"चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।"
हनुमान चालीसा की यह चौपाई चन्द्रेश जी की 'वर्तमान में हनुमान' पुस्तक के सन्दर्भ में सटीक बैठती है। हनुमान जी अजर, अमर हैं, अतः हर युग में उनके जीवन- चरित्र की प्रासंगिकता है। ऐसा माना जाता है कि जहाँ भी रामकथा का आयोजन होता है, वहाँ किसी न किसी रूप में हनुमान जी की उपस्थिति अवश्य होती है। प्रबंध सार्वभौमिक है, उसी प्रकार चन्द्रेश जी के हनुमान जी मैनेजमेंट गुरू के रूप में सर्वत्र प्रासंगिक हैं।
अध्यात्म के दर्शन से परिपूर्ण प्रबंध के सामयिक विषय पर समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए उपयोगी इस पुस्तक में लेखक ने हनुमानजी की विविध लीलाओं से वर्तमान परिवेश की जीवनशैली, कार्यविधि, व्यवहार, प्रबंधन आदि को न केवल समझाने की चेष्टा की है अपितु इन लीलाओं में निहित भावों को अपने जीवन में आत्मसात करने की आवश्यकता बताई है। एक तरफ लेखक हनुमान जी से प्रबंध के गुण सीखने की आवश्यकता पर जोर देते हैं, दूसरी तरफ 'राम काज लगि तव अवतारा' जैसे सार्थक भावों को जीवनशैली में अपनाने के लिए मार्मिक दृष्टांत देते हैं। इस तरह प्रबंध का आध्यात्मिक आनंद देती यह पुस्तक अनुपम एवं अद्वितीय है।
लारेन्स ए. एप्पले के अनुसार "प्रबंध व्यक्तियों का विकास है न कि वस्तुओं का निर्देशन ।"
अर्थात् प्रबंध का मुख्य कार्य व्यक्तियों का विकास है, इसीलिए उन्हें मानव संसाधन कहा गया है। आज प्रबंध की एक महत्त्वपूर्ण शाखा के रूप में मानव संसाधन प्रबंध (HRM) पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा है। व्यक्तियों के विकास के मूल में व्यक्तित्व का विकास समाहित है। व्यक्तित्व विकास के महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं यथा ईमानदारी, कर्त्तव्यनिष्ठा, जवाबदेही, तत्परता, निर्णय लेने की क्षमता, अनुशासन, संवेदनशीलता आदि पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा है। लेखक ने उक्त सभी गुणों को आत्मसात करने के लिए हनुमानजी के जीवन चरित्र को जानने की महत्त्वपूर्ण सीख हमें दी है।
पुस्तक में हनुमान जी के जीवन चरित्र के विविध पक्षों को समाहित करते हुए विभिन्न दृष्टान्तों में तुलसीदास जी कृत श्रीरामचरितमानस की चौपाइयों, दोहों आदि का यथा आवश्यक सन्दर्भ दिया गया है, साथ ही महापुरुषों के कथनों के बिन्दुवार उद्धरण से पुस्तक पूर्व का पश्चिम से समन्वय स्थापित करा रही है।
विद्वज्जनों की उक्ति है "सरल लिखना कठिन है और कठिन लिखना सरल" ।
लेखक के साहित्यिक अनुराग और सामान्य संवाद भाषाशैली के अनूठे प्रयोग से पुस्तक सरल एवं सुबोध बनकर हर आयुवर्ग के पाठक के हृदय को एक पृष्ठ से दूसरे पृष्ठ को पढ़ने के लिए उद्यत करेगी। उन्होंने हनुमान जी को निश्छल एवं निर्मल मन से हर कार्य को, न केवल समर्पित करने के विचार दिए हैं अपितु उनसे प्रत्येक कार्यविधि, व्यवहार, प्रबंधन को सीखने पर जोर दिया है।
जहाँ तुलसी के हनुमान जी रामजी के परम भक्त हैं, उनका क्षण-क्षण रामजी को समर्पित हैं, वहीं लेखक चन्द्रेश के हनुमान जी 'ज्ञानीनामग्रण्यं' होकर कभी गुरु अथवा मेंटोर के रूप में जीवन संवारने के गुरु मंत्र देते दिखाई देते हैं तो कभी 'वानराणामधीशं 'बनकर अच्छे नेतृत्वकर्ता के रूप में अपनी पहचान स्थापित करते दिखाई देते हैं। किसी भी कम्पनी, संस्था अथवा प्रतिष्ठान की सफलता उनके नेतृत्व की कुशलता पर ही निर्भर करती है।
