म० प्र० हिन्दी ग्रन्थ अकादमी पिछले डेढ़ दशक से रही है। शिक्षा के उच्च स्तरों पर मातृभाषा हिन्दी में आपके बीच काम कर पढ़ने वाले छात्र और पढ़ाने वाले प्राध्यापकगण अकादमी के काम से अपरिचित न होंगे। विज्ञान और मानविकी के लगभग 25 विषयों की तीन सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित करके अकादमी ने यह सिद्ध कर दिया है कि हिन्दी भाषा आधुनिक ज्ञान-विज्ञान को समझने और व्यक्त करने में पूरी तरह सक्षम है। अंग्रेजी न जानने वाले बहु-संख्यक छात्रों ने इन पुस्तकों को अपना आधार बनाया है और इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा है।
1969 में अकादमी की स्थापना करते हुए केन्द्र सरकार ने संस्था से यह अपेक्षा की थी कि उच्च शिक्षा में हर स्तर पर हिन्दी माध्यम की पुस्तकें सुलभरहें, हिन्दी में पाठ्य-पुस्तक लेखन की परम्परा बने तथा शिक्षा केन्द्रों में एक ऐसी प्रक्रिया चले जो माध्यम परिवर्तन के विचार को उसकी अन्तिम परिणतियों तक पहुंचाये । अकादमी ने अपने दायित्व को निबाहते हुए शिक्षा केन्द्रों से जुड़े विद्वज्जनों के सहकार का दायरा बढ़ाने की लगातार कोशिश की और उसके अच्छे परिणाम निकले। अनेक प्राध्यापकों ने मूल हिन्दी में लेखन किया और कर रहे हैं तथा छात्रों ने शोध स्तर तक हिन्दी को बेहिचक अपना माध्यम बनाया और ऐसे छात्रों की संख्या दिनों-दिन बढ़ रही है। इससे अकादमी का उत्तरदायित्व बढ़ गया है। इस बढ़े हुए उत्तरदायित्व को निबाहने के लिए संस्था प्राध्यापकों तथा शिक्षा केन्द्रों के पुस्तकालयों से और अधिक सक्रिय सहयोग की अपेक्षा रखती है। अकादमी की पुस्तकों को छात्रों तक पहुँचाने में प्राध्यापकों और पुस्तकालयों की बहुत बड़ी भूमिका है और मैं आश्वस्त हूँ कि सम्बन्धितों को अपनी भूमिका की पूरी-पूरी चेतना है। पुस्तकों का स्तर सुधारने की आव-श्यकता भी मैं अनुभव करता हूँ और समझता हूँ कि छात्रों और अध्यापकों को समय-समय पर अकादमी से सीधा सम्पर्क करके पुस्तकों के गुण-दोष की समीक्षा करनी चाहिए।
आपके हाथों में यह पुस्तक सौंपते हुए मैं आशा करता हूँ कि इससे आपकी एक आवश्यकता पूरी होगी ।
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