Easy Returns
Easy Returns
Return within 7 days of
order delivery.See T&Cs
1M+ Customers
1M+ Customers
Serving more than a
million customers worldwide.
25+ Years in Business
25+ Years in Business
A trustworthy name in Indian
art, fashion and literature.

भारत के त्यौहार- Festivals of India (Set of 2 Volumes)

$32
Spiritual Explanation of Indian Festivals and Proper Introduction of Great Personalities Associated with Them
Express Shipping
Express Shipping
Express Shipping: Guaranteed Dispatch in 24 hours
Specifications
Publisher: Brahma Kumaris Ishwariya Vishwa Vidyalaya, Delhi
Language: Hindi
Pages: 793 (With B/W Illustrations)
Cover: PAPERBACK
8.5x5.5 inch
Weight 850 gm
Edition: 2008
HBM096
Delivery and Return Policies
Ships in 1-3 days
Returns and Exchanges accepted with 7 days
Free Delivery
Easy Returns
Easy Returns
Return within 7 days of
order delivery.See T&Cs
1M+ Customers
1M+ Customers
Serving more than a
million customers worldwide.
25+ Years in Business
25+ Years in Business
A trustworthy name in Indian
art, fashion and literature.
Book Description

भूमिका

भारत के त्योहार, उनकी विशेषता और उनका अर्थबोध किसी भी देश के त्योहारों और उत्सवों में वहाँ के धर्म, दर्शन, रहन-सहन के तरीकों, रीति-रिवाजों और मान्य मूल्यों की तथा वहाँ की सभ्यता, संस्कृति, परम्परा, पारिवारिक गठन इत्यादि की झलक मिलती है। कुछ त्योहार वहाँ की मान्यता के अनुसार परमपिता परमात्मा या पूज्य देवी-देवताओं से सम्बन्धित होते हैं, कुछेक धर्म-स्थापकों के जीवन से जुड़े होते हैं, कुछ किसी प्रकार की विजय की स्मृति दिलाते हैं तो कुछ वहाँ के मूल जीवन-दर्शन की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं। उन त्योहारों अथवा उत्सवों को लोग गीत-संगीत, नृत्य, नाटक, मेलों, पूजा-पाठ या हर्षोल्लास या सज-धज के रूप में मनाते हैं। इससे लोगों में उमंग-तरंग बनी रहती हैं, पारस्परिक मेल-जोल बढ़ता है और संगठन तथा एकता की भावना बढ़ती है तथा राष्ट्रीय एवं व्यक्तिगत जीवन में कई लाभ होते हैं। ये त्योहार जीवन में न केवल रस भरते हैं और आमोद-प्रमोद के अवसर प्रदान करते हैं बल्कि ये जीवन में नव-चेतना एवं आध्यात्मिक जागृति भी लाते हैं और पूर्वजों द्वारा दी गई सांस्कृतिक धरोहर या दार्शनिक एवं नैतिक विरासत को भी बनाये रखने में सहायक होते हैं। ये त्योहार न हों तो इनके बिना देशों अथवा राष्ट्रों की अपनी-अपनी रंगीनियाँ, विशेषताएं और आभा-प्रभा ही निस्तेज हो जायेगी। विश्व-मंच पर हर देश, प्रदेश या जाति की जो अपनी-अपनी कला-संस्कृति, जीवन-गाथा और दर्शन-दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है वही तो जीवन में नित्य सरसता लाती है और हरेक की अपनी-अपनी परम्परा विश्व-नाटक को आद्भुत्य प्रदान करती तथा दर्शनीय एवं अवलोकनीय बनाती है।

