ग्रन्थ परिचय
दीपावली के परम पावन प्रांजल पर्व पर प्रबुद्ध पाठकों जिज्ञासु साधकों तथा भारीतय संस्कृति और संस्कारों से आलोकित समस्त परिवाजनों के समक्ष 'दीपावली' एवं महालक्ष्मी पूजन विधान नामक यह लघु कृति प्रस्तुत है। इस कृति के अन्तर्गत दीपावली के स्वार्णिम सुरभित सुसज्जित पर्व पर गणेश-लक्ष्मी के सविधि पूजन का विधि-विधान विवेचित एवं व्याख्यायित है। दीपावली के अद्भुत पर्व पर गणेश-लक्ष्मी किसी आचार्य अथवा पुरोहित से न करवाकर यथाशक्ति स्वयं ही करना चाहिए, ताकि आराधकगण महालक्ष्मी की कृपा-प्राशीष से स्वयं के परिवार को स्वय: ही आलोकित करके अपार धन और समृद्धि का स्वामित्व प्राप्त कर सकें।
इस कृति में प्रचुर धनागम हेतु अन्यान्स आराधानाएँ मंत्र जप, स्त्रोत्र पाठ और अनुष्ठान प्रावधान समायोजित किये गये हैं जिन्हें दस पृथक्- पृथक् अध्यायों में व्याख्यायित व विवेचित किया गया है ताकि प्रबुद्ध पाठकगण अपनी रूचि और आकांक्षा के अनुरूप साधना का संपादन करके महालक्ष्मी के कृपा प्रसाद से अभिषिक्त होने का सुख और आनन्द प्राप्त कर सकें।
दीपावली एवं नवरात्र के स्वर्णिम पर्व पर, मंत्र जप और स्तोत्र पाठ आदि श्रद्धापूर्वक सम्पन्न करने से भक्तिभावना के भव्य भुवन में त्रिभुवन मोहिनी, त्रिपुर सुन्दरी महालक्ष्मी के अप्रत्याशित और असीम कृपा प्रसाद से समस्त जीवन आलोकित हो उठता है। इस कृति में अत्यन्त सुगम, त्वरित फलप्रदाता मंत्र, साधानाएँ समायोजित की गई हैं जिनके सविधि सम्पादन से साधक और पाठकगण समृद्धि और सम्पन्नता के स्वर्णभामयी सोपान पर अवश्य अग्रसर होंगे, इसमें किंचित सन्देह नहीं है।
ज्योतिष और मंत्रशास्त्र पर केन्द्रित साठ से भी अधिक वृहद् शोध प्रबन्धों के रचयिता डा. मृदुला त्रिवेदी तथा टी.पी. त्रिवेदी की 'दीपावली एवं महालक्ष्मी पूजन विधान' नामक यह अनुपम कृति, समृद्धि और सम्पन्नता के साथ-साथ विपुल धनागम और धनार्जन के इच्छुक, साधकों और पाठकों के लिए संग्रहणीय और अनुकरणीय है।
संक्षिप्त परिचय
श्रीमती मृदुला त्रिवेदी देश की प्रथम पक्ति के ज्योतिषशास्त्र के अध्येताओं एव शोधकर्ताओ में प्रशंसित एवं चर्चित हैं । उन्होने ज्योतिष ज्ञान के असीम सागर के जटिल गर्भ में प्रतिष्ठित अनेक अनमोल रत्न अन्वेषित कर, उन्हें वर्तमान मानवीय संदर्भो के अनुरूप संस्कारित तथा विभिन्न धरातलों पर उन्हें परीक्षित और प्रमाणित करने के पश्चात जिज्ञासु छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करने का सशक्त प्रयास तथा परिश्रम किया है, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने देशव्यापी विभिन्न प्रतिष्ठित एव प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओ मे प्रकाशित शोधपरक लेखो के अतिरिक्त से भी अधिक वृहद शोध प्रबन्धों की सरचना की, जिन्हें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि, प्रशंसा, अभिशंसा कीर्ति और यश उपलव्य हुआ है जिनके अन्यान्य परिवर्द्धित सस्करण, उनकी लोकप्रियता और विषयवस्तु की सारगर्भिता का प्रमाण हैं।
