Easy Returns
Easy Returns
Return within 7 days of
order delivery.See T&Cs
1M+ Customers
1M+ Customers
Serving more than a
million customers worldwide.
25+ Years in Business
25+ Years in Business
A trustworthy name in Indian
art, fashion and literature.

भारत विखण्डन- Disintegration of India: Western Intervention in Dravidian and Dalit Divides

$22.27
$33
10% + 25% off
Includes any tariffs and taxes
The Author Believes that the Map on the Cover is not India's Human Rights Map. It is this Map that the Book Warns About.
Express Shipping
Express Shipping
Express Shipping: Guaranteed Dispatch in 24 hours
Specifications
Publisher: Harper Collins Publishers
Author Rajiv Malhotra, Aravindan Neelakandan
Language: Hindi
Pages: 587
Cover: PAPERBACK
8.5x5.5 inch
Weight 490 gm
Edition: 2013
ISBN: 9789351365976
HBR606
Delivery and Return Policies
Ships in 1-3 days
Returns and Exchanges accepted within 7 days
Free Delivery
Easy Returns
Easy Returns
Return within 7 days of
order delivery.See T&Cs
1M+ Customers
1M+ Customers
Serving more than a
million customers worldwide.
25+ Years in Business
25+ Years in Business
A trustworthy name in Indian
art, fashion and literature.
Book Description

परिचय

यह पुस्तक मेरे उन अनुभवों के बाद सामने आयी है जिन्होंने पिछले दशक में मेरे अध्ययन और अनुसन्धान पर गहरा प्रभाव डाला है। 1990 के दशक में प्रिंस्टन विश्वविद्यालय में अफ्रीकी मूल के एक अमरीकी शोधार्थी ने बातों-बातों में मुझे बताया कि वह भारत की यात्रा से अभी-अभी लौटा है जहाँ वह एक 'अफ्रीकी-दलित परियोजना' में काम कर रहा था। मुझे तब पता चला कि अमरीका इस परियोजना को संचालित कर रहा है और उसे धन भी दे रहा है। यह परियोजना अन्तर-जाति/वर्ण सम्बन्धों और दलित आन्दोलन को अमरीका के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक चश्मे से देख कर भारतीय सामाजिक ढाँचे को उसी चौखटे में मढ़ने की कोशिश कर रहा है। यह अफ्रीकी-दलित परियोजना दलितों को भारत के 'अश्वेतों' के रूप में और गैर-दलितों को भारत के 'श्वेतों' के रूप में चित्रित करना चाहती है। इस तरह, अमरीकी नस्लवाद, गुलामी और श्वेत/अश्वेत सम्बन्धों का इतिहास भारतीय समाज पर थोपा जा रहा है। हालाँकि आधुनिक जाति-व्यवस्था की बुनावट और उसके अन्तर-सम्बन्धों में ऐसे कई चरण रहे हैं जिनमें दलितों के प्रति पूर्वाग्रह रहा है, लेकिन भारतीय दलितों के अनुभवों और अमरीका के अफ्रीकी गुलामों के अनुभवों में थोड़ी-सी भी समानता नहीं है। फिर भी अमरीकी अनुभव के आधार पर, अफ्रीकी-दलित परियोजना, भारत के दलितों को 'एक भिन्न नस्ल के लोगों के हाथों पीड़ित हुए समुदाय' के रूप में चित्रित करते हुए उन्हें एक विशेष तरह से 'सशक्त' बनाने का प्रयास कर रहा है।

वैसे, मैं स्वयं अलग से इस बारे में अध्ययन और लेखन कर रहा था कि 'आर्य' कौन थे, कि क्या संस्कृत और वेदों का उद्भव भारत में हुआ था या फिर वे 'आक्रमणकारियों' द्वारा भारत में लाये गये थे। इस सन्दर्भ में मैंने अनेक पुरातात्विक, भाषा-वैज्ञानिक और ऐतिहासिक सम्मेलन करवाये और पुस्तक लेखन परियोजनाएँ भी चलायीं ताकि इस वाद-प्रतिवाद में सत्य की गहराई तक पहुँचा जा सके। यह सिलसिला मुझे औपनिवेशिक काल में निर्मित द्रविड़ पहचान के शोध तक ले गया, जिसका उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्व कोई अस्तित्व ही नहीं था और जिसे आर्यों के विरुद्ध एक पहचान के रूप में गढ़ा गया था। इसका बना रहना आर्यों के विदेशी होने और उनके कुकर्मों के सिद्धान्त में विश्वास पर निर्भर करता है।

