पंचायती राज: Panchayati Raj (Challenges and Possibilities)

FREE Delivery
Express Shipping
$26
Express Shipping: Guaranteed Dispatch in 24 hours
Quantity
Delivery Usually ships in 3 days
Item Code: NZD018
Publisher: National Book Trust, India
Author: महीपाल (Mahipal)
Language: Hindi
Edition: 2019
ISBN: 9788123742939
Pages: 170
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 230 gm
Fully insured
Fully insured
Shipped to 153 countries
Shipped to 153 countries
More than 1M+ customers worldwide
More than 1M+ customers worldwide
100% Made in India
100% Made in India
23 years in business
23 years in business
Book Description

पुस्तक के विषय में

भारत में 'पंच परमेश्वर' की अवधारणा बहुत पुरानी है । प्राचीन काल से ही हमारे गांवों में पंचायतों का किसी न किसी रूप में अस्तित्व रहा है । पंचायतों को स्थानीय स्वशासन की इकाई माना जाता रहा है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पंचायतें हमारे संविधान का अंग तो बनीं लेकिन ग्रामीण विकास के मामलों में वे कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा पाई। बलवंत राय मेहता (1957), अशोक मेहता (1978) तथा जी.के.वी राव (1985) समितियों ने पंचायतों को अधिकार संपन्न किए जाने की सिफारिश की परंतु स्थिति में कोई उल्लेखनीय बदलाव नहीं आया । अंतत: एल.एम. सिंघवी के नेतृत्व में 1986 में गठित समिति की रिपोर्ट के आधार पर संसद ने 1992 में 73 वें संविधान संशोधन विधेयक के माध्यम से पंचायतों को संविधान की नौवीं सूची में शामिल कर सवैधानिक दर्जा दिया । प्रस्तुत पुस्तक में भारत में पंचायती राज व्यवस्था के इतिहास के साथ-साथ वर्तमान समय में पंचायतों के समक्ष जो अनेक कार्यात्मक, वित्तीय, प्रशासनिक और सामाजिक चुनौतियां हैं, उनका अध्ययन किया गया लै । साथ ही पंचायतों को स्वायत्त संस्था वनाने का सपना पूरा होने की क्या संभावनाएं हैं, इस पर भी विचार किया गया है ।

पुस्तक के लेखक, महीपाल, ने पंचायतों पर विशेष अध्ययन किया है । 1987 में अर्थशास्त्र में पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त करने के बाद 1992-94 में दो वर्षो तक इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंसेज, नई दिल्ली से 'विकेंद्रिकृत योजना एवं पंचायती राज' विषय पर पोस्ट-डॉक्टोरल शोध कार्य किया । हिंदी व अंग्रेजी भाषा की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इनके लेख प्रकाशित होते रहते हैं । इनकी कुछ प्रमुख कृतियां हैं-'भारतीय कृषि में भूमि उत्पादकता एवं रोजगार', 'ग्रामीण क्षेत्र में पूंजी निर्माण व रोजगार सृजन', 'पंचायतों के स्तर पर आवश्यकताओं व साधनों में अंतर' तथा 'पंचायती राज : अतीत, वर्तमान व भविष्य'

भूमिका

अतीत में भारत में पंचायतें तो थीं, लेकिन वे लोकतांत्रिक नहीं थीं । इनमें समाज के उच्च वर्ग का ही वर्चस्व था । लेकिन समय के साथ-साथ उनके स्वरूप और कार्यक्षेत्र में परिवर्तन होता गया । ब्रिटिश काल के प्रारंभिक दौर में पंचायतों को बड़ा धक्का लगा, लेकिन उन्नीसवीं सदी के अंत से भारत को आजादी मिलने के बीच ब्रिटिश काल में पंचायतों के ऊपर कुछ ध्यान दिया गया । लॉर्ड रिपन का 1882 का प्रस्ताव, 1909 का रॉयल आयोग आदि विकेंद्रीकरण के क्षेत्र में इसके महत्वपूर्ण उदाहरण हैं । संविधान सभा के सदस्य पंचायतों को संविधान में रखने पर एकमत नहीं थे । वह महात्मा गांधी का प्रभाव या दबाव था जिसके कारण पंचायतें संविधान का अंग बनीं । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा राष्ट्रीय सेवा कार्यक्रम चलाए गए, लेकिन पंचायतों के गठन में कोई रुचि नहीं ली गई । 1957 में बलवंतराय मेहता समिति की रिपोर्ट ने उपर्युक्त दोनों कार्यक्रमों का अध्ययन करके सिफारिश की कि विकास में लोगों की भागीदारी के लिए तीन-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना की जाए । इसके बाद 1978 में अशोक मेहता रिपोर्ट ने पंचायतों को राजनीतिक संस्थाएं बनाने की बात कही और दो-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था स्थापित करने की सिफारिश की । 1985 में जी.वी.के.राव समिति ने पंचायतों को सबल बनाने की सिफारिश की । अन्तत: 1986 में एल. एम. सिंघवी समिति ने पंचायतों को संविधान का दर्जा दिए जाने की सिफारिश की । इस प्रकार दिसंबर, 1992 में 73वां संविधान संशोधन विधेयक संयुक्त संसदीय समिति की जांच के बाद पारित हुआ, जो 23 अप्रैल, 1993 को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने के बाद अधिनियम बना । यह अधिनियम बनने के बाद सभी राज्यों ने अपने पंचायत अधिनियम संशोधित किए । 1996 में पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्र में विस्तार) अधिनियम द्वारा 73वे संविधान संशोधन अधिनियम को देश के आदिवासी बहुल अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तारित किया गया । अब पंचायतें संविधान की 9वीं सूची में दर्ज हो गई हैं । अब यह राज्य स्तर के नेताओं की इच्छा पर नहीं है कि वे जब चाहें पंचायतों के चुनाव करा दें और जब चाहे न कराएं ।