भारत चूंकि एक अत्यन्त प्राचीन देश है और आध्यात्मिकता एवं नैतिकता-प्रधान देश रहा है, उसके अधिकतर त्योहार आध्यात्मिक रहस्यों का अर्थ- बोध कराने वाले तथा जीवन में आध्यात्मिक आनन्द भरने की विधि का परिचय देने वाले हैं। वे मनोविनोद के साधन भी हैं ही, परन्तु वे मुख्यतः चरित्र को उज्ज्वल बनाने वाले, पूर्वजों की विशेषताओं का परिचय देने वाले तथा व्यक्ति को संस्कृति एवं धर्म के शिखर पर ले जाने वाले हैं। परन्तु कालान्तर में विदेशियों के आक्रमणों, पारस्परिक फूट तथा धर्म एवं नैतिकता के उत्तरोत्तर ह्रास, ग्रंथों में क्षेपक और मिलावट इत्यादि के कारण त्योहारों में भी विकृतियाँ आती गयीं। अतः आज जिस भाव या रीति-नीति से लोग अधिकतर त्योहार एवं उत्सव मनाते हैं वे आदिकाल की शुद्धि को लिए हुए नहीं हैं बल्कि भौतिकवाद, देहाभिमान और बाह्यमुखता का पुट लिये हुए हैं। अतः उनके वास्तविक स्वरूप को स्पष्ट करने की परम आवश्यकता है। इनको स्पष्ट करने से आत्मा, परमात्मा, देवी-देवता, असुर, योग, मुक्ति-जीवनमुक्ति, जीवन-दर्शन, इतिहास इत्यादि विषय भी स्पष्ट होते हैं। प्रस्तुत लेख-माला को आद्योपान्त पढ़ने से आप देखेंगे कि सभी विषयों पर नया दृष्टिकोण मिलता है और भ्रान्तियाँ दूर होती हैं। इनसे रामायण, महाभारत, पुराण, उपनिषद्, गीता, श्रीमद्भागवत इत्यादि का भी सही अर्थ-बोध होता है, यहाँ तक कि युग, युग-संधि, कल्प इत्यादि काल-गणना पर भी प्रकाश मिलता है और हर युग की विशेषताओं के बारे में भी ठीक परिचय मिलता है। "क्या संसार में अशान्ति सदा से चली आ रही है?", "क्या सतयुग में भी असुर या दुःख होते थे?", "क्या कृष्ण जी की 16,108 पटरानियाँ थी?", "क्या गीता-ज्ञान कुरुक्षेत्र में युद्ध के मैदान पर द्वापर युग के अन्त में दिया गया था और उसके बाद कलियुग प्रारम्भ हुआ?"- ऐसे विषयों पर भी इन त्योहारों के सन्दर्भ में प्रकाश मिलता है। इसलिए हरेक त्योहार पर एक लेख न हो कर, भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से कई लेख दिये हैं जो अन्य किसी भी पुस्तक में आपको पढ़ने को नहीं मिलेंगे और इन सभी का लक्ष्य यही है कि हम में दिव्यगुण आयें, चरित्र का उत्थान हो, स्थिति योगयुक्त हो, हम बुराई को छोड़ें, स्वयं (आत्मा) तथा परमात्मा को जानें, मुक्ति और जीवनमुक्ति अथवा सच्ची स्वतन्त्रता को समझें और प्राप्त करें।

