center> प्रस्तावना
मृत्यु-यह शब्द जितना गूढ़ है, उतना ही जिज्ञासा एवं भय का विषय भी। युगों से मानव जीवन के इस अन्तिम सत्य को समझने की चेष्टा करता आया है, किंतु प्रश्न वही बना रहता है मृत्यु के बाद क्या? आत्मा क्या है? क्या जीवन यहीं समाप्त हो जाता है या यह किसी और यात्रा की शुरुआत है? मृत्यु सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि एक चेतन यात्रा का वह पड़ाव है जहाँ से आत्मा अपने आगे की दिशा तय करती है। इसी प्रकार 'क्या जीवन केवल श्वास और शरीर तक ही सीमित है?' यदि ऐसा होता, तो चेतन और जड़ में कोई अंतर नहीं होता। किंतु हम जानते हैं कि जीवन मात्र जैविक गतिविधियों का समुच्चय नहीं, अपितु उससे कहीं अधिक है। अनुभूति, विचार, स्मृति, इच्छा, संकल्प, प्रेम, भय, ज्ञान, आत्मबोध, चेतना, संस्कार यह सब कुछ जीवन का ही अंग इसका उत्तर न केवल शरीर और विज्ञान से, बल्कि दर्शन, आध्यात्म और संस्कृति से भी जुड़ा है। न्यूरोसायंस, क्वांटम फिजिक्स और साइकोलॉजी - ये सभी जीवन के उन पहलुओं को समझने का प्रयास कर रहे हैं जो केवल 'श्वास' से परे हैं। क्वांटम भौतिकी एवं न्यूरोसाइंस भी कहती है कि चेतना (Consciousness) केवल मस्तिष्क की उपज नहीं हो सकती, पदार्थ की मूलभूत इकाइयाँ 'सूचना' (information) और 'संभाव्यता' (probability) से संचालित होती हैं, जो मृत्यु के साथ समाप्त नहीं होतीं। क्या मृत्यु के बाद हमारा जीवन अचानक समाप्त हो जाता है? प्रश्नोपनिषद, आयुर्वेद, चरक संहिता आदि में प्राणवायु एवं उसके भेदों की चर्चा की गई है जिसका सूक्ष्म विवेचन इस ग्रन्थ में भी है। साँस रुकने के साथ ही प्राण वायु भी शरीर से निकलना शुरू हो जाती है और 48 से 90 मिनट के अंदर पूरी तरह से यह बाहर हो जाती है या यूं कहें इतने समय में शरीर प्राण विहीन हो जाता है, इसलिए मरने के तत्काल बाद दाह क्रिया या अन्य विधि से मृत्यु संस्कार न करने की सलाह दी जाती है और कम से कम डेढ़ घंटे (90 मिनट) का इंतजार करना आवश्यक माना गया है। इसी प्रकार व्यान नामक प्राण वायु को शरीर से पूरी तरह से बाहर निकलने मे ग्यारह से 14 दिन या उससे भी अधिक समय लग सकता है। मरने के बाद भी जीवन के कुछ तत्व फिर भी अवशेष रह जाते हैं भले ही ये तत्व हमें प्रत्यक्ष रूप से दृष्टिगोचर न हो पाते हों। इसी कारण हमारे शास्त्रों में मृत्यु बाद के संस्कारों एवं कर्म विधि जैसे दशगाव, श्राद्ध, पिंडदान आदि का विधान किया है, जिससे मृतक के अवशेष इन जीवन तत्वों की आगे की यात्रा में हम सहायक हो सकें। यह पुस्तक 'जीवन-मृत्यु रहस्य एवं मृत्यु संस्कार (एक वैज्ञानिक पहल)' इसी विषय पर एक समग्र, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। यह ग्रन्थ न केवल मृत्यु को समझने का, बल्कि उससे जुड़ी समस्त प्रक्रियाओं, प्रतीकों, संस्कारों और गूढ़ सिद्धांतों को सरल भाषा में प्रस्तुत करने का एक विनम्र प्रयास है। वस्तुतः जीवन और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जब हम उसके एक भाग जीवन यानी head को देख रहे होते हैं, तव मृत्यु वाला tail भाग भी उसी के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा रहता है और इसी प्रकार जब हम tail यानि मृत्यु वाले भाग को स्पर्श कर रहे होते हैं तो दूसरी ओर जीवन वाला भाग हमारी प्रतीक्षा कर रहा होता है, बस एक समय में हम एक भाग को ही देख पाते हैं। इस पुस्तक में मैंने मृत्यु, आत्मा तथा ईश्वर जैसे गहन विषयों को धार्मिक ग्रन्थों के सिद्धांतों एवं आधुनिक विज्ञान के निष्कर्षों के आलोक में समझने का प्रयास किया है। यह केवल एक धार्मिक या दार्शनिक विवेचन नहीं है, बल्कि एक वैचारिक सेतु है जो