वो कोविड का जानलेवा दौर था जब इक रोज़ अंधेरे बंद कमरे में कुछ सफ़े पहुँचे और उनके पलटने से दम घुटने वाले कमरे में ठंडी बयार बहने लगी। मैं लेखक नहीं हूँ लेकिन अपनी बात कहना जानता हूँ। दूसरी तरफ़ मौजूद शख़्स खुद को लेखिका मानती है या नहीं ये तो नहीं जानता लेकिन वो भी अपनी बात कहना जानती है। हम दोनों अपनी बातें कहते रहे और साँसे चलती रहीं। कई बार दिन में चार खत लिखे और कई बार ऐसा भी हुआ कि चार महीनों में एक भी ख़त नहीं लिखा। सिल्फ़ के साथ रहते हुए लगा कि हम लोगों से मिलने पर कितनी वाहियात बातें करते हैं मसलन आपका नाम क्या है? आप किस फ़ील्ड में नौकरी करते हैं? आप रिलेशन में हैं या नहीं?
हवा की रुह ने बताया कि जवाब देने वालों के साथ सही सवाल करने वालों की अहमियत हमेशा बनी रहती है। मायाविनी आँखों में देखती है तो धराशायी नहीं होती। वह घुँघरूओं से तिलिस्म तोड़ना जानती है। पहाड़ों की बेटी आँखों के ठीक ऊपर पहाड़ लेकर चलती है। पहाड़ों के ठीक ऊपर दिल्ली की तेज तर्रार सड़क। जब कविताएँ जेब से गिर गईं और बहुत ढूँढने पर भी नहीं मिलीं तब आसमान ने बताया कि ""आप सब जी चुके होते हैं
सोच चुके होते हैं
उसके बाद आख़िरी साँस कविता होती है""
कविताएँ ढूँढना चाहते हैं तो फिर से सब कुछ जियें। सब कुछ सोचें। आख़िरी साँस लीजिए। दुःख का काम सोखना नहीं है सींचना है। रोते बच्चे को चुप करवाने के लिए रोते नहीं है। खूबसूरती को पाने की आप कीमत चुकाते हैं। आपके पास जवाब हैं अपना सवाल मालूम कीजिए।
जब महसूस हो कि सब खत्म हो चुका है तो एक ज़ोरदार कमबैक करना ही मैजिक है। मैजिक के बिना दुनिया नीरस हो जाएगी। दुनिया को नीरस मत होने दीजिए। हम दोनों में से कोई एक आखिरी साँस ले चुका हो तो दूसरा क्रिताब छपवाये जिससे लोग हम दोनों में से किसी एक को ढूँढने निकलें। उम्मीद देना दुनिया को जिंदा रखना है।
मैं कोई लेखक नहीं हूँ। खुद को त्रासदी से उपजा आर्टिस्ट मानता हूँ। ऊपर जो बातें लिखी हैं उन्हें पढ़कर आप यह सोच सकते हैं कि इन बातों में कोई भी तारतम्यता नहीं है और साहित्य तो बिल्कुल भी नहीं। यह तो कोरा प्रलाप है। आप इन खतों को पढ़ते वक़्त एक ज़ोर की हँसी भी हँस सकते हैं और मुझ पर जीवन को अतिरेक में देखने का आरोप भी लगा सकते हैं।
आप अपनी राय बनाने के लिए स्वतंत्र हैं।
पिछले कुछ सालों में लेखन बेहतर हुआ है। मैं चाहता तो इस किताब में कुछ जोड़-तोड़ कर इसको और बेहतर कर सकता था लेकिन यह किताब एक दस्तावेज़ के रूप में आपके सामने है। कोविड के उस दौर में जहाँ सभी हिंदुस्तानियों के सीने में उदासी की नदी बह रही थी। मैं अपने शहर से दूर किसी दूसरे शहर में इसलिए भी जिंदा रह पाया क्योंकि कुछ-कुछ वक़्त में दरवाजे पर खत दस्तक दिया करते थे। इन ख़तों में जो शब्द थे वे खरोंचे हुए जिस्म पर मलहम का काम करते थे।
कविता, उपन्यास, कहानी इन सबका तो सौन्दर्यशास्त्र हम बना चुके हैं मगर पत्र का सौन्दर्यशास्त्र अभी तक निश्चित नहीं कर पाए। आखिर पत्र का सौन्दर्यशास्त्र निश्चित किया भी कैसे जा सकता है? पत्र में तो बेतुकी बातें लिखी जाती हैं। (जो किसी-किसी शख्स के लिए दुनियाभर का तुक रखती हैं)
