चेहरे से भविष्य विश्लेषण एक- विवेचना
व्यक्ति को अपने भविष्य जानने की इच्छा अनादि काल से प्रबल होती आई है। प्राचीन काल से ही जब से सृष्टि का आरम्भ हुआ है व्यक्ति चेहरे से भविष्य की जानने का सहारा लेता रहा है। ज्योतिष महत्व हस्त रेखा, अंकशास्त्रों के अलावा सामुद्रिक शास्त्र चेहरे से भविष्य जानने के लिए महत्वपूर्ण योगदान देता रहा है। अंग लक्षण ज्ञान वास्तव में भारतीय ज्योतिष का बहुत ही महत्वपूर्ण प्राचीन ज्ञान है। अंग लक्षण में व्यक्ति के शरीर के अंगों का विश्लेषण किया जाता है, परन्तु मुखाकृति विज्ञान में केवल चेहरे की बनावट आदि का विश्लेषण होता है। आदिकाल से यह ज्योतिष शास्त्र के अन्तर्गत इसको तीन उप-शाखाओं में विभाजित किया गया है, यथा- 1. मुखाकृति अंग विज्ञान 2. हस्त रेखा विज्ञान तथा 3. पाद लक्षण विज्ञान। वाराह मिहिर के अनुसार अंग लक्षण ज्ञान व्यक्ति के शरीर के 13 तत्वों के अनुसार किया जाता है। वे हैं- 1. उन्मान 2. भार 3. चाल 4. संधि 5. सार 6. रंग. 7. स्त्रिगधता 8. स्वर 9. प्रकृति 10. मुज्जा 11. आकृति 12. क्षेत्र तथा 13. सत्व। कुछ सामुद्रिक शास्त्र के विद्वानों ने गंध को भी इन तत्वों में सम्मिलित किया है।
प्रसिद्ध सामुद्रिक शास्त्र के ज्ञाता आचार्य लवेटर के अनुसार सामुद्रिक शास्त्र वह कला है या कहिये वह विज्ञान है जिससे व्यक्ति की सम्पूर्ण मुखाकृति तथा शरीर की आकृति के चिन्हों से या लक्षणों के संयोगों से उसके व्यक्तित्व की मुख्य विशेषताओं का विश्लेषण किया जा सकता है। अन्य प्रसिद्ध सामुद्रिक शास्त्री स्व. कालिका प्रसाद जी के अनुसार परमेश्वर की प्रेरणा से त्रिकालदर्शी महर्षियों के द्वारा कला कौशल ज्ञान के लिए शिल्प, रोग मुक्ति के लिए वैद्यक, भूत, भविष्य और वर्तमान जानने के लिए ज्योतिष व हस्तरेखा शास्त्र और अन्य शास्त्रों की रचना की गयी थी। उनमें अंग लक्षण ज्ञान प्रमुख सामुद्रिक शास्त्र है। स्व. कालिका प्रसाद जी ने इसका गहन अध्ययन करने के बाद सामान्य पाठकों के लिए सामुद्रिक दर्पण नामक ग्रंथ की रचना में इन 14 तत्वों के अन्तर्गत पर्वत रेखाओं व अन्य छोटे-बड़े चिह्नों के सांकेतिक लक्षणों के आधार पर जातक के जीवन की सभी कलाओं का गम्भीरतापूर्वक अध्ययन किया गया है। वैसे तो व्यक्ति का भूत, भविष्य और वर्तमान जानने के लिए मुख्य रूप से जन्म कुण्डली को आधार माना गया है, परन्तु इसमें समय की त्रुटि रहने के कारण इसमें भविष्य कथन में अन्तर आ सकता है। इसके बाद हस्तरेखाओं के द्वारा हस्तरेखा शास्त्री हथेली की बनावट, रेखाओं व पर्वतों का आधार मानकर भूत, भविष्य और वर्तमान का विश्लेषण कर सकता है, परन्तु जातक की इच्छा अनिवार्यत हो जाती है। अंग लक्षण के आधार पर कुशल सामुद्रिक शास्त्र के जानकार व्यक्ति की मुखाकृक्ति और अन्य शारीरिक लक्षण देख कर व्यक्ति के बारे में भूत, भविष्य और वर्तमान का सांगोपांग सही-सही विश्लेषण कर सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण है कि इसमें व्यक्ति की विशेष की सहमति की भी जरूरत नहीं है और दूर से ही विश्लेषण किया जा सकता है।
इसके अलावा कुछ सामुद्रिक शास्त्र के जानकारों ने चेहरे की तुलना पशु, पक्षी के चेहरों से भी की है। जिस प्रकार से पशु-पक्षी का चरित्र, व्यवहार और स्वभाव होता है उतने प्रकार व्यक्ति के स्वभाव चरित्र में होता है। इसी प्रकार ग्रहों के अनुसार उनके भी सर्वांग लक्षणों, स्वभाव और चरित्र के अन्तर देखे जा सकते हैं। व्यक्ति की शारीरिक रचना, हाव-भाव का अध्ययन अंग लक्षण से जानने की विद्या कहलाती है जो सामुद्रिक ऋषि ने भगवान लक्ष्मीनारायण के स्वरूप को देख कर की थी जिनमें भगवान श्री लक्ष्मीनारायण के शुभ लक्षणों को दर्शाया गया है।
लेखक सुदूर गाँव की पृष्ठभूमि से है और बचपन से ही उसके स्व. पिताश्री सीताराम सैनी की इस गूढ़ विद्या की जानकारी के प्रति आकर्षित हो गया था। लेखक के पिता श्री सीताराम जी सैनी अपने ग्राम बसवा जिला दौसा राजस्थान में शरीर के अंगों को देखकर तथा मुखाकृति को पढ़ने में जानकार थे और अपनी इस विद्या को गाँव में और आस-पास के गाँवों में जाने जाते थे। लेखक इस विद्या के प्रति आकर्षित होकर अपने पिताश्री से शिक्षा ली, परन्तु वह इसमें कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं प्राप्त कर सका, क्योंकि उनकी प्रारम्भिक शिक्षा में कठिनाईयाँ आती और पिताश्री के कहने पर इसको बीच में ही छोड़ना पड़ा।
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