प्रस्तुत पुस्तक में भारत में पंचायतों के सामने क्या-क्या चुनौतियां हैं तथा पंचायतें उन चुनौतियों को पार करके कैसे ग्रामीण विकास करने में सहायक होंगी, इस विषय का अध्ययन किया गया है ।

73वें संविधान संशोधन के अनुसार पंचायतें स्वायत्त शासन की संस्थाएं हैं । पंचायतें ग्राम, ब्लाक व जिला स्तर पर आर्थिक विकास व सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं बनाएंगी जिसमें 11वीं अनुसूची में सूचीबद्ध 29 विषय भी शामिल हैं । अर्थात पंचायतें आर्थिक विकास व सामाजिक न्याय की योजनाएं बनाकर उनको क्रियान्वित करेंगी । इस कार्य के लिए पंचायतों की कार्यात्मक, वित्तीय व प्रशासनिक स्वायत्तता उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि बिना इस स्वायत्तता के पंचायतों के लिए पूर्ण रूप से संभव नहीं है कि वे लोगों की आशाओं व आकांक्षाओं को पूरा कर सकें । यही नहीं पंचायतों में आरक्षण के बाद पहली बार अधिक संख्या में समाज के गरीब तबके के लोग व महिलाएं भी चुनकर आई हैं । अधिकतर महिलाएं व पुरुष, जो इन वर्गो से चुनकर आए हैं, आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हैं । उनका सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़ापन भी उनके लिए चुनौती है ।

पंचायतों की कार्यात्मक, वित्तीय, प्रशासनिक, सामाजिक व आर्थिक चुनौतियों को देखकर लगता है कि पंचायती राज व्यवस्था शायद ही अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभा सके, लेकिन पूर्ण रूप से फेल हो गई हो, ऐसा नहीं है । पंचायतों के सामने अनेक बाधाएं हैं, लेकिन केंद्र सरकार, राज्य सरकारों व स्वैच्छिक संस्थाओं द्वारा उठाए गए अनेक सकारात्मक कदम तथा स्वयं पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा किए जा रहे अनेक प्रयास व उनका जुझारूपन जिसका अध्ययन इस पुस्तक में किया गया है, ढाढस बंधाते हैं कि पंचायती राज व्यवस्था आने वाले समय में लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने में समर्थ हो सकेगी । पंचायतों को सुदृढ़ बनाने में 11वें वित्त आयोग व राज्य वित्त आयोग की सिफारिशें महत्वपूर्ण हैं ।

ग्रामीण समाज के दबे कुचले वर्ग में पिछले लगभग एक दशक के दौरान जागृति आई है । वे ग्रामीण समाज के उच्च वर्ग की शोषणप्रद आदतों व व्यवहार के दिष्ट आवाज नहीं उठा पाते, लेकिन उनकी आदतों व व्यवहार को समझने लगे हैं । पहले ऐसा नहीं था । विभिन्न राज्यों में पंचायत प्रतिनिधियों के संगठन बने हैं, जिनमें निर्णय लिए गए हैं कि पंचायत अधिनियम में जहां-जहां नौकरशाही का नियंत्रण है उनमें संशोधन किया जाए । विभिन्न राज्यों में हुए पंचायतों के चुनावों में लोगों ने बढ़चढ़कर भाग लिया है । अनेक महिलाएं गैर सुरक्षित सीटों से जीतकर आई हैं । पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा किए गए प्रयासों से जनता में उनसे अपेक्षा बढ़ती जा रही है । आने वाले समय में पंचायतों को अधिक संघर्ष करना होगा क्योंकि सत्ता के विकेंद्रीकरण के रास्ते में अनेक राजनैतिक, प्रशासनिक व सामाजिक बाधाएं आएंगी । लेकिन पंचायतों के तीन व चार चुनावों के बाद जो नेतृत्व उभर कर आएगा वह पंचायतों को स्वायत्त शासन की संस्थाएं बनाने में सक्षम होगा । ऐसी संभावनाओं का अध्ययन इस पुस्तक में किया गया है ।