भारत का, 310 ईसा पूर्व से 400 ईसवी तक के समय का विदेशी यात्रियों द्वारा जो लिखित इतिहास मिलता है, जिसमें प्रायः सभी इतिहासकार विश्वास करते हैं, के अनुसार उस समय में भी भारत की चारित्रिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक स्थिति उच्च थी। चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्य में सेल्युकस द्वारा भेजे गये यूनान के राजदूत मेगस्थनीज़ ने (305 ईसवी पूर्व में) लिखा है कि उस समय भारत के लोग ईमानदार थे, चोरी नहीं होती थी, लोग घरों को ताले नहीं लगाते थे, लडाई-झगड़े भी नहीं होते थे और यदि होते भी थे तो पंचायत ही उन्हें निपटा देती थी। गुप्तवंश के चन्द्रगुप्त (द्वितीय) के राजदरबार में चीन से आये बौद्ध यात्री एवं विद्वान फाह्यान ने लिखा है कि तब भारत के लोग समृद्ध एवं धनी थे। उनमें लोक-कल्याण के कार्य करने की होड़-सी लगी रहती थी। मार्ग सुरक्षित थे। अधिकारी जनता को सताते नहीं थे। उसने यह भी लिखा है कि पाटलीपुत्र में महाराजा अशोक का महल देख कर वह आश्चर्यचकित हुआ। वह राजप्रासाद (महल) इतना सुन्दर था कि इसे मनुष्यों ने नहीं देवताओं ने बनाया होगा। चीन के यात्री ह्वेनसाँग, जोकि 629 ईसवी में भारत में आया था, ने लिखा है कि ब्राह्मण अपनी उच्च शिक्षा, धर्मपरायणता और त्याग के लिये आदरणीय थे और संन्यासी भी तपस्वी, त्यागी और माननीय होते थे। उसने राजा हर्षवर्धन के बारे में लिखा है कि वह इलाहाबाद में संगम पर हर पाँच वर्ष पूरे होने पर अपना सारा राजकोष दान कर देता था, यहाँ तक कि अपने वस्त्र भी दे देता था और पहनने के लिए उसने अपनी बहन से वस्त्र लिये थे। इन सभी बातों को पढ़कर क्या कोई कह सकता है कि श्रीकृष्ण की 16,108 पटरानियाँ थीं और उनमें से हरेक से उनकी 10 सन्तानें हुईं या श्री राम एवं राजा दशरथ के त्रेतायुग में, यज्ञ में असुर विघ्न डालते थे? लगता है कि बात का रूप अवश्य ही कुछ बदल गया है। जब 300 ईसवी पूर्व में ही भारत में न चोरी-चकारी थी और न लड़ाई-झगड़े तो उस से अति प्राचीन काल में तो अवश्य ही लोग अति समृद्ध, निरोग, अहिंसक और दिव्यगुण सम्पन्न होंगे। जब उस काल में ही मार्ग सुरक्षित थे तो उससे पहले बहन द्वारा भाई को स्थूल रक्षा के लिए 'रक्षा-बन्धन' बाँधने की क्या जरूरत रही होगी?

इस प्रकार यदि स‌द्विवेक का प्रयोग करते हुए त्योहारों के बारे में जानने की कोशिश करेंगे तभी सत्यता को जान सकेंगे। आज कुछ लोग धैर्य और सहिष्णुता को छोड़ कर, क्रोधान्वित हो कर बात को सुनते वा पढ़ते हैं। इस विधि सत्यता के मर्म को नहीं जान सकते। अतः पाठकों से निवेदन है कि वे सात्विक स्वमान को धारण कर के क्षीर-नीर विवेक का प्रयोग करते हुए इस पुस्तक में पिरोई गई लेख-माला की सुगन्धि लेने का यत्न करें। इस पुस्तक का प्रयोजन ही भारत की वास्तविक महानता, यहाँ की प्राचीन संस्कृति की सच्ची उत्तमता, यहाँ के दर्शन की तार्किक एवं नैतिक श्रेष्ठता और मर्यादाओं की दिव्यता को प्रगट करना है। इस भाव से पढ़ने से पढ़ने वाले की अपनी भी स्थिति महान् एवं योगयुक्त बनेगी। इसके लिए शुभ कामनाएं।

समय-समय पर मुख्य त्योहारों पर जो लेख किसी भाव को ले कर लिखे गये हैं, उनका संकलन रूप पुष्प गुच्छ पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है ताकि जो उन्हें पहले नहीं पढ़ सके, वे लाभ ले सकें और जिन्होंने इन्हें पहले पढ़ा है, वे इनकी गहराई में जा कर ज्ञान-रत्न पा सकें और दोनों ही प्रकार के पाठकवृन्द दूसरों को भी इनका लाभ दे सकें।

Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at help@exoticindia.com
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through help@exoticindia.com.
Add a review
Have A Question
By continuing, I agree to the Terms of Use and Privacy Policy
Book Categories