| Specifications |
| Publisher: Rampur Raza Library, Uttar Pradesh | |
| Author Sandhya Rani | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 318 (Throughout Color Illustrations) | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 11x9 inch | |
| Weight 1.48 kg | |
| Edition: 2005 | |
| ISBN: 8187113812 | |
| HBH898 |
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डॉ० (श्रीमती) संध्या रानी का संगीत के क्षेत्र में विशिष्ट स्थान है। बाल्यकाल से ही आपकी रूचि रुहेलखण्डी संस्कृति, साहित्य एवं संगीत कला के प्रति विशेष रूप से रही है। माता श्रीमती नैकुण्ठी देवी मौर्य पिता श्री एम० एल० मौर्य की सुभोग्य पुत्री डॉ० संध्या रानी का जन्म पाँच नवम्बर सन् उन्नीस सौ पैंसठ को बरेली (रुहेलखण्ड क्षेत्र) में हुआ। आपने महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली के साहू राम स्वरूप महिला सनातकोत्तर महाविद्यालय, बरेली से 1983 में बी० ए० एवं 1985 में एम० ए० की परीक्षायें प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कीं। 1986 में आपको भारत सरकार के मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय छात्रवृत्ति प्राप्त हुई। 1992 में एम० जे० पी० रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली द्वारा डॉ० (श्रीमती) सुधा रानी शर्मा पूर्व प्राचार्य एवं संगीत विभागाध्यक्षा के मार्ग निर्देशन में "रुहेलखण्ड क्षेत्र के लोकगीतों में शास्त्रीय संगीतात्मकता " विषय में पी-एच०डी० की उपाधि प्रदान की गयी। रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय बरेली द्वारा ही सन् 2002 में आपको डी० लिट्० की उपाधि से विभूषित किया गया। आपको विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (न्ण्ळण्ब्बा) नई दिल्ली द्वारा 'उत्तर प्रदेश के प्रचलित पारम्परिक लोकगीतों का सांगीतिक अध्ययन' विषय में फैलोशिप प्राप्त हुई। आप निरन्तर स्नातकोत्तर कक्षा में अध्यापन कार्यरत हैं। आप पी-एच०डी० उपाधि हेतु शोध निर्देशिका भी हैं। आपके कुशल मार्ग निर्देशन में अनेक शोध छात्र पी-एच०डी० उपाधि प्राप्त कर चुके हैं एवं अन्य अनेक शोधार्थी आपके निर्देशन में अनुसन्धान कार्यरत हैं।
आप अनेक विश्वविद्यालयों में संगीत विषय की विशेषज्ञ, परीक्षक भी हैं। आप आकाशवाणी रामपुर की नियमित कलाकार हैं। विविध राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनारों में आपने संगीत विषयक शोध पत्र प्रस्तुत किये हैं। स्तरीय समाचार पत्र-पत्रिकाओं में विविध शोध लेख प्रकाशित होते रहे हैं।
सम्प्रति आप रानी अवन्ती बाई लोधी राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बरेली के संगीत विभाग में रीडर एवं अध्यक्ष पद पर कार्यरत हैं।
'रुहेलखण्ड क्षेत्र की संगीत परम्परा' संगीत के अध्ययन की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। रुहेलखण्ड क्षेत्र की संगीत-परम्परा अत्यन्त समृद्ध रही है। संगीतकला की दृष्टि से इस क्षेत्र का अतीव महत्व है। रुहेलखण्ड क्षेत्र ने अपना अंशदान देकर भारतीय संगीत के संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। रामपुर, सहसवान एवं भिंडी बाजार जैसे गौरवशाली संगीत घरानों का गौरव भी रुहेलखण्ड क्षेत्र को ही प्राप्त है। रुहेलखण्ड के संगीत कलाकारों ने सम्पूर्ण भारतवर्ष के दिग-दिगन्त में अपनी कला-प्रतिभा सम्पन्नता का परचम फहरा कर रुहेलखण्ड के नाम को गौरवान्वित किया है। भारतवर्ष के साथ ही विश्व के अनेक देशों में भी यहाँ के संगीत कलाकारों ने अपने कला कौशल का प्रदर्शन कर ख्याति अर्जित की है।
हिमालय की उपत्यका में अवस्थित उत्तर प्रदेश राज्य के रुहेलखण्ड क्षेत्र का सर्वप्रथम उल्लेख महाभारत में मिलता है। पूर्व में यह क्षेत्र 'पाँचाल' कहलाता था। कालान्तर में वृहदाकार के कारण द्विभाग में विभाजित यह क्षेत्र 'अंहिक्षेत्र' कहलाया, तत्पश्चात् परिस्थिति अनुसार 'कटेहर' एवं बाद में 'रुहेले' पठानों के कारण 'रुहेलखण्ड' कहलाया।
प्रस्तुत ग्रन्थ में रुहेलखण्ड की संगीत-परम्परा का अनुषांगिक वर्णन प्रस्तुत किया गया है। रुहेलखण्ड की सांस्कृतिक गरिमा को पूर्ण मनोयोग से उद्घाटित किया गया है। रुहेलखण्ड के अन्तर्गत समाविष्ट विविध जिलों को पृथक-पृथक लेकर महत्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत की गयी हैं। प्रत्येक जिले के राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक पहलुओं का विशद विवेचन किया गया है।
इस ग्रन्थ में सरल, सहज भाषा का पयोग करके समस्त तथ्यों की प्रस्तुति की गयी है। ग्रन्थ में प्रस्तुत चित्रों एवं मानचित्र के अवलोकन से रुहेलखण्ड क्षेत्र की सांस्कृतिक एवं भौगोलिक पृष्ठभूमि का सुधी पाठकों को सुगमता से बोध होगा।
संगीत के विभिन्न पक्षों के सन्दर्भ में इस ग्रन्थ में सम्यक् से विचार किया गया है। विभिन्न सन्दर्भ-स्त्रोतों का व्यापक रूप से स्पष्ट उल्लेख कर विषय के प्रति अपनी पूर्ण सजगता का परिचय दिया है।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह शोधग्रन्थ सामान्य पाठकों को ही नहीं, अपितु अध्ययन में रुचि रखने वाले सुधी पाठकों को भी नवीन दिशा प्रदान कराने जाने में सहायक होगी। यह ग्रन्थ संगीत जिज्ञासुओं एवं शोधर्थियों के लिये संग्रहणीय अध्ययन-स्रोत की उपलब्धता हेतु कार्य करेगा।
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