उपर्युक्त सभी विषयों को नौ अध्यायों में बांटा गया है । पहले अध्याय में पंचायती राज व्यवस्था-के इतिहास की चर्चा है अध्याय दो में 73वें संविधान संशोधन अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार अधिनियम के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है । अध्याय तीन में राज्यों के पंचायती राज अधिनियमों की समीक्षा की गई है । अध्याय चार से लेकर अध्याय सात तक पंचायतों के सामने विभिन्न चुनौतियों का अध्ययन किया गया है। अध्याय आठ व नौ में विभिन्न संभावनाओं का अध्ययन

किया गया है । दसवें अध्याय में निष्कर्ष प्रस्तुत किया गया है । पुस्तक में उपर्युक्त सामग्री के साथ दस अनुबंध भी दिए गए हैं, जो 73वे संविधान व संशोधन अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार अधिनियम, पंचायतों की सख्या, वित्त आयोगों की सिफारिशें, अनुसूचित जाति, जनजाति व महिला प्रतिनिधियों की संख्या आदि से संबंधित है।

पंचायत विषय पर हिंदी में पुस्तकों का अभाव है। उपयुक्त सारे बिंदुओं का समावेश करने वाली कोई पुस्तक शायद ही हिंदी व अंग्रेजी भाषा में हो। अतएव यह पुस्तक शोधकर्ताओं. अध्यापकों. विद्यार्थियों. पंचायतों के चयनित सदस्यों व अध्यक्षों, स्वयंसेवी संस्थाओं में कार्यरत व्यक्तियों तथा सामान्य जन के लिए उपयोगी सिद्ध होगी, इस आशा के साथ ही यह प्रयास किया गया ह। पुस्तक सरल भाषा-शैली लिखी गई है और हम आशा करते हैं कि यह सभी को पसंद आएगी तथा पंचायतों को सबल बनाने में सहायक होगी।

लेखक नेशनल बुक ट्रस्ट के सहायक संपादक गण श्रीमती उमा बंसल एवं श्री पृथ्वी राज मोंगा का हृदय से आभारी है कि उन्होंने पुस्तक का संपादन न केवल मनोयोग से किया, बल्कि अनेक उपयोगी सुझाव भी दिए।

अंत में लेखक नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया के अधिकारियों व अन्य कर्मियों के प्रति भी आभार व्यक्त करना अपना कर्तव्य समझता है, जिनके इस विषय में रुचि लेने से पुस्तक का प्रकाशन अल्प समय में संभव हो सका सुधी पाठकों के सुझावों का भी स्वागत है।

 

विषय-सूची

पहला:भाग: पंचायती राज

1

पंचायती राज व्यवस्था का इतिहास

3

2

संविधान (73वां संशोधन) अधिनियम,1992

23

3

पंचायती राज अधिनियम की समीक्षा

34

 

दूसरा भाग:पंचायती राज की चुनौतियां

41

4

कार्यात्मक चुनौतियां

44

5

वित्तीय चुनौतियां

50

6

प्रशासनिक चुनौतियां

56

7

सामाजिक व आर्थिक चुनौतियां

63

तीसरा भाग:संभावनाएं

8

जागरूकता और जुझारूपन का विकास

78

9

केंद्र व राज्य पर कुछ विशिष्ट प्रयास

93

10

निष्कर्ष

127

11

अनुबंध-1

132

12

अनुबंध-2

133

13

अनुबंध-3

144

14

अनुबंध-4

148

15

अनुबंध-5

149

16

अनुबंध-6

150

17

अनुबंध-7

151

18

अनुबंध-8

153

19

अनुबंध-9

155

20

अनुबंध-10

157

 

संदर्भ-ग्रंथ सूची

158

 

Sample Pages









Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at help@exoticindia.com
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through help@exoticindia.com.
Add a review
Have A Question

For privacy concerns, please view our Privacy Policy

Book Categories