यह पुस्तक हनुमान जी की पूजा अर्चना से आगे बढ़कर उनके पदचिह्नों पर चलने को अधिक प्रेरित करती है।
रामभक्त हनुमान जी के "राम काजु किन्हें बिनु मोहि कहाँ विश्राम" वाले दृढ़ संकल्प और एकाग्रता से लेखक वर्तमान की किंकर्तव्यविमूढ़ पीढ़ी को लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह करते दिखाई देते हैं। चाहे विद्यार्थी हो अथवा शिक्षक, कृषक हो या उद्योगपति, व्यापारी हो या कोई भी उद्यमी, सभी अपने लक्ष्य के प्रति सजग और समर्पित होने चाहिए। लक्ष्य के प्रति एकाग्रता और निरन्तर कर्मशीलता के गुण विकसित करने में पुस्तक 'वर्तमान में हनुमान' सहायक सिद्ध हो सकती है।
आदिकवि वाल्मीकि जी ने रामायण में हनुमान जी को 'वाक्यज्ञ' कहा है। हनुमान जी के अद्भुत संवाद कौशल और बुद्धिमत्ता के कारण ऐसा कहा गया है। यह कौशल राम-लक्ष्मण से प्रथम भेंट और समुद्र के मार्ग में सुरसा से संवाद के समय हम देखते हैं। साथ ही लंका में विभीषण से भेंट और रावण की सभा में संवाद के समय भी हम दर्शन करते हैं।
वर्तमान समय में भाषिक शुचिता और संवाद की गरिमा बनाए रखना श्रोता -वक्ता की जिम्मेदारी है। हनुमान जी के व्यक्तित्व की इस विशिष्टता और सम्प्रेषण कौशल को लेखक ने वर्तमान समय में प्रासंगिक माना है। सम्प्रेषण कौशल के बिना किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त होना संदिग्ध है। बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ विज्ञापन के विशिष्ट प्रस्तुतीकरण और उनके प्रबन्धकों-कार्मिकों के सम्प्रेषण कौशल के सहारे ही आगे बढ़ती है।
पुस्तक में हनुमान जी के आध्यात्मिक साहस के सहारे वर्तमान समय में सफलता के लिए युवाओं में मनोबल बढ़ाने एवं आत्मविश्वास का संचार करने का प्रयास किया गया है। यह आध्यात्मिक साहस और तज्जन्य मनोबल किसी भी असंभव प्रतीत होने वाले कार्य को संभव बनाने हेतु अनथक परिश्रम और पुरुषार्थ को जाग्रत करने का काम करेगा।
जहाँ "रामकाज करिबे को आतुर" भाव रखने वाले हनुमान जी हर कार्य में आगे बढ़कर जिम्मेदारी लेने का भाव रखते हैं, उसी भाव को पुस्तक 'वर्तमान में हनुमान' ने 'सेंस ऑफ ओनरशिप' के रूप में सिद्ध करने में सफलता प्राप्त की है। यह सफलता हर कार्यक्षेत्र में लगे हुए कार्मिकों में जवाबदेही का भाव अंकुरित करने में सहायक सिद्ध होगी। जिस प्रकार "कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं ॥" चौपाई के माध्यम से तुलसी जी ने हनुमान जी को हर कार्य में सक्षम एवं सर्वशक्तिमान माना है, उसी भाव से चन्द्रेश जी 'वर्तमान में हनुमान' पुस्तक के माध्यम से पाठकों को जीवन में प्रत्येक कार्य में पूर्ण मनोयोग एवं कर्मनिष्ठा को ध्येय बनाकर करने पर सफलता के लिए आश्वस्त करते नजर आते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक हनुमान जी के व्यक्तित्व को आदर्श मानकर मानव जीवन में व्यक्तित्व विकास के विभिन्न पहलुओं को छूती हुई एक श्रेष्ठ मार्गदर्शिका प्रतीत होती है। इसमें आपको जीवन के विभिन्न मोड़ पर आवश्यक मूल्यों जैसे मर्यादा, लचीलापन, समर्पण और भावनात्मक बौद्धिक कौशल का दिग्दर्शन करने का अवसर प्राप्त होगा।
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