ज्योतिर्विद श्रीमती मृदुला त्रिवेदी देश के अनेक संस्थानो द्वारा प्रशंसित और सम्मानित हुई हैं जिन्हें 'वर्ल्ड डेवलपमेन्ट पार्लियामेन्ट' द्वारा 'डाक्टर ऑफ एस्ट्रोलॉजी' तथा प्लेनेट्स एण्ड फोरकास्ट द्वारा देश के सर्वश्रेष्ठ ज्योतिर्विद' तथा 'सर्वश्रेष्ठ लेखक' का पुरस्कार एव 'ज्योतिष महर्षि' की उपाधि आदि प्राप्त हुए हैं । 'अध्यात्म एवं ज्योतिष शोध सस्थान, लखनऊ' तथा 'द टाइम्स ऑफ एस्ट्रोलॉजी, दिल्ली' द्वारा उन्हे विविध अवसरो पर ज्योतिष पाराशर, ज्योतिष वेदव्यास ज्योतिष वराहमिहिर, ज्योतिष मार्तण्ड, ज्योतिष भूषण, भाग्य विद्ममणि ज्योतिर्विद्यावारिधि ज्योतिष बृहस्पति, ज्योतिष भानु एव ज्योतिष ब्रह्मर्षि ऐसी अन्यान्य अप्रतिम मानक उपाधियों से अलकृत किया गया है ।
श्रीमती मृदुला त्रिवेदी, लखनऊ विश्वविद्यालय की परास्नातक हैं तथा विगत 40 वर्षों से अनवरत ज्योतिष विज्ञान तथा मंत्रशास्त्र के उत्थान तथा अनुसधान मे सलग्न हैं। भारतवर्ष के साथ-साथ विश्व के विभिन्न देशों के निवासी उनसे समय-समय पर ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त करते रहते हैं । श्रीमती मृदुला त्रिवेदी को ज्योतिष विज्ञान की शोध संदर्भित मौन साधिका एवं ज्योतिष ज्ञान के प्रति सरस्वत संकल्प से संयुत्त? समर्पित ज्योतिर्विद के रूप में प्रकाशित किया गया है और वह अनेक पत्र-पत्रिकाओं में सह-संपादिका के रूप मे कार्यरत रही हैं।
श्री.टी.पी त्रिवेदी ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से बी एससी के उपरान्त इजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण की एवं जीवनयापन हेतु उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद मे सिविल इंजीनियर के पद पर कार्यरत होने के साथ-साथ आध्यात्मिक चेतना की जागृति तथा ज्योतिष और मंत्रशास्त्र के गहन अध्ययन, अनुभव और अनुसंधान को ही अपने जीवन का लक्ष्य माना तथा इस समर्पित साधना के फलस्वरूप विगत 40वर्षों में उन्होंने 460 से अधिक शोधपरक लेखों और 80 शोध प्रबन्धों की संरचना कर ज्योतिष शास्त्र के अक्षुण्ण कोष को अधिक समृद्ध करने का श्रेय अर्जित किया है और देश-विदेश के जनमानस मे अपने पथीकृत कृतित्व से इस मानवीय विषय के प्रति विश्वास और आस्था का निरन्तर विस्तार और प्रसार किया है।