मैं अमरीकी चर्च द्वारा भारत में चल रही गतिविधियों को पैसे दिये जाने का भी अध्ययन कर रहा था, मसलन गरीब बच्चों की 'रक्षा' के लिए उन्हें भोजन, कपड़े और शिक्षा देने के बहुप्रचारित अभियान। दरअसल, अपने जीवन के तीसरे दशक में जब मैं अमरीका में रह रहा था तब मैं दक्षिण भारत के ऐसे ही एक बालक का प्रायोजक बना था। जो भी हो, भारत यात्राओं के दौरान मैंने अक्सर यह अनुभव किया कि जो धन प्रायोजकों को बताये गये उद्देश्यों पर जमा किया जा रहा था, वह उन उद्देश्यों पर उतना नहीं खर्च किया जा रहा था जितना धर्मान्तरण और ईसाई मत के प्रचार जैसी गतिविधियों पर।

इसके अलावा मैं अमरीका में विचार-मंचों, स्वतन्त्र विद्वानों, मानवाधिकार गुटों और शिक्षाविदों के साथ अनेक वाद-विवादों में शामिल हुआ हूँ, ख़ास तौर पर भारतीय समाज के बारे में उनकी इस धारणा पर कि यह एक ऐसा अनिष्टकारी समाज है जिसे पश्चिम को ही 'सभ्य' बनाना है। मैंने एक शब्दावली गढ़ी "जाति, गौ, और रसेदार सालन" ताकि विदेशियों द्वारा भारत की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं को आकर्षक और सनसनीखेज तरीके से चित्रित करते हुए इनकी व्याख्या 'मानवाधिकार' सम्बन्धी विषयों के रूप में करने की जो कोशिशें होती हैं, उनके पीछे छिपे सच को सामने लाया जा सके।

मैंने ऐसे विभिन्न सिद्धान्तों को प्रतिपादित करने में जुटे प्रमुख संगठनों का पता लगाने का फैसला किया और साथ ही उन राजनीतिक दबावों का भी जो इनकी अगुवाई कर रहे हैं, और जो भारत पर मानवाधिकार उल्लंघन का अभियोग लगाते हैं। मेरे शोध में अमरीका की वित्तीय सहायता के प्रावधानों की घोषणा का उपयोग करते हुए यह पता लगाना शामिल था कि यह धन किन-किन रास्तों से कहाँ-कहाँ जा रहा है। साथ ही, ऐसे अधिकांश संगठनों द्वारा बाँटी जाने वाली प्रचार सामग्री का अध्ययन करना, तथा उनके सम्मेलनों, कार्यशालाओं और प्रकाशनों पर निगरानी रखना भी। मैंने ऐसी गतिविधियों में लगे हुए लोगों और जिन संस्थाओं से वे सम्बद्ध थे उनकी छान-बीन की।

