आज दुनिया में कोई भी देश ऐसा नहीं है जो अपने देश की आधी आबादी को हाशिये पर रखकर विकास के शीर्ष पर पहुँचा हो। महिलाओं को विकास की मुख्य धारा से अलग रखकर किसी भी समाज, राष्ट्र, सभ्यता व मानवता के उत्थान की कल्पना नहीं की जा सकती। महात्मा गांधी ने कहा था कि "महिलाओं और पुरुषों की स्थिति एक समान है परन्तु एक जैसी नहीं। एक दूसरे के पूरक वे अद्वितीय युगल है जो एक दूसरे की सहायता करते हैं ताकि एक के बिना दूसरे के अस्तित्व की कल्पना भी न की जा सके। इन तथ्यों की तार्किक परिणति यह है कि ऐसी कोई भी वस्तु, जो दोनों में से किसी एक की स्थिति को कष्ट पहुँचाती है, दोनों को समान रूप से नष्ट कर देगी।" इतना तो तय है कि जहाँ भी स्त्री के सम्मान को चोट पहुँची है वहाँ विकास नहीं विनाश ही हुआ है।
नारी संघर्ष की कहानी सदियों से चली आ रही है। इक्कीसवीं सदी में महिला आन्दोलन, नारी विमर्श, महिला सशक्तिकरण और महिला मुक्ति आन्दोलन जैसे नारे अपने अस्तित्व, अस्मिता व अधिकारों की प्राप्ति के लिये विश्व भर की महिलाओं के संघर्ष का प्रतीक बन चुके हैं। सदियों पहले अफ्रीकी महिलाओं के समानाधिकार की जंग का प्रतीक बन चुकी अधोलिखित पक्तियाँ आधुनिक सदी की नारी की आवाज बन गयी है :-
"मेरी बस एक ही गुजारिश है तुम मुझे पैसे मत दो,
बेशक मुझे उनकी जरूरत है
मुझे अच्छा खाना भी मत दो,
मेरी बस एक ही गुजारिश है कि मेरा रास्ता मत रोको।"
महिला मुक्ति संघर्ष, महिला समानाधिकार और महिला मानवाधिकार की यह लड़ाई सर्वप्रथम आम महिलाओं द्वारा शुरू की गई थी। प्राचीन ग्रीस में लैसिट्राय नाम की एक महिला ने फ्रेंच क्रान्ति के दौरान युद्ध की समाप्ति की मांग रखते हुये इस आन्दोलन का सिंहनाद किया था और 1792 में आधुनिक नारीवादी आन्दोलन की स्थापक मैरी वोल्सटन क्राफ्ट की पुस्तक 'विन्डीकेशन ऑफ दि राइट्स ऑफ वीमेन' ने इस आन्दोलन को वैश्विक आन्दोलन में परिणत कर दिया। थोड़े ही समय में इस पुस्तक ने पूरे विश्व की महिलाओं में जबरदस्त क्रान्ति उत्पन्न कर दी और देखते ही देखते महिला मानवाधिकारों के लिये संघर्ष दुनिया भर की महिलाओं की आवाज बन गया। महिलाओं के इस वैश्विक संघर्ष में भारतीय स्त्रियाँ भी कभी पीछे नहीं रहीं और लम्बे संघर्ष के बाद आज उन्होंने वह मुकाम पाने शुरू कर दिये हैं जिसकी एक शताब्दी पूर्व उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी। इतिहास साक्षी है कि सदियों के अनवरत संघर्ष के कठिन मार्ग पर चलकर पूरे विश्व की महिलाओं ने 21वीं सदी में सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचकर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में स्वयं को पुरुषों के समकक्ष और पुरुषों से बेहतर सिद्ध कर दिया है। सफलता की इस इबारत को लिखने में भारत सहित सम्पूर्ण विश्व की महिलाओं ने भीषण यातनाऐं, अमानवीय अत्याचार, शोषण, दमन, असमानता व अपमान के कडुवे घूंट पिये हैं। कदम-कदम पर उन्हें अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ी है। परन्तु अब धीरे-धीरे उनकी यह लड़ाई उपसंहार की तरफ बढ़ने को है।
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