, कला संस्कृति, राजनीति, भाषा एवं साहित्य सभी विषय समाया हुआ है। यह एक दृष्टि प्रदान करता है, जो सम्पूर्ण विश्व में होने वाली घटनाओं एवं समस्याओं को बदलते हुए परिवेश में उसका वास्तविक समाधान प्रस्तुत करता है। विकास और विनाश की सोच अच्छे और बुरे समझ की सोंच हमें इससे मिलती है। यह हमें ऐच्छिक मान्यताओं के बारे में बताता है और मानव कल्याण के लिए प्रेरित करता है। आज लगभग सभी बड़ी-बड़ी संस्थाओं में विषय के साथ-साथ उसमें दर्शन शास्त्र को भी जोड़कर पढ़ाया जाता है, पढ़ाया जा रहा है, क्योंकि विषय की एकाग्रता के साथ-साथ उसमें ऐच्छिक क्रिया कलापों को भी समझा जा सकता है। यही वजह है कि आज दर्शन शास्त्र की मान्यता अपने आप में अन्य विषयों से अभिन्न है। दर्शन शाख का उद्देश्य किसी भी विषय सार को जानने का प्रयत्न करना है। यह मानव कल्याण के साथ-साथ विश्व कल्याण की बात करता है। मानव एवं मानव के बीच उत्पन्न हुए विभेद को मिटाता है।
भारतीय दर्शन में कुल नौ दार्शनिक, संम्प्रदाय हैं, जिनमें छः आस्तिक एवं तीन नास्तिक हैं। भारत वर्ष में आस्तिक और नास्तिक का आधार वेदों की प्रमाणिकता में विश्वास है। मनुः के अनुसार 'आस्तिको वेद प्रशंसकः' तथा 'नास्तिको वेद निन्दक' की संज्ञा दी गई है। इस आधार पर संख्या-योग, न्याय-वैशेषिक, मीमांसा-वेदान्त आस्तिक दर्शन हैं। चार्वाक-दर्शन, जैन-दर्शन एवं बुद्ध-दर्शन ये तीन नास्तिक दर्शन है। चार्वाक-दर्शन को नास्तिक शिरोमणि तक की उपाधि मिली है।
प्रायः सभी भारतीय मतों में ज्ञान मीमांसा के अन्तर्गत प्रमाणों के स्वरूप और संख्या पर विचार किया गया है। लेकिन न्याय दर्शन में प्रमाण विचार को प्रमुख स्थान दिया गया है, और न्याय दर्शन वर्णित प्रमाणों के स्वरूप को ही अन्य भारतीय दार्शनिक सामप्रदायों ने यथावत कुछ परिवर्तन के साथ स्वीकार किया है। भारतीय दर्शन में मुलतः प्रमुख छः प्रमाण है। 1. प्रत्यक्ष, 2. अनुमान, 3. उपमान, 4. शब्द, 5. अर्थापति एवं 6. अनुपलब्धि।
शब्द के स्वरूप और सृष्टि के संबंध में ईशा मसीह की तरह गुरूनानक मानते हैं कि उस शब्द से धरती, सूर्य, आकाश और तारे सभी की रचना हुई है। वह शब्द हर इंसान के अन्दर धुनंकार दे रहा है। गुंजायमान हो रहा है।
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