ज्योतिष विज्ञान की लोकप्रियता सार्वभौमिकता सारगर्भिता और अपार उपयोगिता के विकास के उद्देश्य से हिन्दुस्तान टाईम्स मे दो वर्षो से भी अधिक समय तक प्रति सप्ताह ज्योतिष पर उनकी लेख-सुखला प्रकाशित होती रही । उनकी यशोकीर्ति के कुछ उदाहरण हैं- देश के सर्वश्रेष्ठ ज्योतिर्विद और सर्वश्रेष्ठ लेखक का सम्मान एव पुरस्कार वर्ष 2007, प्लेनेट्स एण्ड फोरकास्ट तथा भाग्यलिपि उडीसा द्वारा 'कान्ति बनर्जी सम्मान' वर्ष 2007, महाकवि गोपालदास नीरज फाउण्डेशन ट्रस्ट, आगरा के 'डॉ. मनोरमा शर्मा ज्योतिष पुरस्कार' से उन्हे देश के सर्वश्रेष्ठ ज्योतिषी के पुरस्कार -2009 से सम्मानित किया गया ।'द टाइम्स ऑफ एस्ट्रोलॉजी' तथा अध्यात्म एव ज्योतिष शोध संस्थान द्वारा प्रदत्त ज्योतिष पाराशर, ज्योतिष वेदव्यास, ज्योतिष वाराहमिहिर, ज्योतिष मार्तण्ड, ज्योतिष भूषण, भाग्यविद्यमणि, ज्योतिर्विद्यावारिधि ज्योतिष बृहस्पति, ज्योतिष भानु एवं ज्योतिष ब्रह्मर्षि आदि मानक उपाधियों से समय-समय पर विभूषित होने वाले श्री त्रिवेदी, सम्प्रति अपने अध्ययन, अनुभव एव अनुसंधानपरक अनुभूतियों को अन्यान्य शोध प्रबन्धों के प्रारूप में समायोजित सन्निहित करके देश-विदेश के प्रबुद्ध पाठकों, ज्योतिष विज्ञान के रूचिकर छात्रो, जिज्ञासुओं और उत्सुक आगन्तुकों के प्रेरक और पथ-प्रदर्शक के रूप मे प्रशंसित और प्रतिष्ठित हैं । विश्व के विभिन्न देशो के निवासी उनसे समय-समय पर ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त करते रहते हैं।
पुरोवाक्
पाण्डित्य शोभते नैव न शोभन्ते गुणा नरे ।
शीलत्वं नैव शोभते महालक्ष्मी त्वया बिना ।।
तावद् विराजते रूपं तावच्छीलं विराजते ।
तावद् गुणा नराणां च याकूलभी: प्रसीदति ।।
लक्ष्मी के अभाव में पाण्डित्य गुण तया शीलयुक्त व्यक्ति भी प्रभावरहित एवं आभाविहीन हो जाते हैं । लक्ष्मी की कृपा होने पर ही व्यक्तियों में रूप शील और गुण विद्यमान होते हैं । जिनसे लक्ष्मी प्रसत्र होती है वह समस्त पापोंसे मुक्त होकर राजा द्वारा एवं समाज में पूजनीय और प्रशंसनीय होते हैं । झिलमिलाती, स्वर्णाभामयी दीपशिखाओं की लहराती पंक्तियों, सुगन्धित द्रव्यों, सुरभित पुष्पमालाओं से सुसज्जित विशाल अट्टालिकाओं, सामान्य भवनों तथा विविध आलोकित प्रांगणों में, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या की सिन्दूरी स्वर्णिम संध्या के समय, जब गोचर का चन्द्रमा तुला राशि के स्वाती नक्षत्र में आदित्य से संयुक्ता होकर, वृषभ, सिंह, वृश्चिक अथवा कुम्भ लग्नोदय काल के अनुकूल मुहूर्त में विचरण करता है, उस समय अविचलित आस्था, अप्रतिम अनुराग और अखण्डित एकाग्रता, श्रद्धा और निष्ठा के साथ, अन्यान्य अभिलाषाओं, आकांक्षाओं और अपेक्षाओं की संसिद्धि हेतु आकुल मन से हर्षोल्लास और अंतरंग आनन्द की अनुभूति तथा अलौकिक अनुराग के साथ, हम मच भक्ति भावना के भव्य भुवन में त्रिभुवन मोहिनी, त्रिपुरसुन्दरी, महालक्ष्मी, सिन्धु सुता, सुधाकर सहोदरा एवं उदधि तनया के स्वागत हेतु आराधना, अर्चना और अभ्यर्थना करते हैं। 