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साम्प्रत मैं चिरन्तन- Saamprat Mai Chirantan (Poems Collection)

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Writers honoured with 'Gyanpeeth Award'
Specifications
Publisher: Vani Prakashan
Author Rajendra Shah
Language: HINDI
Pages: 264
Cover: HARDCOVER
9x6 inch
Weight 399 gm
Edition: 2024
ISBN: 9789357753258
HBR164
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Book Description
पुस्तक परिचय
सन् 2001 के ज्ञानपीठ पुरस्कार से अलंकृत गुजराती के यशस्वी और शीर्षस्थानीय कवि श्री राजेन्द्र केशवलाल शाह की सात दशकों की काव्य-यात्रा का सर्वोत्तम संचयन प्रस्तुत करते हुए भारतीय ज्ञानपीठ को प्रसन्नता है। रवीन्द्र और गांधी युग की छाया में अपना लेखन आरम्भ करने वाले कवि राजेन्द्र शाह की कविताओं में सौन्दर्य एवं अध्यात्म का श्रेष्ठ समन्वय मिलता है। प्रकृति उनके काव्य में अपने पूरे वैभव में अवतरित हुई है। औपनिषदिक वेदान्त ने उनकी कविता को वैचारिक गहराई दी है। उनकी कविता में दार्शनिकता, रहस्यमयता के साथ ही संवादिता, आत्मतृप्ति और प्रसन्नता का भाव सहज रूप से अभिव्यक्त होता है। राजेन्द्र शाह ने समत्व दृष्टि से जीवन-मांगल्य का गान किया है। उनकी कविताओं में साम्प्रत समस्याओं की स्थूल प्रतिध्वनि भले ही न मिलती ही लेकिन मानववाद का एक गहरा अन्तःसूत्र उनकी कविता को चिरन्तनता देता है। राजेन्द्र शाह की कविताओं का चयन और सम्पादन गुजराती और हिन्दी पर समान अधिकार रखनेवाले उच्चकोटि के सर्जक रघुवीर चौधरी द्वारा किया गया है। नागरी लिपि में मूल गुजराती कविताओं के साथ ही हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है, जिससे रसज्ञ पाठक चाहें तो मूल कविताओं का भी आनन्द ले सकें। विश्वास है, 92 वर्ष के वयोवृद्ध कवि की आजीवन साधना का चयनित यह संकलन ज्ञानपीठ की श्रेष्ठ साहित्य को प्रकाशित करनेवाली परम्परा को समृद्ध करेगा।

लेखक परिचय
जन्म : 28 जनवरी, 1913, कपड़वंज (जिला खेड़ा, गुजरात) शिक्षा : एम.एस. विश्वविद्यालय, बड़ौदा से स्नातक । राजेन्द्र शाह के अब तक 21 कविता-संकलन प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें ध्वनि (1951), आन्दोलन (1951), श्रुति (1957), मोरपिच्छ (1959), शान्त कोलाहल (1962), चित्रणा (1967), क्षण जे चिरंतन (1968), विषादने साद (1969), मध्यमा (1978), उद्‌गीति (1979), ईक्षणा (1979), पत्रलेखा (1981), प्रसन सप्तक (1982), पंच पर्व (1983), विभावन (1983), द्वासुपर्णा (1983), चन्दन भीनी अनामिक (1987), आरण्यक (1992), अंबलाव्या मोर (1988), समझुम (1989) आदि काफ़ी चर्चित रहे हैं। इनके अलावा कुछ कहानियों, एकाकियों व बाल साहित्य की पुस्तकें प्रकाशित। कुछ महत्त्वपूर्ण भारतीय तथा विदेशी रचनाकारों की कृत्तियों का गुजराती अनुवाद भी। सम्मान पुरस्कार : 'कुमार चन्द्रक- (1947), 'रणजीतराम सुवर्णचन्द्रक' (1956), 'साहित्य अकादेमी' (1964), 'नर्मदचन्द्रक' (1977) 'धनजी कानजी सुवर्णचन्द्रक' (1983), 'आदिकवि नरसिंह मेहता पुरस्कार' (1999) आदि विविध पुरस्कारों तथा सम्मान से विभूषित। 1999 में साहित्य अकादेमी दिल्ली की महत्तर सदस्यता। सन् 2001 के 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित ।

प्राक्कथन
श्री राजेन्द्र केशवलाल शाह (जन्म 28 जनवरी, 1913) श्रेष्ठ कवि और वरेण्य व्यक्ति हैं। उनकी शब्द-साधना और जीवन-साधना में कोई अन्तर नहीं है। अनासक्त कर्म ने उन्हें सदा प्रसन्न रखा है। उन्होंने अपने प्रथम कविता संकलन के प्रकाशन में कोई हड़बड़ी नहीं की, इसलिए वह काफी विलम्ब से प्रकाशित हुआ। कविता के लिए सन् 1947 में उन्हें 'कुमारचन्द्रक' के रूप में प्रथम पुरस्कार मिला। उनके प्रथम काव्य-संग्रह 'ध्वनि' का प्रकाशन 1951 में हुआ। सभी सहृदय समीक्षकों ने 'ध्वनि' का स्वागत किया। एक नये युग का आरम्भ हुआ-राजेन्द्र निरंजन युग। सन् 1956 में रणजितराम सुवर्णचन्द्रक पुरस्कार उन्हें समर्पित हुआ। सन् 1962 में प्रकाशित 'शान्त कोलाहल' के लिए उन्हें सन् 1964 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। ज्ञानपीठ द्वारा पुरस्कृत होने से पूर्व कविवर राजेन्द्र शाह को साहित्य अकादेमी की अधिसदस्यता प्राप्त हो चुकी है। अकादेमी के लिए श्री परेश नायक ने उन पर फिल्म बनायी है। अकादेमी और गुजराती साहित्य परिषद द्वारा राजेन्द्र शाह की कविता के हिन्दी तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद करवाने के लिए एक कार्य-शिविर का भी आयोजन हो चुका है। अन्य संस्थाएँ भी इस हेतु सक्रिय रही हैं। प्रस्तुत संकलन के अधिकांश अनुवादक कवि हैं, यह एक सुखद संयोग है, फिर भी सुज्ञ पाठकों से अनुरोध है कि वे इस प्रयत्न को परिणाम न मानकर प्रक्रिया मानें और मूल गुजराती के लय-माधुर्य का आस्वाद करें।

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