पिछले कुछ वर्षों में नैनो विज्ञान और नैनो तकनीक के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई है और यह सब कुछ संभव हो पाया है-नैनो पदार्थों के निर्माण की नई तकनीकी एवं जोड़-तोड़ के लिए हस्तकौशल के नए उपकरणों के कारण। नैनो पदार्थों का विज्ञान बहुत महत्त्वपूर्ण है, जिसमें अनेकों नई संभावनाएं नजर आती हैं। यह अपने में रसायन, भौतिकी, जैव, पदार्थ और अभियांत्रिकी विज्ञान को समाए हुए है। अनेकों विकसित राष्ट्रों ने नैनो विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में अनुसंधान कार्यों के लिए व्यापक धन की व्यवस्था की है।
अलग-अलग पृष्ठभूमि के वैज्ञानिकों में जब कोई समन्वय होता है, तो निश्चय ही नए पदार्थों की श्रेणी हमारे सामने आती है; जिसमें नई तकनीकी की अपार संभावनाएं छुपी हुई होती हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स और रसायन उद्योग के क्षेत्र को ही नैनो तकनीक का लाभ मिलेगा, ऐसी बात नहीं है; बल्कि रोगों का पता लगाने, मरीजों में दवाई का प्रयोग और स्वास्थ्य सेवाओं में इसकी अपार संभावनाएं हैं। सारांश में हम कह सकते हैं कि जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं बचेगा, जिसमें नैनो तकनीक का हस्तक्षेप न हुआ हो। तकनीकी के इतिहास में, वास्तव में यह अगली क्रांति होगी।
हमारे देश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने नैनो विज्ञान के क्षेत्र में राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम शुरू किया है। जवाहरलाल नेहरू उच्च वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र और भारतीय वैज्ञानिक संस्थान, बंगलौर पिछले कुछ समय से नैनो अनुसंधान के क्षेत्र में कार्यरत हैं। कुछ अन्य अनुसंधान केंद्रों ने भी देश में नैनो तकनीक के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य प्रारंभ किए हैं। इनमें मुख्य हैंः राष्ट्रीय रसायन प्रयोगशाला, पुणे; आईएसीएस, कोलकाता; साह इंस्टीट्यूट, कोलकाता और दिल्ली विश्वविद्यालय ।
जैसे-जैसे नैनो तकनीक के प्रयोग से नए फायदों की संभावनाओं का पता लगाया जा रहा है, वहीं कुछ देशों में ये शंकाएं उत्पन्न हो रही हैं कि यह तकनीक मानव स्वास्थ्य और मानव कल्याण के लिए घातक सिद्ध हो सकती है। यहां आम जन और मीडिया में इसकी सही-सही जानकारी देना आवश्यक हो जाता है, जिससे इसकी तस्वीर स्पष्ट हो सके।
एक साधारण पाठक के लिए लिखी गई इस पुस्तक का मैं स्वागत करता हूं। इस पुस्तक के लेखक, जो कि एक जाने-माने विज्ञान संचारक हैं, ने विषय के ऊपर महत्त्वपूर्ण जानकारियां दी हैं। उन्होंने इसके संभावित लाभ और खतरों से पाठक वर्ग को अवगत करवाने का प्रयास किया है। देश-विदेश में चल रहे अनुसंधान कार्यों को उदाहरणों के साथ आम पाठक तक लाने का एक अच्छा प्रयास है।
पुस्तक में दी गई संतुलित जानकारियों से युवा वर्ग में नैनो विज्ञान और नैनो तकनीकी के अध्ययन में रुचि बढ़ेगी, ऐसा मैं मानता हूं। अपने नागरिकों के हित को देखते हुए हम इस क्षेत्र में किसी अन्य देश से पीछे नहीं रहना चाहेंगे।
सामयिक और सुग्राह्य प्रकाशन के लिए मैं लेखक और नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया को बधाई देता हूं।
पूर्व राष्ट्रपति महोदय, डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा जिस प्रकार नैनो तकनीक पर जोर दिया गया है, उसको ध्यान में रखते हुए हमारी युवा पीढ़ी को इसे चुनौती के रूप में लेना चाहिए और विचारों की गंगोत्री को नवाचार के रूप में प्रवाहित करने का प्रयास करना चाहिए, जिससे सुंदर, भयमुक्त विश्व की कल्पना साकार हो सके। यह पुस्तक इस दिशा में एक प्रयास है, जिससे हमारी युवा पीढ़ी उस तकनीकी को समझ और अपना सके, जो कि आने वाले समय में इस विश्व को बहुत अधिक प्रभावित करने वाली है। इसी प्रेरणा के फलस्वरूप वे अपने देश के हित और लाभ के लिए इस विज्ञान का प्रयोग कर सकेंगे।