'दीपावली एवं महालक्ष्मी पूजन विधान' शीर्षांकित यह लघु कृति मुख्यत: दीपावली एवं महालक्ष्मी पूजन पर केन्द्रित है । दीपावली की वर्षपर्यन्त प्रतीक्षा करने की परम्परा इसलिए है, क्योंकि यह पाँच महत्त्वपूर्ण पर्केत्सव के संयुक्त आगमन, आयोजन, सम्पादन और उल्लास का महकता, मुस्कराता मधुवन है जिसमें दशो दिशाएं, पर्व शृंखला के हर्षप्रदायक आभास से अभिगुंजित हो उठती हैं । मानव समाज, अपनी समस्त चिन्ताओं, व्याथाओं, व्यस्तताओं, विवशताओं को पूर्णत: व्यवस्थित एवं विस्मृत करके पर्वो और त्योहारों के इस अनुपम सागर में समाविष्ट हो जाता है । आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि से नवरात्र का प्रारम्भ होता है जिसमें सभी हिन्दू पुरुष और महिलाएं पूरी आस्था, निष्ठा एवं विश्वास के साथ श्रद्धापूर्वक त्रिपुरसुन्दरी महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, जगतद्धात्री मातादुर्गा की आराधना तथा विधि-विधान सहित पूजन-अर्चना करते हैं । अनेक आराधक नवरात्रपर्यन्त व्रत रखते हैं । नवरात्रकाल पर्यन्त साधक भक्तिभावना से आलोकित होकर विशिष्ट ऊर्जा, सक्रियता व शक्ति को स्वयं में समायोजित करते हैं । अलौकिक भक्तिभाव से उनका मन और तन आलोकित हो उठता है । नवरात्र के पश्चात् दशमी के दिन दशानन को पराजित करने के उपरान्त, लंका पर विजय प्राप्त करके भगवान राम लौटकर अयोध्या आते हैं । अत: दशहरे के बीस दिवस पश्चात् दीपावली का पर्वोत्सव हर्षोल्लास के साथ आयोजित किया जाता है । कार्तिक मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि से कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि तक का समय हिन्दुओं के लिए सभी प्रकार से ईश्वर की भक्ति में ध्यान मग्न होकर पूजन पाठ करते हुए उत्सव और उल्लास के संवर्द्धन हेतु सुनिश्चित होता है । पर्वोत्सव काल के इस समयांतर में साधक, आराधक तथा भक्तगण दिव्य भावों की नकारात्मकता को सकारात्मकता में रूपांतरित करते हैं जिससे वह दिव्य भावनाओं की धनात्मकता का आभास सुगमता से कर सकने में सक्षम होते हैं तथा उनके मन की समस्त विकृति, विकार तथा विचारों की ऋणात्मकता का अन्त होता है । इसीलिए दीपावली से दो दिन पूर्व अमृत कलशधारी महा-विष्णु धनवंतरी का स्मरण पूजन होता है । धनवंतरी पूजन