पुरातन साहित्य हमारी सदियों पुरानी संस्कृति का आधार है, साथ ही हमारे आचार-विचार और संस्कारों की संजीवनी है और उसका पोषक है। इसी साहित्य के सहयोग से आज बच्चों में कुछ संस्कार पनप रहे हैं। वर्तमान टेलीविजन संस्कृति के दौर में जहाँ बालकों के जीवन से कहानी, किस्से, गीत, कविता, लोरी का स्थान टी.वी., वीडियो एवं कम्प्यूटर लेते जा रहे हैं वहीं पुरातन संस्कृत साहित्य की अमूल्य धरोहर पंचतंत्र, हितोपदेश, जातक कथाएँ आज भी बच्चों के मन को अत्यंत रुचिकर हैं।
श्रीमन नारायण स्वामी कृत हितोपदेश का कथा-साहित्य में एक श्रेयस्कर योगदान है। हितोपदेश की कहानियों को विष्णु शर्मा के पंचतंत्र से लिया गया है। लेकिन इसमें पंचतंत्र के पाँच भेदों के स्थान पर चार भेद क्रमशः मित्रलाभ, सुहृदभेद, विग्रह एवं संधि को लिया गया है। ये चारों भेद नीति, ज्ञान और विवेक की बातों से भरे हैं। हितोपदेश की ये कहानियाँ पंचतंत्र से ली गई हैं जो कि विष्णु शर्मा ने पाटिलपुत्र के राजा सुदर्शन के मूर्ख पुत्रों को सुनाई थीं। इन्हीं कहानियों को सुनकर व गुनकर राजा सुदर्शन के पुत्रों ने राजनीति व धर्म की पताका को फहराया।
पण्डित विष्णु शर्मा की इन्हीं कहानियों को श्रीमन नारायण स्वामी ने हितोपदेश में क्रमबद्ध रूप से एकत्रित कर एक रोचक तरीके से प्रस्तुत की हैं। जीव-जन्तुओं को आधार बनाकर लिखी गई ये सभी कहानियाँ पाठकों का मनोरंजन तो करती ही हैं साथ ही उनके ज्ञान, उनकी बौद्धिकता को भी गुणोत्तर करती हैं। इन कहानियों में जितनी रोचकता है उतना ही ज्ञान और नीति का भण्डार है।
संकलनकर्त्ता ने इन कथाओं को संकलित कर एक सुंदर पुस्तक का रूप दिया है। यह बच्चों के लिए ज्ञानात्मक, बोधात्मक एवं गुणात्मक दृष्टिकोण से श्रेयस्कर होगी, ऐसा हमारा विश्वास है।
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