प्राचीन ज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बीच सेतु निर्माण करता है। इस ग्रन्थ में न केवल मृत्यु की घटना, बल्कि 'काल' के विस्तार -यानी मृत्यु की सीमाओं और उसके परे क्या है इस पर विचार किया गया है। इस विषय पर वेद, उपनिषद्, गीता, बौद्ध और जैन दर्शन जैसे प्राचीन स्रोतों में वर्णित आत्मा की अवधारणा, आत्मा की यात्रा, उसके स्वरूप और मृत्यु के पश्चात् के संभावित अनुभवों को, मृत्यु के पश्चात् की अवस्थाएं, तथा ईश्वर की उपस्थिति को आधुनिक तर्क, न्यूरो साइंस, क्वांटम फिजिक्स एवं जीवन ऊर्जा से संबंधित सिद्धांतों के साथ समन्वित करने का विनम्र प्रयास इस पुस्तक में किया गया है। पुस्तक में षोडश संस्कारों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है, जिसमें जीवन के प्रत्येक पड़ाव को शुद्धता और चेतना की दृष्टि से देखा गया है। विशेष रूप से अन्त्येष्टि संस्कार, और उससे जुड़ी प्रक्रियाओं की वैज्ञानिकता एवं आध्यात्मिक गहराई पर विस्तार से चर्चा की गई है। मरणासन्न व्यक्ति के लिए परिजनों के कर्तव्य, जैसे शांत वातावरण, मन्त्रोच्चारण, ध्यान तथा आध्यात्मिक सहयोग का क्या प्रभाव पड़ता है यह भी पुस्तक का एक अत्यन्त संवेदनशील भाग है। मृत्यु के समय और बाद में कुश, तिल, तुलसी, लवण, दान, तथा श्राद्ध कर्म आदि का जो धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व है, उस पर भी शोधपूर्ण चर्चा की गई है। ये प्रतीकात्मक वस्तुएँ केवल परम्पराएं नहीं हैं, बल्कि ऊर्जा, पवित्रता और शांति से जुड़ी गूढ़ प्रक्रियाएं हैं। पुस्तक में यह भी बताया गया है कि विभिन्न काल, संस्कृतियों और धर्मों में अन्तिम संस्कार के क्या-क्या भिन्न रूप हैं मिस्र की ममीकरण प्रक्रिया से लेकर ईसाई, मुस्लिम, पारसी, बौद्ध, जैन और अन्य परम्पराओं तक। इन सबके बीच वैदिक पद्धति में दाह संस्कार को वैज्ञानिक दृष्टि से किस प्रकार श्रेष्ठ ठहराया गया है, यह एक विशेष अध्याय का विषय है। पुस्तक में आत्मा, ईश्वर और मृत्यु के सिद्धांतों को वैदिक, औपनिषदिक और पौराणिक ज्ञान के साथ आधुनिक विज्ञान, तत्त्वमीमांसा, क्वांटम भौतिकी तथा चेतना विज्ञान की दृष्टियों से जोड़ने का प्रयास किया गया है।
लेखक परिचय
प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखक श्री गोविन्द मुरारी अग्रवाल मूलतः भौतिक वैज्ञानिक हैं। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से बी. एस.सी. (ऑनर्स) एवं भौतिक विज्ञान में एम.एससी. की उपाधि प्राप्त करने के उपरांत कुछ वर्षों तक शोध वैज्ञानिक के रूप में कार्य किया है। बाद मे मेरठ विश्वविद्यालय से एल.एल. बी. की भी डिग्री प्राप्त की, किन्तु प्रारम्भ से ही उनकी अभिरुचि वैदिक एवं संस्कृत अध्ययन में रही, फलतः उन्होंने सेवानिवृत्ति के कई वर्षों के पश्चात् विशेष योग्यता के साथ संस्कृत विषय में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की। इनका जन्म जिला औरैया इटावा के दिबियापुर नामक कस्बे में 30 सितम्बर 1951 को हुआ था तथा इनकी माता स्व. श्रीमती सीता देवी एवं पिता स्व. श्री ओम प्रकाश थे। लेखक ने, सहायक आयुक्त (वर्तमान नाम पद) बिक्री-कर से अपनी राजकीय सेवा प्रारंभ करके लगभग 36 वर्षों तक उत्तरप्रदेश-शासन के विभिन्न उत्तरदायित्वपूर्ण प्रशासनिक तथा न्यायिक पदों पर कार्य करने के उपरांत सदस्य अधिकरण वाणिज्य कर के पद से सरकारी सेवा से अवकाश प्राप्त किया है। वे अब पूर्णतः वेद, भारतीय दर्शन एवं अध्यात्मविद्या के अध्ययन, वैज्ञानिक शोध एवं तत्संबंधी लेखन के साथ-साथ हिन्दी काव्य रचना में व्यस्त रहते हैं।
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