के साथ-साथ समस्त अभिलाषाओं और मनोकामनाओं की संसिद्धि हेतु कामदेव द्वारा पूजित देवी कामेश्वरी का भी पूजन किए जाने की परम्परा है । कामनाओं की संसिद्धि हेतु यह सर्वाधिक उपयोगी समय है जिसे पर्वश्रृंखला के रूप में भारतवर्ष के कोने-कोने में उल्लासपूर्वक आयोजित किया जाता है । दीपावली की इस शृंखला का दूसरा पर्व, कार्तिक मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी है । इसे नरक चतुर्दशी कहते हैं । इस दिन मनसा-वाचा-कर्मणा पूरी तरह शुद्ध होने हेतु अपने निवास से मनोभावों तथा भावनाओं से सभी प्रकार के विकारों और विकृतियों को दूर किया जाता है । इसीलिए इसे नरक चतुर्दशी कहते हैं ताकि हमारे घर-आगन के अतिरिक्त मन-मस्तिष्क में भी जो नारकीय विचार हैं, असत्यवादन, विश्वासघात, आलोचना, अपराध, प्रताड़ना, प्रतिद्वंद्विता तथा प्रतिशोध, वैर, कटुता आदि को अपने मन से निकालकर घर-आगन का कूड़ा-करकट, मैल, धूल आदि को निवास से बाहर करके पूरी तरह से स्वच्छ करना और अपने मन तथा तन को पवित्र करने हेतु नरक चतुर्दशी का पर्व आयोजित किया जाता है ।
धनवंतरी त्रयोदशी पूजा तथा नरक चतुर्दशी के पश्चात् दीपावली पर्व, गोवर्द्धन पूजा तथा भैयादूज आदि उत्सव अंतरंग आनन्द और असीम आल्हाद, उत्साह तथा उल्लास के साथ आयोजित किये जाते हैं, जिसमें दीपावली का पूजन विधान यहाँ विस्तार में व्याख्यायित है । हमारा परामर्श है कि दीपावली में गणेश-लक्ष्मी का पूजन किसी आचार्य अथवा पुरोहित द्वारा न कराकर स्वयं ही प्रतिपादित संपादित करना चाहिए । इसी उद्देश्य से हम दीपावली के पूजन का विस्तृत विधान अत्यन्त सुगम स्वरूप में यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं ।
दीपावली भारतीय परंपराओं, पर्वो तथा आस्थाओं का स्वर्णिम सबल स्तम्भ है । वर्षरार्यन्त जिस पर्व की सर्वाधिक प्रतीक्षा की जाती है वह दीपावली का उत्तम पर्व है जिसमें भक्तिभावना के साथ-साथ अन्यान्य अपेक्षाओं के साथ लक्ष्मी का आवाह्न करके अपने परिवार, कुटुम्ब में स्थायी रूप से निवास करने का अनुरोध किया जाता है । माता लक्ष्मी के आगमन पर उनके स्वागत हेतु अनगिनत दीप प्रज्ज्वलित करने की प्राचीन परंपरा है । समय की सत्ता ने स्वागत के स्वरूप को भी रूपांतरित किया है । दीप प्रज्ज्वलित करने के स्थान पर प्रकाश उत्पन्न करने हेतु मोमबत्तियाँ, विद्युत के बल्व, कण्डील आदि की व्यवस्था की जाती है । घर-प्रांगण को सुगन्धित द्रव्यों, पुष्पों आदि से सुसज्जित किया जाता है ताकि लक्ष्मी प्रसन्न होकर घर में प्रवेश करें तथा उस घर को छोड्कर अन्यत्र न जायें । यह सत्य तो सर्वविदित है कि दीपावली का पर्व उल्लास, उमंग और उत्साह से हमारे रोम-रोम को हर्षित, आनन्दित, आह्लादित और आंदोलित कर देता है तथा अत्यन्त उत्सुकता के साथ दीपावली के परम महत्वाकांक्षी पर्व की प्रतीक्षा रहती है ।
