| Specifications |
| Publisher: Bharatiya Jnanpith, New Delhi | |
| Author Panduranga Rao | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 103 | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 8.5x5.5 inch | |
| Weight 250 gm | |
| Edition: 2016 | |
| ISBN: 9789326352154 | |
| HBQ953 |
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डॉ. पाण्डुरंग राव की कृति 'रामायण के महिलापात्र' (वीमेन इन वाल्मीकि) में रामायण के बारह महत्त्वपूर्ण महिला-पात्रों की भूमिका का विद्वत्तापूर्ण और रोचक विश्लेषण है। इन पात्रों का चयन करते समय लेखक ने इनके महत्त्व के साथ-साथ कुछ ऐसे विलक्षण गुणों को भी दृष्टि में रखा है जिनके ये प्रतीक या प्रतिनिधि हैं।
'रामायण के महिला-पात्र' में परस्पर विरोधी प्रवृत्तियों के पात्रों का हृदयग्राही चित्रण प्रस्तुत किया गया है। समस्त सद्गुणों की आदर्श प्रतिमा तथा समस्त विभूतियों की साकार मूर्ति जानकी के साथ इसका आरम्भ करना और सभी दृष्टियों से जानकी की ठीक विपरीत प्रतिकृति शूर्पणखा के साथ इसका समापन करना सर्वथा समीचीन लगता है। दशरथ की सबसे छोटी रानी कैकेयी भी इसमें है जो अपनी पापदर्शिता की आप शिकार बन जाती है और साथ में वह कौशल्या भी है जो सत्य और धर्म के प्रति अपनी धीर गम्भीर निष्ठा के बल पर संकटपूर्ण परिस्थिति में अपनी उद्विग्न भावुकता पर विजय पाती है।
इनके अलावा अहल्या, तारा और मन्दोदरी भी है जो पंच-कन्याओं के अन्तर्गत आती है और अचंचल भक्ति भावना की भव्य मूर्ति शबरी भी है। लंका में जानकी की रखवाली करने वाली त्रिजटा भी है जो राक्षसी होते हुए भी रामायण की भावी घटनाओं को प्रतिभासित करने वाले स्वप्न के दर्शन से अपने को अनुगृहीत मानती है। इनके अलावा भी कुछ और पात्र हैं जिनका इस महाकाव्य में अपना महत्त्व है।
इस छोटी-सी पुस्तक के सभी पात्र लेखक की जानकारी, सूझ-बूझ और प्रशस्य पारदर्शिता से प्रसूत हैं। अब तक अनेक कृतियों के कृतित्व से कृतकृत्य डॉ. पाण्डुरंग राव की लेखनी को यह रचना नयी शोभा प्रदान करती है।
भारतीय चिन्तन के क्षेत्र में विख्यात अर्थवेत्ता व परमार्थवेत्ता श्री चिन्तामणि देशमुख और उनकी पत्नी श्रीमती दुर्गावाई देशमुख की प्रेरणा से प्रस्तुत रचना का प्रणयन हुआ था। आज से लगभग 14 वर्ष पहले की बात है जब श्रीमती दुर्गाबाई देशमुख ने अपनी संस्था 'आन्ध्र महिला सभा' की मुख पत्रिका 'विजयदुर्गा' के लिए एक विचारवर्धक लेख लिखने का मुझसे अनुरोध किया था अँग्रेजी और तेलुगु में प्रकाशित इस पत्रिका के लिए मैंने अंग्रेजी में लेख भेजा था जिसका शीर्षक था: 'जानकी इन वाल्मीकि'। देशमुख दम्पती को यह लेख इतना अच्छा लगा कि वे इसे लेखमाला का रूप देना चाहते थे। उनकी इच्छा के अनुसार जानकी से आरम्भकर शूर्पणखा तक रामायण के विभिन्न महिला पात्रों पर मैंने कुल मिलाकर बारह लेख दिये। यह लेखमाला 'विजयदुर्गा' के बारह अंकों में लगातार एक वर्ष तक प्रकाशित हुई और पाठकों की प्रशंसा से प्रेरित होकर 'आन्ध्र महिला सभा' ने उसे 'वीमेन इन वाल्मीकि' के नाम से पुस्तकाकार में प्रकाशित किया। लेखमाला के रूप में पहली बार अँग्रेजी में प्रकाशित इस रचना के प्रबुद्ध पाठकों में से प्रमुख थे भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री बी.डी. जत्ती, जिनका 'आमुख' इस प्रयास का प्रभाषक है। यह सारा काम 1976 में हुआ था।
बाद में अखिल भारतीय रामायण सम्मेलन में सम्मिलित होने के लिए जब मैं चित्रकूट गया तो वहाँ पर महात्मा गाँधी के अनुयायी और 'गाँधी मार्ग' के सम्पादक बाबू भवानी प्रसाद मिश्र से भेंट हुई। इस अँग्रेजी पुस्तक पर उनकी सुरुचिपूर्ण दृष्टि पड़ी तो उन्होंने इसका हिन्दी रूपान्तर 'गाँधी मार्ग' में लेखमाला के रूप में प्रकाशित किया। भवानी बाबू की भव्य भावना का परिणाम है प्रस्तुत रचना-'रामायण के महिला पात्र'। न मालूम, किस समाहित क्षण में इस रचना की परिकल्पना मेरे मन में उदित हुई, और उसी का प्रभाव है कि आज यह रचना तेलुगु, कन्नड और बांग्ला में भी उपलब्ध हो रही है। वास्तव में रामायण पिछले तीस वर्षों से लगभग मेरे बहिः प्राण के समान मुझे सहारा देती रही है। रामकथा का भारतीय जनजीवन के साथ भी लगभग इसी प्रकार का सम्बन्ध रहा है। प्राचेतस की प्रतिभा ने इस कथा को इतना रमणीय और मननीय शैली में प्रस्तुत किया कि यह केवल कथा न रहकर गाथा बन गयी है। दैनन्दिन जीवन में मानव-मन को सम्बल और मनोबल प्रदान करने वाली अक्षयनिधि इस महाकाव्य में निहित है। रामकथा के पात्र केवल कवि-कल्पना से प्रसूत कमनीय पात्र नहीं हैं बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षण में हमारे अनुभव में आने वाले यथार्थ और मननीय पात्र हैं। रामकथा के समालोचक इन पात्रों को कई दृष्टियों से परखने, समझने और समझाने का प्रयास करते रहे। समीक्षण का यह क्षेत्र इतना उर्वर और व्यापक है कि इस सम्बन्ध में जितना कहा जाय, उतना और कहने को रह जाता है। प्रस्तुत विश्लेषण में मैंने इसी समीक्षण को आत्म-निरीक्षण का रूप देने का विनम्र प्रयास किया है।
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