पुस्तक के विषय में
एक दार्शनिक के साथ भारत भ्रमण के दौरान आपको मिलेंगी अनुश्रुतियां, ऐतिहासिक प्रसंग और कुछ ऐसे नए व पुराने चरित्र, जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता । साथ ही मिलेगी किसी विशाल परिदृश्य को देखने की सूक्ष्म दृष्टि । लेखक का जन्म एक ऐसे गांव में हुआ था, जहां बैलगाड़ी से पहुंचना भी दूभर था । अपनी किशोरावस्था तक वे गांव के स्कूलों में ही पढ़े । वे जब भारत के विभिन्न हिस्सों को बतौर पर्यटक देखने जाते हैं तो उन ऐतिहासिक स्थलों को देखने में उनकी दृष्टि पर उनका अतीत कहीं न कहा मंडराता रहता है । कई बार यह दृष्टियां भारत को देखने के क्रम में एक-दूसरे में छितरा जाती प्रतीत होती है ।
इस पुस्तक में शुरुआत की कुछ रचनाएं अंडमान की हैं । राजस्थान के राजपुताना-अतीत पर लेखक ने कई लेख प्रस्तुत किए हैं । इन आलेखों का प्रकाशन 'द स्टेट्समेन' में श्रृंखलाबद्ध रूप से हो चुका है।
मनोज दास (ज.1934) देश के विख्यात लेखकों में सै हैं । वे अंग्रेजी और ओडियां भाषामें में लिखते है। उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार, सरस्वती सम्मान, पद्मश्री जैसे कई सम्मानों से अलंकृत किया जा चुका है । वे इन दिनों श्री अरविंद इंटरनेशनल सेंटर ऑफ एजुकेशन, पांडिचेरी में शिक्षक हैं।
भूमिका
भारत को देखने के कई तरीके हैं बल्कि कई दृष्टियां हैं जिनसे उस परिघटना का अनुभव किया जा सकता है जो भारत है; एक ऐसे गांव में जन्म लेने और बडे होने जहां कि बैलगाड़ी से भी पहुंचना मुश्किल हो और अपनी किशोरावस्था तक गांव के स्कूलों में पढ़ने के कारण इस लेखक की भारत के बारे में दृष्टि में कभी-कभी उसकी अंदरूनी भावनाएं और नोस्टैल्जिया लगी हुई रही हैं, भले ही ऐसा हर वक्त नहीं होता । वह सुझाव देना चाहेगा कि उसे इतिहास के निकष पर कसने से मुक्त कर दिया जाए क्योंकि ये रचनाएं, अगर आप फुर्सत के मूड में हैं, तो स्थानों और लोगों के बारे में इस लेखक के भाव के साथ शामिल होने का आमंत्रण हैं। ये भाव पिछले कई वर्षो में इस लेखक के दिमाग और कल्पनाओं में आए हैं ।
ये दृष्टियां भारत को देखने के क्रम में एक-दूसरे में छितरा गई भी हो सकती हैं जैसा कि उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में इस देश के बारे में मार्क ट्वेन को हुआ था 'यह वास्तव में भारत है । सपने और रोमांस, काल्पनिक धन और काल्पनिक गरीबी, तेज और चीर, महल और कुटिया, अकाल और महामारी, भूत-प्रेत और अलौकिक मानव, बाग और जंगल, सैकड़ों देशों और सैकड़ों भाषाओं के राष्ट्र, हजारों धर्म और बीस लाख देवी-देवताओं, मानव-जाति के झूले, मानव-बोली का जन्म-स्थान, इतिहास की माता, पौराणिक कथा की दादी, परंपरा की परदादी की भूमि,...एक ऐसी भूमि जिसे देखने की सभी लोग इच्छा रखते हैं और जिसे एक बार झलक भर ही सही, किसी ने देख लिया हो तो उसे ऐसी झलक पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलेगी ।'
(मोर ट्रैम्प्स एब्रोड, 1897) शुरुआत की कुछ रचनाएं अंडमान पर हैं और ये यथार्थ पर आधारित हैं जबकि राजस्थान वाली रचनाओं में 'सपने और रोमांस' भारी हैं और शेष रचनाएं निरपेक्ष अनुभव और आत्म-चेतना वाली प्रतिक्रियाओं का मिश्रण हैं । चूंकि लेखक दो भाषाओं में गति रखता है, अधिकांश रचनाओं को उड़िया में अंतरंग भारत नाम से संग्रहीत किया गया है ।