दीपावली के प्रांजल पावन पर्व पर स्वयं ही पूजन प्रतिपादन करना उपयुक्त स्वीकारा गया है परन्तु अधिकांश पाठकगण, जिज्ञासु, आगन्तुक, साधक, आराधक और भक्तजन, दीपावली में गणपति-लक्ष्मी पूजन प्रविधि से प्राय: अनभिज्ञ हैं, जिनके समुचित संज्ञान और साधना विधान के लिए नवीन गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों के पूजन का संक्षिप्त विधान, ' शास्त्रोक्त दीपावली पूजन पद्धति' शीर्षाकित अध्याय में आविष्ठित किया गया है । अभिलाषाओं की संसिद्धि के साथ अपार समृद्धि और सम्पत्ति प्रदान करने वाले दीपावली के पर्व पर, सविधि पूजन, यथाशक्ति स्वयं करना चाहिए । दीपावली की रात्रि को महारात्रि से रेखांकित किया जाता है जो वस्तुत: पूजा-पाठ, मंत्र जप, मंत्र सिद्धि, स्तोत्र पाठ तथा अन्य अनुष्ठान व यल संपादन हेतु महारात्रि होती है ।
दीपावली के पर्व पर पूजन और गणेश-लक्ष्मी की सविधि आराधना के पश्चात् रात्रिपर्यन्त महालक्ष्मी के प्रसत्रार्थ मंत्र प्रयोग और अनुष्ठान करने से, अतिशीघ्र महालक्ष्मी की प्रसन्नता और प्रभूत कृपा का प्रतिफल परिलक्षित होता है । प्रत्येक वर्ष दीपावली पर्व के स्वर्णिम अवसर पर हमारे और हमारे परिवार द्वारा यह अनुभूत है । दीपावली की महारात्रि के शुभ अवसर पर, महालक्ष्मी की महती कृपा प्राप्ति हेतु, किन मंत्रों, अनुष्ठानों और विभिन्न प्रयोगों का अनुसरण किया जाए और उनके संपादन की प्रविधि तथा अवधि क्या है, मंत्र संख्या जप और उनके उपयुक्त अनुसरण का विधान 'प्रचुर धनार्जन' नामक अध्याय में समायोजित है । जिज्ञासु पाठकगण दीपावली की महारात्रि में इन मंत्रों के जप मे अथवा इस अध्याय में उल्लिखित अनेक प्रयोग विधान के अनुकरण से अवश्य लाभान्वित होंगे, इसमें किंचित सन्देह नहीं, क्योंकि हम वर्षो से इस परम्परा से महालक्ष्मी के कृपा प्रसाद और प्राशीष से अभिषिक्त होते रहे हैं ।
'दीपावली एवं महालक्ष्मी पूजन विधान' नामक कृति के सृजन हेतु हमें जगतजननी त्रिपुरसुन्दरी से प्रेरणा प्राप्त हुई । वस्तुत: ज्योतिष शास्त्र के अध्ययन और अभ्यास के उपरान्त अनुसंधानात्मक लेखन हेतु, उन्हीं ने समय-समय पर हमारा पथ-प्रदर्शन किया । पराम्बा, राजराजेश्वरी, त्रिगुणात्मिका, त्रिपुरसुन्दरी ने ही अपने स्नेहाशीष से हमारा समस्त जीवन आलोकित किया है और उनका स्मरण भाव ही हमें अलौकिक आनन्द, अंतरंग आह्लाद, प्रेरणा और प्रोत्साहन से पल्लवित, पुष्पित, प्रफुल्लित, प्रमुदित करता है और साथ ही अनुसंधानात्मक रचना के लेखन हेतु विह्वल और व्याकुल कर देता है । अत: त्रिपुरसुन्दरी के पदपंकज की प्राञ्जल पद रज का पंचामृत ही हमारी श्वाँस की आवृतियाँ हें जिसके अभाव में जीवन की कल्पना अवरुद्ध हो जाती है । अत: त्रिपुरसुन्दरी के चरणों में हमारा कोटि-कोटि नमन है ।
