मनुष्य एक चिंतनशील प्राणी है। बहुत बार उसका चिंतन भौतिक स्तर पर होता है तो बहुत बार आध्यात्मिक स्तर पर भी वह चिंतन करता रहता है। हमारे अन्दर-बाहर जो कुछ भी चलता है, उसकी अभिव्यक्ति हमारे विचारों और कर्मों के माध्यम से होती है। हम जिस समाज में रहते हैं उससे प्रभावित होकर अपनी प्रतिक्रियाएँ भी करते हैं। हमारी प्रतिक्रियाएँ विभिन्न प्रकार से हो सकती हैं, जिनमें से उसका एक ढंग शाब्दिक भी होता है।
'नकली ब्रह्मज्ञान', पिछले बारह-तेरह सालों के दरमियान फेसबुक पर लिखे गये छोटे-छोटे लेखों का संग्रह है। अन्दर या बाहर जब जो घटता था उसे कभी-कभी फेसबुक पर भी लिख देता था हलाँकि यह हमेशा नहीं ही होता था। अभी कुछ दिन पूर्व यह विचार आया कि क्यों न इसे पुस्तकाकार कर दिया जाये.... विचार साकार हुआ और पुस्तक आपके हाथ में है।समय विचार परिवर्तित और परिवर्धित भी होते रहते हैं। चूँकि पुस्तक में पूर्व के विचार संकलित हैं अतः यह अवश्यंभावी है कि आज के समय में लेखक के कुछ विचारों में आंशिक परिवर्तन भी हो सकता है, यह एक स्वाभाविक स्थिति है। पुस्तक में संकलित सभी लेख एक दूसरे से सम्बन्धित न होकर बल्कि पूर्ण स्वतंत्र हैं। लेखों का कलेवर कोई छोटा तो कोई बड़ा हो गया है, इसके पीछे तात्कालिक चिंतन कारण है। जब जो बात कही गयी पूरी कही गयी, कभी आवश्यकतानुसार शब्द अधिक हो गये तो कभी कम शब्दों में बात में बात पूरी हो गयी। पाठक किसी भी लेख से पढ़ने की शुरुआत कर सकते हैं; लेखों का कोई क्रमविशेष स्थापित नहीं किया गया।
'नकली ब्रह्मज्ञान' शीर्षक से एक छोटा सा लेख इस पुस्तक में संकलित है। अचानक से लगा कि पुस्तक के लिए भी यही शीर्षक होना चाहिए।उस सच्चिदानन्दस्वरूप ब्रह्म के अतिरिक्त समस्त लौकिक दृश्य पदार्थ नकली ही हैं। असली तो सिर्फ़ वही है। परन्तु वर्तमान में "ब्रह्मज्ञान बिनु नारि नर, कहहिं न दूसरि बात" का युग है। 'नकली ब्रह्मज्ञान' इंगित करता है कि असली 'ब्रह्मज्ञान' ही सत् है बाकी सबकुछ असत् है। पुस्तक के शीर्षक 'नकली ब्रह्मज्ञान'; में ब्रह्मज्ञान के प्रति न कोई व्यंग्य है और न ही कोई अविश्वास का भाव ! बल्कि यह शीर्षक उस परमतत्त्व के प्रति अधिक निष्ठा और विश्वास को सन्निहित किये हुए है। अतः तात्त्विक रूप से पुस्तक के शीर्षक की सार्थकता सिद्ध है। पुस्तक के शीर्षक को देखकर किसी को यह भ्रम भी नहीं होना चाहिए कि यह पुस्तक केवल 'नकली ब्रह्मज्ञान' का विवेचन मात्र है। 'नकली ब्रह्मज्ञान' इस पुस्तक का एक लेख मात्र है, पुस्तक में विभिन्न बिन्दुओं पर लेख समाहित हैं। यह पुस्तक लोकरंजन की आंशिक कारण भी बन पायी तो इसे मैं सफल समझेंगा।
इस पुस्तक के साकार होने में मेरे अभिन्न मित्र स्नेहीहृदय श्री पीयूष मिश्र जी कारण हैं क्योंकि उन्होंने ही फेसबुक पर मेरी आई०डी० बनायी थी जिसके परिणामस्वरूप मैं वहाँ कुछ लिखा-पढ़ी करता रहता हूँ। अपने मित्र को मैं धन्यवाद तो नहीं दे सकता परन्तु उनके प्रेम को अवश्य महसूस करता रहता हूँ। मेरे स्नेही डॉ० रवीश कुमार सिंह का इस कार्य में बड़ा योगदान रहा है, इस हेतु मैं उनके प्रति आभारी हूँ। अन्त में मैं गुरुदेव भगवान्, पूज्य मातापिता एवं स्नेहप्रदाता भ्राताद्वय के श्रीचरणों में प्रणाम करते हुए इस पुस्तक के सुधी प्रकाशक श्री आशुतोष पाण्डेय जी का भी हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ; जिन्होंने पूरी लगन के साथ इसे प्रकाशित किया है....... इति शम्
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