मैं क्र स्टेट्समैनको धन्यवाद देता हूं जिसने इसे श्रृंखलाबद्ध ढंग से प्रकाशित किया । पाठकीयता की दृष्टि से मैं भाग्यशाली रहा क्योंकि कई लोगों ने इस श्रृंखला के पुस्तक रूप में आने की संभावना के बारे में पूछताछ की जबकि एक ने इसके प्रकाशन का प्रस्ताव किया । वे थे नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया के निदेशक श्री निर्मल कांति भट्टाचार्जी । मैं उनके प्रति आभारी हूं और बिन्नी कूरियन के प्रति भी जिन्होंने इसे संपादन के नजरिये से देखा । इसके साथ ही मैं ट्रस्ट के अधिकारियों के प्रति भी आभारी हूं ।
अनुक्रम |
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भूमिका |
सात |
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1 |
कुरूप गोधूलि |
1 |
2 |
याद रखने वाली एक रात |
7 |
3 |
बारंबार भेंट चढ़ने वाला टापू और उसका अंतिम अतिथि |
13 |
4 |
सबसे प्यारे सूर्यास्त के बाद मृत्यु |
18 |
5 |
भगवान के दायरे से बाहर का साम्राज्य |
23 |
6 |
मिथकीय जंगल की खोज में (1) |
28 |
7 |
मिथकीय जंगल की खोज में (2) |
33 |
8 |
मिथकीय जंगल की खोज में (3) |
39 |
9 |
मौन राजकुमारी की छाया (1) |
44 |
10 |
मौन राजकुमारी की छाया (2) |
49 |
11 |
महानता का दुखांत (1) |
54 |
12 |
महानता का दुखांत (2) |
58 |
13 |
अद्वितीय धरोहर रखवाला |
63 |
14 |
कृष्ण की वधू |
68 |
15 |
नीले घोड़े का सवार |
74 |
16 |
सवाई आदमी |
79 |
17 |
शरमीले शहर की कहानी |
83 |
18 |
कुछ रखवाली हथेलियों की छाप |
87 |
19 |
विश्व के पहले क्विज मास्टर के प्रदेश में |
92 |
20 |
रहस्यमय फल की पौराणिक कथा |
97 |
21 |
'ईश्वर की आत्मा वाला' हिमालय |
102 |
22 |
निपुण गायक और उसके निपुण श्रोताओं पर |
106 |
23 |
मुक्ति के लिए दुर्बल मार्ग |
111 |
24 |
मध्य रात्रि समागम |
116 |
25 |
निषिद्ध गुफा : महान महाकाव्य का धायघर |
121 |
26 |
व्यास की कार्यशाला की विदाई |
126 |
27 |
सपने पर वार्तालाप करते हुए यात्रा |
132 |
28 |
पवित्रता का इलाका |
138 |
29 |
हिम और अनंतता के निवासी |
143 |
30 |
ज्ञान प्राप्त व्यक्ति के चरण चिह्न |
148 |
31 |
महान लालिमा की स्मृतियां |
153 |
32 |
काल से भी पुराना शहर |
158 |
33 |
खो गए मोरों की खोज में |
163 |
34 |
दुर्बोध भेदिया |
169 |
35 |
'अपरिचित के साथ गुप्त सभा' |
174 |
36 |
'खोदो, बच्चे, खोदो !' |
179 |
37 |
भारत में 'अपने पूरे प्रभाव के साथ बेबीलोन' |
183 |
38 |
टापू के लिए सात सौ वधुएं |
188 |
39 |
उच्च कोटि के ग्रंथ से पुन: रचित एक स्थल |
194 |
40 |
दो शहरों की कथा और एक संतप्त नायक |
198 |
41 |
जंगल में एक रात, |
202 |
42 |
और जंगल में एक सूर्योदय |
206 |
43 |
हजारों गुप्त टापू |
211 |
44 |
परमात्मा की दो प्रेमिकाएं |
216 |
45 |
क्या ईश्वर का परमसुख अब भी जारी है? |
221 |
46 |
लालटेन और तारों वाली शाम की खोज में |
228 |
47 |
एक पौराणिक कथा और एक चमक |
233 |

Item Code:
NZD116
Author:
मनोज दास (Manoj Das)
Cover:
Paperback
Edition:
2014
Publisher:
National Book Trust
ISBN:
9788123745817
Language:
Hindi
Size:
8.5 inch X 5.5 inch
Pages:
244
Other Details:
Weight of the Book: 310 gms
Price: Best Deal:
$8.80 Shipping Free |
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