'दीपावली एवं महालक्ष्मी पूजन विधान' के सृजन क्रम में हम अपनी स्नेह संपदा, स्नेहाषिक्त पुत्री दीक्षा के सहयोग हेतु उन्हें हृदय के अन्तःस्थल से अभिव्यक्त स्नेहाशीष तथा अनेक शुभकामनाओं से अभिषिक्त करके हर्षोल्लास का आभास करते हैं। अपने पुत्र विशाल तथा पुत्री दीक्षा के नटखट पुत्रों युग, अंश, नवांश तथा पुत्री युति के प्रति भी आभार, जिन्होंने अपनी आमोदिनी-प्रमोदिनी प्रवृत्ति से लेखन के वातावरण को सरल-तरल बनाया । स्नेहिल शिल्पी तथा प्रिय राहुल, जो हमारे पुत्र और पुत्री के जीवन सहचर हैं, का सम्मिलित सहयोग और उत्साहवर्द्धन हमारे प्रेरणा का आधार स्तम्भ है ।
'दीपावली एवं महालक्ष्मी पूजन विधान' नामक यह लघु कृति 'दीपावली पूजन प्रविधि धनार्जन एवं समृद्धि', जो वर्ष 2010 में दीपावली के अवसर पर प्रकाशित हुई थी, का पूर्णत: रूपान्तरित, परिवर्तित, परिवर्द्धित तथा परिमार्जित स्वरूप है । वस्तुत: वर्ष 2010 में एक सप्ताह के अल्प अंतराल में ही उक्त कृति का लेखन व प्रकाशन संपन्न किया गया था । इसी कारण कतिपय अनिवार्य, आवश्यक और अपरिहार्य सामग्री इसमें समायोजित नहीं हो पाई थी, जो अब पूर्णत: नवीन एवं नयनाभिराम 'दीपावली एवं महालक्ष्मी पूजन विधान' नामक इस कृति में सतर्कतापूर्वक समायोजित एवं सम्मिलित कर ली गई है । इसके प्रतिपादन व संपादन से समस्त भक्तगतण विधि-विधान सहित दीपावली पूजन संपन्न करने हेतु प्रेरित और प्रोत्साहित होंगे । सभी साधक एवं भक्त आराधक इस कृति में प्रस्तुत विविध अलौकिक साधनाओं के आलोक से दीपावली की स्वर्णिम रश्मियों से अपने परिवार को अधिक से अधिक समृद्ध करने हेतु पूजन, मंत्रजप, स्तोत्र पाठ एवं अन्य सरल प्रयोगों के संपादन से भक्ति मार्ग के प्रबल पथ पर प्रशस्त होकर लाभान्वित होंगे।
इस कृति के लेखन हेतु हमें मेसर्स अल्फा पब्लिकेशन्स के श्री अमृत लाल जैन ने प्रेरित और प्रोत्साहित किया । अत: हम श्री अमृतलाल जैन को ही 'दीपावली एवं महालक्ष्मी पूजन विधान' के निर्माण एवं प्रकाशन का श्रेय प्रदान करके स्वयं को आनन्दित अनुभव करते हैं।
धन्यवाद के क्रम में श्री सदाशिव तिवारी एवं श्री गोपाल प्रकाश उल्लेखनीय हैं जिन्होंने इस कृति को सम्यक् रूप में समग्रता तथा सम्पूर्णता प्रदान करने हेतु अपना सहयोग प्रदान किया ।