कोई तीन साल पहले की बात रही होगी। इक रात नींद खुली तो मेरे सिर के पीछे वाले हिस्से में ज़ोर का दर्द उठा था। इतना दर्द कि मेरे माथे पर हरे रंग की रस्सियाँ दिखने लगी थीं। सुबह जब शीशे में खुद को देखा तो अपने अंदर एक छोटा सा बच्चा भी दिखा। मुझे बच्चों से बेहद लगाव है और ये तो मेरा अपना बच्चा था। मैं इसकी हर एक ज़िद पूरी करने लगा लेकिन बीतते समय के साथ वो बच्चा शैतान में बदल गया।
मुझे अब इस शैतान से डर लगने लगा है। अब मैं कोई ऐसी किताब ढूँढ रहा हूँ जिसमें इस शैतान की हत्या करने का तरीक़ा लिखा हो। मैं ढूंढ-ढूंढकर किताबें पढ़ता हूँ लेकिन तरीक़ा नहीं मिल रहा उल्टे शैतान के नाखून बढ़ते जा रहे हैं। किताबें ढूँढते-ढूँढते मुझे पाश्चात्य साहित्य चिंतन की कुछ किताबें मिलीं जिनमें मनोविश्लेषणवाद, अस्तित्ववाद, यथार्थवाद, अतियथार्थवाद, मार्क्सवाद, दुःखवाद पर कुछ लेख थे। ये लेख पढ़ने के बाद शैतान के नाखून तलवार में बदल गए। मेरा डर बढ़ता जा रहा है।
मेरे अंदर साँस लेता शैतान हमेशा भूखा रहता है। कई बार मेरे पास पैसे नहीं होते कि उसकी भूख मिटा सकूँ। तब ये मुझे ज़बरदस्ती कभी दोस्तों के कमरे पर तो कभी लाइब्रेरी के अंदर खींच लाता है। कभी किसी से माँगकर भूख मिटाता है तो कभी एकदम बेहया होकर क़मीज़ में या पीठ के पीछे कुछ किताबें छुपा लेता है। खाना खाने का एक तरीक़ा होता है लेकिन ये शैतान न वक़्त देखता है न जगह इसको बस खाना दिखता है। कई बार यह इतना खा लेता है कि कविताओं और कहानियों की उल्टियाँ करने लगता है।
अब जो लोग मुझसे मिलते हैं वे इस शैतान से भी मिलते हैं। लोग मुझसे मिलकर मुझे भूल जाते हैं लेकिन उन्हें शैतान याद रहता है। लोग उसे मंचो पर बुलाते हैं। मुझे ज़बरदस्ती उसके साथ जाना पड़ता है। ये शैतान दिन भर बोलता है। आस-पास कोई नहीं होता तब तो ये मुझसे चिल्ला-चिल्लाकर बात करता है। इससे बात करते-करते मेरा मुँह थक जाता है। इसलिए मैं कई बार ऐसी जगह जाता हूँ जहाँ मुझे सुकून मिले लेकिन बोलना नहीं पड़े लेकिन वहाँ भी कोई-न-कोई ऐसा व्यक्ति मिल जाता है जो मुझे नहीं जानता पर इस शैतान को पहचानता है। शैतान उससे बात करने लगता है और मैं कुढ़ता रहता हूँ। शैतान बहुत चालाक है ये लोगों को सिर्फ़ अपना चेहरा ही दिखाता है इसकी पीठ किसी ने नहीं देखी। एक बार मैंने इसे नंगा देख लिया था मालूम है इसके पूरे जिस्म में छेद हैं। खोखला है ये। और तो और एक बार मैंने अपनी नस पर चाकू फिरा दिया था। मेरी कलाई से रिसते खून के हर एक कतरे से ये शैतान बाहर निकलने लगा था। उस दिन मैंने जाना कि जिस दिन मेरे जिस्म का खून सूख जाएगा, मेरी गर्दन जिस दिन हिलनी बंद होगी उसी दिन ये शैतान मरेगा। शैतान ने अपनी क़ब्र पहले से नीयत कर ली है। मेरा जिस्म ही उसकी क़ब्र है। शैतान के पास एक फावड़ा भी है। ये फावड़ा इसके हाथ में ठीक-ठीक कब आया ये याद नहीं। मगर इतना याद है कि इक दफ़ा जब मैं ऑटो में बैठा कहीं जा रहा था तो एक आदमी फ़्लाइओवर पर रिक्शों खींच रहा था। मैं चाहता था कि ऑटो से उतरकर रिक्शों में धक्का लगाऊँ मगर ऑटो इतनी स्पीड में था कि जब तक मैं सोचता तब तक ऑटो फ़्लाइओवर उतर चुका था। ऐसी न जाने कितनी बातें मैं भूल चुका था। एक दिन किसी मंच पर मुझे मानवता विषय पर भाषण देने के लिए बुलाया गया। मैं इधर मंच पर चढ़ा और उधर शैतान ने फावड़ा चलाना शुरू कर दिया। एक ही वार में मेरी जीभ कटकर अलग हो गई। कटी जीभ मेरे मुँह से बाहर नहीं निकली सिर्फ़ मैं और शैतान जानते थे कि मेरी जीभ कट चुकी है।
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