सर्वप्रथम मैं अपने ईश्वर को धन्यवाद देती हूँ जिनकी कृपा से मैं इस पुस्तक को एक पहचान देने में सफल हो पाई हूँ।
मेरे माता-पिता और मेरे दोनों बच्चों वारांग, वाराही ने सदैव मेरे अंतर्मन में छुपे मेरे भावों को अभिव्यक्त करने हेतु मुझे प्रोत्साहित किया इसलिए मैं इस पुस्तक को लिखने का श्रेय इन्हें प्रदान करती हूँ।
मेरे जीवन के दूसरे पड़ाव के माता-पिता अर्थात मेरे सास-ससुर को भी मैं धन्यवाद देती हूँ और मेरे पति श्री प्रमोद कुमार मिश्र जिन्होंने हर कदम पर मेरा साथ दिया मैं उन्हें भी धन्यवाद देती हूँ। मैं धन्यवाद देती हूँ मेरी भाभी, श्रीमती निवेदिता दूबे को जिन्होंने मेरे अन्दर साहित्य को पढ़ने, समझने और उसमें रुचि उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। मेरी दोनों बड़ी बहनों, श्रीमती कंचन लता पांडे व श्रीमती कमलेश मिश्र और मेरी छोटी भाभी श्रीमती संध्या पांडे ने भी लिखने-पढ़ने के क्षेत्र में मेरा मनोबल बढ़ाया। मेरे पति की बहन यानी मेरी छोटी बहनों, रेनू, गौरी और श्वेता ने भी हमेशा मुझे प्रोत्साहित किया, उन्हें भी दिल से धन्यवाद। मेरे छोटे भाई डॉ. हरि प्रताप त्रिपाठी, जिनकी मेरे लिखने पढ़ने में अहम भूमिका रही और मुझमें लिखने की क्षमता में विस्तार हुआ साथ ही मेरे मित्रों डॉ. तूलिका सिंह, श्रीमती मून श्रीवास्तव, डॉ. गरिमा, डॉ. अपरा त्रिपाठी, डॉ. हिमांशु पांडे और डॉ. पूनम चौधरी, जिन्होंने मुझे इस पुस्तक के लिए आवश्यक सामग्री और समर्थन प्रदान किया, और मुझे अपनी सृजनात्मकता को सबके सम्मुख अभिव्यक्त करने के लिए प्रेरित किया उन्हें भी मैं तहे दिल से आभार व्यक्त करती हूँ।
इस पुस्तक के प्रकाशन में सहयोग करने वाली कुसुमलता मैम को तहे दिल से आभार व्यक्त करती हूँ जिन्होंने मेरी रचनाओं को इस योग्य समझा और उसे किताब का रूप दिया साथ ही उन सभी लोगों को जिन्होंने मेरी रचना को पाठकों तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, को धन्यवाद देना चाहूँगी।
मैं अपने उन सभी पाठकों की भी आभारी हूँ, जिन्होंने मेरी इस पुस्तक को पढ़ने योग्य समझा और चुना...
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