प्रस्तावना
ऐसा कहा जाता है कि किसी व्यक्ति की महानता का सच्चा पैमाना यह है कि भावी पीढ़ियों को उसकी परछाईं कितनी दूर तक प्रेरित करती है। इस मापदंड के अनुसार, किसी को भी इस बात से सहमत होना पड़ेगा कि श्री विनायक दामोदर सावरकर न केवल एक महान् राष्ट्रभक्त थे, बल्कि वे हमारे राष्ट्रीय दृष्टिकोण की धुरी भी थे, जिसने हमारे आज के भारत का आधार तैयार किया उस भारत का, जो हमारे राष्ट्र और समाज संबंध में विभिन्न वैकल्पिक नीतियों और विरोधाभासी विचारधाराओं को आजमाते हुए, उनसे सीखते हुए 70 साल बाद उभरकर सामने आया है। सावरकर परिवार का एकमात्र लक्ष्य था- एक स्वतंत्र, मजबूत और समृद्ध भारत और इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सावरकर परिवार ने अपना तन-मन-धन, सब समर्पित कर दिया। सावरकर बंधुओं- बाबाराव, विनायकराव और नारायणराव-ने राष्ट्र के लिए जो बलिदान दिए, आधुनिक इतिहास में उनके समतुल्य उदाहरण अत्यंत कम हैं। बड़े भाइयों बाबाराव और विनायकराव को राष्ट्र की खातिर दीर्घकालिक और जेल की अमानुषिक सजाओं का सामना करना पड़ा, कमर तोड़ श्रम और दिमाग की नसों में पिघला लोहा उड़ेल दिए जाने जैसे अपमान को सहना पड़ा। यह पुस्तक एक क्रांतिकारी सावरकर नहीं, बल्कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और स्वतंत्र भारत के भविष्य दृष्टा सावरकर को प्रस्तुत कर राष्ट्र की महान् सेवा करती है। राष्ट्र क्रांतिकारी सावरकर को जानता है, लेकिन भारत के भविष्य के सपने को रचनेवाले सावरकर को नहीं, जिनकी दृष्टि की आज विभाजनकारी ताकतों से लड़ने और तुष्टीकरण की ओर ले जा रही कमजोर विचारधाराओं की राजनीति को उखाड़ फेंकने के लिए अत्यधिक आवश्यकता है। ये ताकतें आज भी लगभग उतनी ही सक्रिय हैं, जितनी आजादी के पहले थीं और उस समय ये ताकतें देश का बँटवारा करने में कामयाब हो गई थीं। ये आज भी भारत को एक राष्ट्र के रूप में उभरने के मार्ग की अवरोधक बनी हुई हैं। वास्तविकता यह है कि (वीर सावरकर : जो भारत का विभाजन रोक सकते थे और उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा दृष्टि) उन दुर्लभ पुस्तकों में से एक है, जो भारत के विभाजन के वास्तविक कारणों की गहराई में डूबकर पड़ताल करती है, और साथ ही इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि यदि भारत ने कांग्रेस की तुष्टीकरण की राजनीति के खिलाफ सावरकर की बार-बार दोहराई गई चेतावनियों पर ध्यान दिया होता तो राष्ट्र-विभाजन को रोका जा सकता था। दुर्भाग्य से, सावरकर को स्वतंत्र भारत में भी उनका हक नहीं मिला। सावरकर ने स्वयं कभी कोई पुरस्कार या मान्यता नहीं चाही थी। सही बात तो यह है कि सावरकर मातृभूमि की सेवा करनेवाले निस्स्वार्थ तपस्वी थे। उन्हें और उनके जैसे अन्य लोगों को, जिन्हें अनजाने में या जानबूझकर भुला दिया गया, सावरकर को यह मान्यता प्रदान करने से एक आदर्श मार्ग स्थापित होता और आनेवाली पीढ़ियाँ उसका अनुसरण करतीं। साथ ही अगर सावरकर के बलिदान को पहचाना जाता तो हमें अपनी आजादी की कुछ तो कीमत समझ आती। वास्तविकता यह है कि सावरकर के मामले में इसका उलट हुआ। उन्हें एक सांप्रदायिक नेता के रूप में चित्रित कर दिया गया और उनके हिंदुत्व के सिद्धांत को एक अजीब, भेदभावकारी और नफरतपूर्ण बुराई करार दे दिया गया। महात्मा गांधी हत्याकांड षड्यंत्र में उन्हें फँसाने