'बावरा अहेरी' के नये संस्करण के साथ एक और भी बात है : इस के प्रकाशन द्वारा श्रद्धेय राय कृष्णदास जी को एक बार फिर प्रणाम करने का अवसर पा कर मैं अपने को कृतकृत्य समझता हूँ। यह पुस्तक उन्हीं को समर्पित है और उस समर्पण भाव को फिर से याद करना उस समूचे संसार को भी याद करना है जो मेरे गुरुजनों का संसार था। साहित्य, कला और सहृदय समाज के प्रति आस्था और कुछ मूल्यों के प्रति निष्ठा के संस्कार मुझे उस से मिले; उसी से वह आत्मबल जिस के जीर्ण मूल्य-व्यवस्थाओं की अवज्ञा भी कर सकूँ और मूल्यों के प्रति उदासीन अथवा निष्ठाहीन समाज में मूल्यों के आग्रह पर टिका भी रह सकूँ। 'सरकारजी' उस संसार के इने-गिने प्रतिनिधियों में से एक नहीं, उस के प्रतीक पुरुष हैं। 'बावरा अहेरी' का यह नया संस्करण स्वयं उन्हें भेंटकर उन का आशीर्वाद पा सकूँ तो अपने को धन्य समयूँगा।
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