भारत में वर्ण तो चार ही थे परन्तु कई कारणों से जातियाँ अनेक हो गई। जब से भारत में राष्ट्रीय भाव प्रबल हुआ, और राष्ट्रीय एकता का महत्त्व दिन पर दिन बढ़ने लगा, तब से विचारकों, नेताओं और कार्य-कर्त्ताओं का यह प्रयत्न हो रहा है कि भिन्न-भिन्न जातियों के मूल को खोज कर उन्हें समन्वय और एकता के स्तर पर लाया जा सके।
हमारे अलख स्थान डूमाड़ा (अजमेर) के श्री स्वामी गोकुलदासजी, जिन्हें लोग महात्मा के नाम से पुकारते हैं, ऐसे ही उच्च विचार रखते हैं। और राष्ट्रीय तथा धार्मिक एकता का वे सदैव प्रयत्न करते रहते हैं। उनका जन्म मेघवंश नामक जाति में जो कि राजस्थान में तथा बाहर भी एक पिछड़ी जाति समझी जाती है और कई नामों से जानी जाती है, हुआ है। इसलिये पिछड़ी जातियों के प्रति उनके मन में सहानुभूति का भाव और उनके सुधार और उन्नति की आकांक्षा स्वभाविक है। उन्होंने इस संबंध में अब तक कई छोटी बड़ी पस्तकें लिखी हैं।
इस समय जो पुस्तक मेरे हाथ में है और स्वामीजी की इच्छानसार जिसकी भूमिका मैं लिखने जा रहा हूँ, वह इसी उद्देश्य से लिखी गई है। उनका नाम है "बंजारा भास्कर" अर्थात् राजपूत बणजकार (गौर बंजारा) जाति का संक्षिप्त इतिहास। जिसमें बनजारा जाति के विविध भेद, उनकी उत्पत्ति, विकास और प्रस्तार का इतिहास खोज के साथ दिया गया है।
प्रचलित अर्थ में इसे इतिहास चाहे न कहा जाय, परन्तु इसमें शक नहीं कि जितनी कुछ सामग्नी पौराणिक, जनश्रुति तथा अन्य प्रमाणों द्वारा उपलब्ध हो सकी, उसके आधार पर उन्होंने इस ग्रन्थ को तैयार किया। बनजारा एक घुमक्कड़ और वीर जाति है जो भारत ही नहीं संसार के अन्य देशों में भी फैली हुई है। जब रेल और सड़कें नहीं थीं, तब बैलों पर माल असबाब लादकर एक जगह से दूसरो जगह पहुँचाने का कार्य निर्भीक होकर करते थे। यह एक प्राचीन क्षत्रिय जाति है और अब इसमें भी अपने सुधारक कार्य-कर्त्ता आगे आये हैं जिनमें महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्य मंत्री श्री बसन्त राव नायक मुख्य हैं। इसमें हमारे स्वामी श्री गोकुलदासजी का भी बड़ा हाथ है, इसकी मुझे बड़ी खुशी है। मुझे यह लिखते हुए भी हर्ष हो रहा है कि स्वामी जी के परम सेवा भावी सुयोग्य शिष्य, जिनका नाम ही सेवादासजी है, जो कि हमारे सार्वजनिक क्षेत्र में साथ रहे हैं और अजमेर की राजकीय विधान सभा में काँग्रेसी सदस्य के रूप में हमारे सहकर्मी रहे हैं, ऐसे कार्यों में स्वामी जी का शिष्यत्व भली प्रकार निभा रहे हैं।
मुझे विश्वास है कि इस पुस्तक को पढ़कर बनजारा जाति के हमारे भाई-बहन अपने प्राचीन गौरव को स्मरण कर आज भारत के इस नवोत्थान मेंअपना अच्छा योगदान करेंगे और समाज के दूसरे नेता और आम लोग इस जाति के उत्थान में योग देकर अपना कर्त्तव्य निभायेंगे। मैं स्वामीजी को उनके इस शुभ संकलन और सेवादासजी को इसके प्रकाशन के लिए बधाई देता हूँ।
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