के जघन्य प्रयास किए गए। स्वतंत्र भारत में यह सब और इससे भी कहीं बहुत ज्यादा कुछ हुआ। यह सब उसी स्वतंत्र भारत में सावरकर के खिलाफ किया गया, जिसके लिए इस क्रांतिकारी ने अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया था। राजनैतिक प्रतिष्ठान, सत्ता खोने के डर के साथ-साथ अन्य अवांछित कारणों से कम्युनिस्ट, जो हर राष्ट्रीय चीज से नफरत करने के लिए जाने जाते हैं, उने साथ मिलकर सावरकर के विरुद्ध निम्न स्तर पर आ गए। सावरकर को नीचे गिराने के लिए वे दोनों मिलकर खुद इतने नीचे गिर गए। 'सावरकर से नफरत' वाले इस अभियान के पीछे के कारणों का पता लगाना मुश्किल नहीं है। सावरकर और उनकी दृष्टि अलगाववाद, धर्मांतरण और बहिष्कारवादी ताकतों के मार्ग की मुख्य बाधा थी, इसलिए इन विघटनकारी ताकतों ने सावरकर की छवि को विद्रूप करने के लिए अपने प्रयासों में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।
पुस्तक परिचय
यदि भारत अपनी स्वाधीनता के 75वें वर्ष की ओर देखता है तो वह देश के विभाजन के 75वें वर्ष की ओर भी देखता है। यह संभवतः बीसवीं शताब्दी की विकटतम मानव त्रासदी थी, जिसने बड़े पैमाने पर अभूतपूर्व हिंसा देखी; और इस हिंसा की प्रणेता वे इच्छुक पार्टियाँ थीं, जिन्होंने अपने राजनीतिक एवं विचारधारात्मक कारणों से उसे भड़काया था। विभाजन की ओर प्रवृत्त करनेवाले वास्तविक कारणों का विश्लेषण करें तो उसका पाठ भारत की एकता एवं अखंडता में निहित है, जिसका प्रमाण वीर सावरकर द्वारा विभाजन को रोकने के लिए किए गए अथक प्रयासों में मिलता है। तार्किक रूप से भारत की राष्ट्रीय अखंडता के महानतम प्रतीक सावरकर की ओर से भारत की सुरक्षा के प्रति जो चेतावनियाँ दी गई थीं, वे विगत सात दशकों में सत्य सिद्ध हुई हैं। 'वीर सावरकर' पुस्तक सावरकर जैसे तपोनिष्ठ चिंतक एवं भारत की सुरक्षा के जनक के उस पक्ष को प्रस्तुत करती है, जिससे भारत के विभाजन को रोका जा सकता था। इस पुस्तक में देश एवं उसकी नई पीढ़ी के समक्ष भारत विभाजन, जोकि तुष्टीकरण की राजनीति के कारण हुआ था, की सत्य कथा को प्रस्तुत करने एवं इतिहास को परिवर्तित करने की उर्वरा है। आज देश को एकजुट बनाए रखने के लिए सावरकरवादी दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता है।
लेखक परिचय
उदय माहुरकर भारत सरकार के पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त हैं। वह 'इंडिया टुडे' पत्रिका के वरिष्ठ उप-संपादक रहे; उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन पर दो पुस्तकें लिखी हैं। उन्हें सावरकर के राष्ट्रीय सुरक्षा दृष्टिकोण पर अभिनव वर्णन के विकास का श्रेय प्राप्त है। उनके पास यह सिद्ध करने के अकाट्य प्रमाण हैं कि सावरकर का हिंदुत्व अनिवार्यतः एक विशुद्ध राष्ट्रवाद है, जो 'राष्ट्र प्रथम' की सच्ची भावना पर आधारित है। उनका दृढ़ मत है कि सावरकर युग का आगमन हो चुका है।
चिरायु पंडित महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, वडोदरा में सिविल इंजीनियरिंग व्याख्याता तथा इस विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ लीडरशिप ऐंड गवर्नेस के संस्थापक समन्वयक हैं। वह राष्ट्रवादी विषयों पर एक कर्मठ अनुसंधानकर्ता हैं और सावरकर से संबंधित विषयों पर उनकी जबरदस्त पकड़ है।
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