मानव इतिहास में पहली बार यह संभव हुआ है, जब हम नैनो मीटर (एक मीटर के विलियंथ यानी दस अरबवें भाग) के आकार में किसी पदार्थ को देखने और समझने में सक्षम हो सके हैं। नैनो तकनीक, जिसके कारण यह सब कुछ संभव हो सका है, आने वाले समय में हमारे जीवन में एक नई क्रांति लेकर आ रही है। इसका प्रभाव हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पड़ने वाला है। संसार की कुछ अनसुलझी समस्याओं के समाधान के लिए यह विज्ञान एक वरदान के रूप में उभरकर आ रहा है।
इस पुस्तक में नैनो तकनीक के उद्भव, उसके विकास और उसकी उपयोगिता पर रोशनी डाली गई है। इस तकनीक के मूलभूत सिद्धांतों पर रोशनी डालने के साथ-साथ इस पुस्तक में आज के अति आधुनिक सूक्ष्मदर्शी यंत्रों पर भी जानकारी दी गई है, जिनके बिना नैनो तकनीक का विकास संभव नहीं है।
नैनो विज्ञान की यात्रा, नए पदार्थों की उत्पत्ति और जानकारी में अहम् भूमिका अदा करने वाले वैज्ञानिकों के योगदान के बिना संभव नहीं है। प्रारंभ में नैनो विज्ञान के उद्भव में अहम् भूमिका अदा करने वाले सिद्धांतों पर संक्षिप्त परिचय दिया गया है, जैसे रिचर्ड फेहंमन द्वारा वैज्ञानिकों को नैनो स्तर पर सोचने का आह्वान।
'अगले पाठ में कार्बन नैनो ट्यूब' की क्रांतिकारी खोज की कहानी है और इसके साथ-साथ उन परीक्षणों की चर्चा है, जिनसे अनेकों नैनो पदार्थों के सामने आने से नैनो दुनिया में आश्चर्यजनक संभावनाएं नजर आने लगी हैं। भारत में जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बंगलौर, राष्ट्रीय रसायन प्रयोगशाला, पुणे एवं आगरकर अनुसंधान संस्थान, पुणे द्वारा किए गए अग्रणीय अनुसंधान कार्यों का वर्णन दिया गया है।
उसके बाद इलेक्ट्रॉनिकी के क्षेत्र में नैनो तकनीक की भूमिका की चर्चा है। गॉर्डन मूरे (Gordon Moore) द्वारा प्रतिपादित सिलिकॉन आधारित इंटीग्रेटिड सर्किट की कुछ सीमाएं हैं, जो एक दशक में ही सामने आने लगी हैं, जिसके कारण कार्बन नैनो ट्यूब के क्षेत्र में विश्वभर के वैज्ञानिकों ने रुचि लेना शुरू कर दिया है। सिलिकॉन आधारित चिप की द्रुत गति से बढ़ी उपयोगिता के साथ-साथ इस पुस्तक में यह भी बताने का प्रयास किया गया है कि किस प्रकार कार्बन नैनो ट्यूब के ट्रांजिस्टर में प्रयोग से और सूक्ष्म जीवाणुओं से तैयार किए गए नैनो पदार्थों से मूरे के नियम को सदाबहार बनाया जा सकेगा।
आनुवंशिक रोग और विकारों का समय से पहले पता लगाने में किस प्रकार नैनो तकनीक मददगार हो सकती है, इसकी भी चर्चा विस्तार से की गई है। नैनो तकनीक की महत्ता को स्पष्ट करने के लिए मानव कोशिका के बारे में हमारी समझ, मानव जीनोम परियोजना और डीएनए के नए फीचर्स के बारे में भी प्रकाश डाला गया है।
किस प्रकार गुण सूत्रों में छोटे से घालमेल से गंभीर रोगों की उत्पत्ति हो सकती है, यह भी गुण सूत्रों के बारे में हमारी समझ के कारण संभव हो सका है। किस प्रकार जैविक अणुओं के कालचित्रों को नैनो तकनीक से बनाना संभव है, इस पर चर्चा के साथ-साथ यह भी बताया गया है कि किस प्रकार से शरीर में सही स्थान पर सही मात्रा में दवाई पहुंचाना संभव हो सकेगा।
संचार माध्यमों में नैनो तकनीक के बारे में कही जाने वाली अतिशयोक्ति को छोड़कर यदि हम देखें तो पता चलता है कि नैनो तकनीक के उन उपयोगों को भी छूने का प्रयास किया गया है, जो कि अभी काम में ले रहे हैं और जिनके माध्यम से हमारे कपड़ों से लेकर अंतरिक्ष की खोज तक में आमूल-चूल परिवर्तन की संभावनाएं नजर आने लगी हैं।
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