इस क्रम में मैंने जो पाया वह उन सभी भारतीयों को ख़तरे की घण्टी की तरह सुनायी देगा जो हमारी राष्ट्रीय अखण्डता के प्रति चिन्तित हैं। भारत एक बड़ी कारगुजारी के निशाने पर है-एक ऐसे नेटवर्क के जिसमें संगठन, व्यक्ति विशेष और चर्च शामिल हैं- जो लगता है भारत के कमजोर वर्गों के लिए एक अलगाववादी पहचान, इतिहास और यहाँ तक कि धर्म भी रचने के काम में जोर-शोर से जुटे हुए हैं। खिलाड़ियों के इस गठजोड़ में न केवल चर्चों के विभिन्न गुट, सरकारी संस्थाएँ और सम्बद्ध संगठन, बल्कि गैर-सरकारी विचार-मंच और शिक्षाविद भी शामिल हैं। बाहर से वे अलग-थलग और एक-दूसरे से असम्बद्ध लगते हैं, लेकिन वास्तव में, जैसा कि मैंने पाया, उनकी गतिविधियाँ बहुत अच्छी तरह से संयोजित हैं और अमरीका तथा द्वारा उन्हें बहुत धन भी मिलता है। वे अन्दर से जिस सीमा तक जुड़े हुए हैं और जिस तरह से वे एक-दूसरे को सहयोग करते हैं, इसे देखकर मैं बहुत प्रभावित हुआ। उनके प्रस्ताव, दृष्टिकोण सम्बन्धी दस्तावेज और रणनीतियाँ बहुत अच्छी तरह से तैयार की हुई थीं, और दबे-कुचले लोगों की मदद करने के लिबास के नीचे उनके उन उद्देश्यों का आभास होता था जो भारत की एकता और सम्प्रभुता के प्रतिकूल हैं।

जिन समुदायों को विशेष प्रकार से 'सशक्त' बनाया जा रहा है उनमें से कुछ हिन्दुस्तानी इन पश्चिमी संगठनों में उच्च पदों पर थे, जबकि सारी गतिविधियों की प्रारम्भिक संकल्पना, उनका वित्त पोषण और रणनीतियों का प्रबन्धन पश्चिम के लोग ही कर रहे थे। लेकिन अब भारत में ही ऐसे व्यक्तियों और एन.जी.ओ. यानी गैर-सरकारी संगठनों की संख्या लगातार बढ़ रही है जिनको इन पश्चिमी संस्थाओं ने अंगीकार कर लिया है और जो पश्चिम से धन और संरक्षण ले रहे हैं। अमरीका में दक्षिण भारतीय अध्ययन केन्द्र और यूरोपीय विश्वविद्यालय बराबर ऐसे सक्रिय 'कार्यकर्ताओं' और 'आन्दोलनकारियों' को आमन्त्रित करते हैं और उन्हें वरीयता देते हैं। ये संगठन ही खालिस्तानियों, कश्मीरी आतंकवादियों, माओवादियों और भारत में सक्रिय अन्य विघटनकारी तत्वों को पहले आमन्त्रित करते रहे थे। इसलिए मुझे आशंका होने लगी कि कहीं दलितों, द्रविड़ों और भारत के अन्य अल्पसंख्यकों को एकजुट करने के ये अभियान किसी-न-किसी रूप में पश्चिम के कुछ देशों की विदेश नीतियों का अंग तो नहीं बन गये हैं, अगर स्पष्ट रूप से नहीं तो कम-से-कम सँजोकर रखे गये एक विकल्प के रूप में। अभी मुझे किसी दूसरे बड़े देश की जानकारी नहीं है जहाँ ऐसी प्रक्रियाएँ, बिना स्थानीय अधिकारियों की निगरानी और देख-रेख के, व्यापक रूप से चलायी जा रही हों। कोई आश्चर्य नहीं कि भारत में उस सीमा तक धन खर्च किया जाना है जहाँ तक पहुँच कर ऐसी अलगाववादी पहचान पूरी तरह आतंकवाद या राजनीतिक विखण्डन का स्वरूप न ग्रहण कर ले तथा एक हथियार न बन जाये।

शैक्षिक हेर-फेर और उसके परिणामस्वरूप हिंसा के बीच सम्बन्ध श्रीलंका में भी साफ़ दिखायी देता है, जहाँ तैयार की गयी विभाजनकारी मानसिकता ने एक अत्यधिक खूनी गृह युद्ध को जन्म दिया। ऐसा ही अफ्रीका में हुआ जहाँ विदेशियों द्वारा स्थापित और संचालित पहचान के संघर्षों ने उसे विश्व के अब तक के सबसे बुरे नस्ली जनसंहार की घटनाओं तक पहुँचा दिया।

Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at help@exoticindia.com
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through help@exoticindia.com.
Add a review
Have A Question
By continuing, I agree to the Terms of Use and Privacy Policy
Book Categories