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वो अक्सर याद आते हैं- Woh Aksar Yaad Aate Hain (Travel-Story of the Villages and Homes of Renowned Writers of Bihar)

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Specifications
Publisher: LITTLE BIRD PUBLICATIONS, DELHI
Author Ashwini Kumar Alok
Language: Hindi
Pages: 208 (With B/W Illustrations)
Cover: PAPERBACK
8.5x5.5 inch
Weight 260 gm
Edition: 2025
ISBN: 9789363067554
HBZ832
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Book Description

भूमिका

अश्विनी कुमार आलोक कर्मठ, मेधावी और अनवरत सर्जनारत एक समर्थ साहित्य-सेवी हैं। साहित्य की सेवा इन्होंने अनेक रूपों में की है। रचनाकार के रूप में, संपादक के रूप में, आलोचक के रूप में और आयोजक के रूप में भी।

एक रचनाकार के रूप में वे अपने समय से संवाद करते रहे हैं, एक संपादक के रूप में नयी रचनाधर्मिता को संरक्षित और परंपरा का पुनरीक्षण करते रहे हैं तथा एक आयोजक के रूप में अपनी जनोन्मुखता और उत्सवधर्मी मनोवृत्ति का प्रमाण देते रहे हैं। इनकी प्रस्तुत कृति 'वो अक्सर याद आते हैं' में ये सारे रूप एक साथ झलकते हैं, सारी भंगिमाएं एक साथ दिखाई देती हैं।

इस कृति में बीस मनीषियों के व्यक्तित्व कृतित्व का रेखांकन हुआ है और उनके संबंध में प्रचलित जनश्रुतियों और धारणाओं का परीक्षण भी। लेखक ने एक साथ लोक-यात्रा और भाव-यात्रा करते हुए तथ्यों की रचनात्मक प्रस्तुति की है। इसमें अपने समय के विलक्षण दार्शनिक और सनातन के वैशिष्ट्य के प्रखर प्रवक्ता पर अत्यंत सारगर्भित आलेख है। यह आलेख लेखक की पैनी और व्यापक शोधदृष्टि का साक्ष्य देता है। सनातन के मर्म को समझने की दृष्टि देनेवाले उदयनाचार्य का स्मरण और उनके महत्त्व का रेखांकन अत्यंत प्रासंगिक है। आज जब सनातन के पक्ष-विपक्ष में वाद-विवाद का दौर चल रहा है, तब हमें संवाद की ओर अग्रसर करता है यह आलेख। इसमें जनश्रुतियों का आधार भी है, स्थलों और तथ्यों का सर्वेक्षण भी और सार्थक संस्कृति विमर्श भी।

अपनी गीतात्मकता से लोक के उल्लास को जीवंत करनेवाले अभिनव जयदेव विद्यापति पर लेखक का आलेख लोक संस्कृति के सातत्य को प्रमाणित करता है। 'जहां-जहां पद युग धरई' शीर्षक के अंतर्गत लेखक ने अत्यंत रोचकता के साथ इस आलेख की शुरूआत की है। फणीश्वर नाथ रेणु की 'रसप्रिया' कहानी के प्रसंग के साथ प्रारंभ होकर यह आलेख मिथिला की लोक संस्कृति की झलक प्रस्तुत करता है और विद्यापति के कालजयी कृतित्व का सजीव रेखांकन भी। अनेक भ्रांत धारणाओं का निराकरण करते हुए लेखक ने प्रामाणिक तथ्यों के आधार पर विद्यापति के मूल्यांकन संबंधी कार्यों का विवरण दिया है और उनका पुनर्मूल्यांकन किया है। इस आलेख में निर्भात इतिहास-दृष्टि है और सम्मोहित करनेवाला रचनात्मक चातुर्य भी।

इस कृति में हिन्दी साहित्य, विशेषतः कथा-साहित्य में आंचलिकता को प्रतिष्ठित करनेवाले फणीश्वरनाथ रेणु पर ललित लेख है। इस लेख में लेखक ने रेणु के साहित्य में वर्णित अंचल की सृजन यात्रा की है, उनके चरित्रों का सीधा साक्षात्कार किया है। यात्रा और साक्षात्कार, खोज और मूल्यांकन ये सारी प्रवृत्तियों इस लेख में स्पष्ट दिखाई देती हैं। मिथिलांचल के ही अमर रचनाकार नागार्जुन के जन्म स्थल की यात्रा और वहाँ की मिट्टी और संस्कृति का उनके रचनाकर्म पर पड़नेवाले प्रभाव की पड़ताल में बौद्धिक आतंक नहीं, एक भाव की रचना-दृष्टि है। नागार्जुन लोकयात्री हैं, शास्त्र को अपनी लोकदृष्टि से अनुमोदित करनेवाले रचनासिद्ध आचार्य। शास्त्र को लोक में पचा लेनेवाले इस जनकवि की शक्ति को, रचनात्मकता के विविध आयामों को लेखक ने अपने यात्रा-लेख में पूर्णतः स्पष्ट कर दिया है। इस यात्रा लेखक संग्रह में आरसी प्रसाद सिंह, रामधारी सिंह 'दिनकर', प्रोफेसर सुरेन्द्र झा 'सुमन', रामवृक्ष बेनीपुरी, पंडित जनार्दन प्रसाद झा द्विज, केदारनाथ मिश्र प्रभात, अनूपलाल मंडल, डॉ. लक्ष्मीनारायण 'सुधांशु, आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री, राजकमल चौधरी, रामगोपाल शर्मा 'रुद्र', रामेश्वर सिंह नटवर, बाबू देवकीनंदन खत्री, आचार्य शिवपूजन सहाय और उदयनाचार्य हैं। उनका जनपद है, उनका रचनात्मक परिदृश्य है और उनका प्रेरक परिवेश भी। लेखक ने स्वयं रचनाकारों के गाँव और जनपद की यात्रा की है, उनके परिजनों से बातचीत करते हुए मार्मिक प्रसंगों की खोज की है। उनके संबंध में प्रचलित धारणाओं का सतर्क परीक्षण किया है, नये तथ्यों का प्रामाणिक अन्वेषण किया है।

ये सारे युग और रचना पुरुष दिवंगत हो चुके हैं और अपनी स्मृतियों और कृतियों में ही जीवंत हैं। इन सबका संबंध उत्तर बिहार से है। लेखक ने वर्तमान के माध्यम से अतीत की यात्रा की है। इस यात्रा का लक्ष्य है अपने पूर्वजों की देन को व्यापक समाज में अग्रेषित करना। निस्संदेह परंपरा से पाथेय लेकर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने का यह प्रयत्न अत्यंत महत्त्वपूर्ण है और ऐतिहासिक भी। दिनकर ने लिखा है "जब भी अतीत में जाता हूँ, मुर्दों को नहीं जिलाता हूँ, पीछे हटकर फेंकता वाण, जिससे कंपित हो वर्तमान।

इस कृति के सारे यात्रा-लेख अपनी लीछम में गरिमा को समेट लेते हैं, अतीत के माध्यम से वर्तमान को कंपित करते हैं, एक में अनेक विधाओं को सिद्ध कर लेते हैं और आज की पीढ़ी को दिशाबोध कराते हैं। इनका लालित्य मुग्ध करता है, इनमें वर्णित प्रसंग दृष्टि को व्यापक बनाते हैं और उनका प्रभाव हमारे मर्म को स्पंदित करता है।

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