हमारी मंगलाशा और सदाशा है कि 'दीपावली एवं महालक्ष्मी पूजन विधान' की प्रामाणिकता साधकों और आराधकों के लिए आस्था और विश्वास के अभिज्ञान का अभिनव पथ प्रशस्त करेगी। सभी साधक, पाठक एवं भक्तजन दीपावली के पावन पर्व पर गणेश-लक्ष्मी के पूजन और आराधना के अतिरिक्त इस महारात्रि में 'प्रचुर धनार्जन' नामक अध्याय में उद्धृत अन्यान्य साधनाओं का अनुकरण करके अवश्य लाभान्वित होंगे तथा महालक्ष्मी का मधुर प्रसाद, प्रचुर धन, सम्पत्ति, संपदा तथा असीमित समृद्धि प्राप्त करने में सहज ही सफल होंगे ।
अनुक्रमणिका
अध्याय- 1
अर्थ महिमा: कतिपय महत्वपूर्ण तथ्य
1
अध्याय-2
मंत्र: साधना एवं संस्कार
15
2.1 मंत्र एवं ध्वनि का रहस्यात्मक पक्ष
17
2.2 मंत्र-विचार
22
2.3 मंत्र-संस्कार
27
2.4 पुरश्चरण
28
2.5 कतिपय महत्वपूर्ण तथ्य तथा मंत्र साधना
30
2.6 लक्ष्मी पूजन ध्यातव्य तथ्य
32
2.7 षोडशोपचार पूजन विधान
35
अध्याय-3
शास्त्रोक्त दीपावली पूजन पद्धति
47
3.1 दीपावली एवं समृद्धि पथ
3.2 दीपावली पर्व पूजन
59
3.3 पूजन-विधि
61
1. भगवती गौरी एवं भगवान् गणपति आराधना एवं पूजन विधान
71
2. षोडश मातृका पूजन
79
3. नवग्रह पूजन
80
4. कलश-स्थापन हेतु पूजा
82
5. माता लक्ष्मी की नवीन मूर्ति की पूजा
85
अध्याय-4
धनाधिपति कुबेर साधना
99
अध्याय-5
प्रचुर धनार्जन
111
5.1 महालक्ष्मी शक्ति संज्ञान
115
5.2 धन, समृद्धि, सम्पन्नता, सम्पत्तिप्रदायक महालक्ष्मी प्रयोग
118
5.3 सिद्ध लक्ष्मी प्राप्ति हेतु मंत्र
124
5.4 लक्ष्मीनारायण संदर्भित महालक्ष्मी मंत्र
125
5.5 श्री सूक्त कतिपय विशिष्ट ज्ञातव्य
126
5.6 कमलात्मिका-तत्त्व
132
5.7 लक्ष्मी मंत्र
5.8 चतुरक्षर लक्ष्मी बीज मंत्र प्रयोग
133
5.9 नौ अक्षर का सिद्धलक्ष्मी मंत्र
135
5.10 दशाक्षर लक्ष्मी मंत्र प्रयोग
5.11 द्वादशाक्षर महालक्ष्मी मंत्र प्रयोग
136
5.12 लक्ष्मी कमला प्रयोग
137
5.13 शीघ्र लक्ष्मीप्रदाता मंत्र
138
5.14 श्री लक्ष्मी जी से सम्बन्धित अन्य मंत्र
अध्याय-6
अथाह अर्थोदगम हेतु विशिष्ट स्तोत्र
141
6.1 लक्ष्मी नारायण हृदय स्तोत्र
6.2 त्वरित एवं प्रचुर फलप्रदाता साधना दुर्गे स्मृता
एवं लक्ष्मी मन्त्र आराधना
160
6.3 दुर्गेस्मृतामंत्र द्वारा संपुटित श्रीसूक्त का पाठ-विधा?
163
6.4 कमला अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र
167
6.5 महालक्ष्यष्टक स्तोत्र
170
6.6 कनकधारा स्तोत्र
171
6.7 परशुरामकृत लक्ष्मीस्तोत्र
177
6.8 लक्ष्मी कवच
180
6.9 त्रैलोक्य-मंगल लक्ष्मी-स्तोत्र
183
अध्याय-7
स्वर्णाकर्षण भैरव मंत्र प्रयोग
185
अध्याय-8
विपुल धनप्रदायक दक्षिणवर्ती शंख उपासना प्रविधि
189
अध्याय-9
अनुभूत मानस मंत्र आराधना
195
अध्याय-10
श्री दुर्गासप्तशती के संपुट प्रयोग
211