लेखक परिचय
राधावल्लभ त्रिपाठी
जन्म: 15.02. 1949, मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले में शिक्षा: एम.ए., पीएच. डी. डी. लिट् । 1970 ई. से विश्वविद्यालयों में अध्यापन, तीन वर्ष (2002-2005) शिल्पाकार्न विश्वविद्यालय (बैंकाक) में संस्कृत के अतिथि आचार्य। राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान में पाँच वर्ष कुलपति (2008-13)। शिमलास्थित भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में फैलो (2014-15) 1 प्रकाशनः संस्कृत, अंग्रेजी तथा हिन्दी में 169 ग्रन्थ तथा 237 शोधलेख/समीक्षात्मक लेख प्रकाशित। पुस्तकों में आदिकवि वाल्मीकि (दो संस्करण), संस्कृत कविता की लोकधर्मी परम्परा (तीन संस्करण), संस्कृत काव्यशास्त्र और काव्यपरम्परा (दो संस्करण), नाट्यशास्त्रविश्वकोश (दो संस्करण), बहस में स्त्री, नया साहित्य नया साहित्यशास्त्र, भारतीय काव्यशास्त्र की आचार्यपरम्परा, बहस में स्त्री, Theory and Practice of Vada in Indian Intellectual Traditions आदि उल्लेख्य। हिन्दी में दो उपन्यास तथा तीन कहानी संग्रह व अनेक नाटक प्रकाशित, नाटकों में कुछ ब.व. कारंत, देवेंद्रराज अंकुर आदि प्रतिष्ठित रंगकर्मियों द्वारा खेले गये। संस्कृत में तीन मौलिक उपन्यास, दो कहानी संग्रह तथा तीन पूर्णाकार नाटक और एक एकांकीसंग्रह प्रकाशित। केन्द्रीय साहित्य अकादेमी का पुरस्कार, श्रेष्ठ दार्शनिक लेखन के लिये शंकर पुरस्कार, कनाडा का रामकृष्ण संस्कृति सम्मान, यू.जी.सी. का वेदव्यास सम्मान, महाराष्ट्र शासन का जीवनव्रती संस्कृत सम्मान आदि उल्लेख्य हैं।
पुस्तक परिचय
और फिर' राधावल्लभ त्रिपाठी के मूल संस्कृत में लिखे उपन्यास का हिन्दी रूपान्तर है। संस्कृत की श्रेष्ठ औपन्यासिक कृति के रूप में सम्मानित यह उपन्यास आज से दो हजार साल पहले के मध्यदेश और कश्मीर की सजीव झाँकी प्रस्तुत करता है। मातृत्वग्रन्थि से उत्प्रेरित नायक विशाख की उत्तरापथयात्रा उसके जीवन संघर्ष और अन्तः संसार को नालंदा और तक्षशिला के विद्यावैभव और सांस्कृतिक उन्मेष से जोड़ती हुई कश्मीर में पर्यवसित होती है। भारतीय जनमानस तथा लोकजीवन की अन्तरंग अनुभूतियों का संसार उजागर करने वाला यह उपन्यास चेतना के ऊर्ध्वारोहण तथा कला, साहित्य और संस्कृति की साधना का अनूठा नमूना है। संस्कृतसाहित्य के जाने माने अध्येता राधावल्लभत्रिपाठी अपनी औपन्यासिक कृतियों में काल के आवर्तन और विवर्तन का निरूपण करते हुए अतीतरस का नवसंधान करते हैं, तथा हजारीप्रसाद द्विवेदी की उस उपन्यास यात्रा में नये पड़ाव रचते हैं, जिसमें हास्य, व्यंग्य, विनोद की बहुवर्णी छटाएँ मानवीय अनुभूतियों के संसार को सम्पन्न बनाती हैं।
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