भारतीय संस्कृति को जीवित जाग्रत रखने में भारतीय सन्तों का एक महान् योगदान है। उन्होंने अपनी दिव्यशक्ति, प्रभाव-शाली जीवन और अलौकिक प्रतिभा से तत्कालीन जनता के हृदयों में जहाँ धर्म की भावना को अक्षुण्ण बनाये रखा, उसके साथ ही कालचक्र के प्रभाव से तथा अविद्या आदि अन्य कारणों से आई हुई बुराइयों को दूर करने में भी बड़ा योग दिया है।
इस सन्त-परम्परा के अधिकतर सन्त कवि भी हुए हैं। उन्होंने अपनी कविता के हृदयंगम भावों द्वारा जनता को मुग्ध बनाये रखा।
महात्मा बसवेश्वर कर्णाटक (मैसूर) में उत्पन्न हुए। उन्होंने धार्मिक अन्धविश्वासों को आमूल-चूल उखाड़ने के लिए काम किया। ऊँच-नीच के भेद-भाव को मिटाने के लिए 'अनुभव मंटप' नामक संस्था में जहां राजा सदस्य बनाये वहाँ दर्जी, धोबी, नाई आदि श्रेगी के लोगों को भी उनके समान ही सदस्यता दो। इस संस्था के मूल मन्त्र थे- नैतिकता, चरित्र-निर्माण और वर्ण-वर्ग-विहीन समाज की स्थापना ।
जनता भिन्न-भिन्न देवताओं को मानती थी। उन्हें प्रसन्न करने के लिए विविध प्राणियों की बलि चढ़ाई जाती थी। इस बहु देवतावाद का उन्होंने खण्डन किया। धर्म के नाम पर होने वाली प्राणि-हिंसा की निन्दा को।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist