प्लैनेटरी मैडिटेशन में बहुत ही सरल ढंग से समझाया गया है कि ग्रहों की स्थितियाँ किस तरह से हमारे जीवन को स्वरूप प्रदान करती हैं और हमें ज्ञान, शांति और विवेक से समृद्ध करती हैं। इसमें नक्षत्र-मैडिटेशन की एक ऐसी ध्यान-विधि को उद्घाटित किया गया है, जिसकी पहले कल्पना भी नहीं की गई थी। इससे स्पष्ट होता है कि जिस नक्षत्र में व्यक्ति का जन्म होता है, उसके देवता से जुड़कर ही वह सत्, चित् और आनंद की अवस्था को प्राप्त कर सकता है।
पं. अजय भाम्बी पिछले पैंतीस वर्षों से ज्योतिष की प्रैक्टिस करते आ रहे हैं और अपने गहन अनुभव से उन्होंने प्लैनेटरी मैडिटेशन नाम से एक नई ध्यान-विधि का उद्घाटन किया है। प्लैनेटरी मैडिटेशन में वे आध्यात्मिक ज्योतिष को बहुत ही व्यावहारिक और उपयोगी ढंग से पाठकों के सामने प्रस्तुत करते हैं। पं. 'भाम्बी का हिमालय की योग-परंपरा से गहरा संबंध है, जिससे यह पता चलता है कि जीवन की गहरी समझ के साथ-साथ ज्योतिष पर उनका कितना अधिकार है। उनके लेख और फीचर देशभर के समाचार-पक्ष-पक्षिकाओं में प्रकाशित होते हैं और ये नियमित टीवी शो भी करते हैं।
अजय भाम्बी द्वारा रचित प्लैनेटरी मैडिटेशन नामक इस पुस्तक ने मुझे स्वयं कई दृष्टियों से चिंतन करने करने के लिए प्रेरित किया है वैज्ञानिक की दृष्टि से, मनोवैज्ञानिक की दृष्टि से, आध्यात्मिक साधक की दृष्टि से और साथ ही गूढ़ विषयों पर निराधार विचार करने वाले एक शंकालु की दृष्टि से भी।
इसे तार्किक दृष्टि से कहानी के कलेवर में कुछ इस तरह से बुना गया है जैसे पौराणिक कहानियों को संदर्भ से जोड़ा जाता है और मनोविज्ञान की बातों को आम आदमी के नज़रिये से पेश किया जाता है और स्वयं के कायाकल्प को खुद-ही-करो की तरह पेश किया जाता है, लेकिन सब कुछ योजनाबद्ध रूप में किया गया है। व्यापक सैद्धांतिक आधार को ज्योतिष की प्रचुर सामग्री की पृष्ठभूमि में मानसिक संज्ञान की दृष्टि से नहीं बल्कि भावनात्मक दृष्टि से भी इस तरह से प्रस्तुत किया गया है ताकि पाठक स्वयं अपने-आपको समझ सके। इससे पाठक जीवन को न केवल कर्म के सिद्धांत की दृष्टि से बल्कि अपनी प्रकृति, व्यक्तित्व और संस्कारों की दृष्टि से भी देखने के लिए प्रेरित हो सकेगा।
अपने जीवन में नक्षत्रों की स्थिति, खास तौर पर स्वयं के ज्ञान, शक्ति और कमजोरियों और अपने जीवन में उनकी स्थिति को समझकर पाए गए ज्ञान के स्वाभाविक प्रवाह से और उसके बाद ध्यान की विशेष विधि को सीखने से पाठक को ध्यान के माध्यम से प्राप्त विवेक पाने से पहले ज्ञान को आत्मसात् करने में मदद मिलेगी।
यह आम बात है कि हर चीज़ की तरह आत्मविकास और आध्यात्मिक प्रतिभा के साधन भी सभी सिद्धांतों के लिए एक-से नहीं होते। यह तो सभी जानते हैं कि किसी को एक ध्यान की विधि से लाभ मिलता है तो किसी को दूसरी विधि से कुछ ऐसे भी होते हैं जो किसी विधि से भी लाभ नहीं उठा पाते। इस पुस्तक में दी गई नक्षत्रों की पृष्ठभूमि की जानकारी हमारे व्यक्तित्व पर पड़ने वाले प्रभाव पर, जीवन के अलग-अलग चरण पर, आध्यात्मिक विकास से जुड़ने या उससे लाभ उठाने की हमारी क्षमता पर या खास तौर पर ध्यान की विधियों पर प्रकाश डालती है।
मैंने यह पुस्तक गुरू नानकदेव जी के शुभ जन्म दिन पर लिखनी शुरू की थी। दिलचस्प बात तो यह है कि इसका अंत भी एक दूसरे शुभ दिन मकर संक्रांति के दिन हुआ है, जब सूर्य अगली छमाही के लिए उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश करता है। मकर संक्रांति सारे भारत में तो मनाई ही जाती है, दुनिया के दूसरे भागों में भी मनाई जाती है। महाभारत के अनुसार भीष्म पितामह इसी प्रतीक्षा में कई दिनों तक शरशैय्या पर पड़े रहे ताकि वे तभी स्वर्ग की ओर प्रस्थान करें जब सूर्य दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध की ओर चला जाएगा। यह सादृश्य इसलिए भी उपयुक्त है कि कदाचित् ब्रह्मांड की चेतना ने इस पुस्तक की रचना में विशेष भूमिका अदा की है।
यह पुस्तक साठ दिनों में पूरी हुई है। पिछले पैंतीस वर्षों से यह मेरे दिमाग में है। उस समय मेरी मुलाकात एक प्रतिभाशाली व्यक्ति से हुई थी, जो डॉ.वी.बी. रमन के समकालीन ज्योतिषाचार्य थे। वे ज्योतिष पर एक पत्रिका निकालते थे Astrological Magazinel इस पत्रिका में विद्वान् लेखक अपने लेख और आलेख नियमित रूप से प्रकाशित कराने के लिए भेजा करते थे। ये सज्जन भी इस पत्रिका में नियमित रूप से लिखते थे। मेरी उनसे मुलाकात मेरे अपने शहर ग्वालियर में हुई थी। उस समय में स्थानीय समाचार पत्रों में लिखता था और आकाशवाणी के कार्यक्रमों में भी भाग लेता था। ये सज्जन मेरे ज्ञान को आँकना चाहते थे। इसलिए जब मैं उनसे मिला तो उन्होंने अपनी जन्मपत्री मुझे दे दी और उसे बाँचने के लिए कहा।
हम उनके किसी रिश्तेदार के घर पर बैठे थे और मैंने उनकी जन्मपत्री बाँचनी शुरू कर दी। इसमें चार घंटे लग गए। इस बीच मेज़बान ने हमें पानी, चाय और जलपान परोसना शुरू कर दिया था। मुझे अच्छी तरह से याद है कि मैंने इस दौरान पानी की एक बूंद भी हलक से नीचे नहीं उतारी थी। मेरा पूरा ध्यान उस सज्जन की जन्मपत्री को बाँचने और उसकी व्याख्या करने में ही लगा था। मैंने उन्हें उनके जन्म के बारे में बताया साथ ही पिछले और अगले जन्म में होने वाली घटनाओं के बारे में भी बतलाया। वे जन्मपत्री बाँचने और उसकी व्याख्या करने के मेरे तरीके से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने मुझे बताया कि नाड़ीशास्त्र और भृगुसंहिता देखने के बाद उन्होंने पाया कि मैंने सब अधिकतर ठीक-ठीक ही बताया है।
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