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सोनती और कांस के फूल- Sonti Aur Kans Ke Phool (Collection of Stories)

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Specifications
Publisher: LITTLE BIRD PUBLICATIONS, DELHI
Author Rajani Sharma Bastariya
Language: Hindi
Pages: 232
Cover: PAPERBACK
8.5x5.5 inch
Weight 300 gm
Edition: 2025
ISBN: 9789363065291
HBZ797
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Book Description

भूमिका

भारतीय परंपरा में 'शब्द' को "नादा ब्रह्मा" से विभूषित किया गया है, जो कि सृष्टि की उत्पत्ति एवं ब्रह्मांड के मूल स्वरूप का द्योतक है। दूसरे शब्दों में, 'शब्द' केवल साधारण ध्वनि नहीं है अपितु यह अर्थ, भाव एवं ज्ञान का वाहक है। हिंदी के मूर्धन्य विद्वान हरिवंश राय बच्चन ने 'शब्द' की व्याख्या इस प्रकार की है, "लाखों-करोड़ों वर्षों के इतिहास में मनुष्य ने महान साधना एवं मूल्य चुकाकर यह कला सीखी होगी कि अक्षरों, शब्दों में कैसे अपनी अनुभूतियों, उपलब्धियों एवं अपने को अवतरित एवं अभिव्यक्त कर दे। शब्दों की यात्रा दुनिया भर में अलौकिक रही है। महान फ्रेंच दार्शनिक ज्यां पाल सार्ज ने तो अपनी जीवनी का नाम ही रखा है- "द वर्ड।" जिस प्रकार, अक्षरों से मिलकर शब्द, शब्द से मिलकर वाक्य का निर्माण होता है। ठीक उसी प्रकार, वाक्यों की श्रृंखला को अपने अनुभव, भावना एवं विचार से परिमार्जित कर उसे साहित्यिक विधा में ढ़ालकर जब एक रचनाकार रोचक ढंग से जनमानस को प्रस्तुत करती है, तब यह विधा 'कहानी' के रूप में प्रकट होती है। 'कहानी' गद्य रूप में लिखी गई एक ऐसी सशक्त विधा है जिसका उद्देश्य पाठकों के मन-मस्तिष्क का समग्रता में ज्ञानवर्धन कर उन्हें सतत चिंतनशील बनाना है। दूसरे शब्दों में, कहानी का उद्देश्य होता है, "वैचारिकी परंपरा को दैदीप्यमान रखना।" इसी संदर्भ में कहा गया है-

जब रथ क्रांति की रुक जाए चिंतन पर काई जम जाए तो समझो पीढ़ी हार गई पुरवा को पछुआ मार गई।

कथानक, पात्र, स्थान और समय, संवाद, भावना एवं संदेश एक कहानी के प्रमुख अवयव होते हैं। इन समस्त अवयवों के समागम से कहानी अपने मूर्त स्वरूप में परिलक्षित होता है। कहानी लेखन एक महान सृजनात्मक प्रक्रिया है जिसमें एक रचनाकार के अंतर्मन की परिकल्पना साकार होती है।

श्रीमती रजनी शर्मा जी एक ऐसी ही उत्कृष्ट, उद्दात, ओजस्विनी-तेजस्विनी कहानीकार हैं। एक कर्मयोगिनी की भांति उन्हें अपने कर्तव्य से विशेष अनुराग है। रजनी जी अपने काम को अपना ईमान समझती हैं। उन्होंने बड़े मनोयोग से अपनी नवीनतम रचना "सोनती और कांस के फूल" को गढ़ा है। यह पुस्तक उनकी चुनिंदा कहानियों का संग्रह है। इस कहानी संग्रह में कुल इक्कीस कहानी है। क्या सुखद संयोग है कि भारत के संविधान का अनुच्छेद इक्कीस के तहत "जीवन का अधिकार" प्रदान किया गया है। जबकि रजनी जी की इक्कीस कहानियां मानव जीवन की तमाम संवेदनाओं को अपने मातहत समाहित की हुई है। दृष्टिगोचर है कि प्रत्येक कहानी स्वयं में एक अप्रतिम एवं उल्लेखनीय कृति है। लेखिका रजनी जी एक सशक्त कहानीकार से अपेक्षित तमाम गुणों से परिपूर्ण हैं। उनकी कहानियों की कल्पनाशीलता, अभिव्यक्ति कौशल, दृष्टिकोण की गहराई, पात्रों का सजीव चित्रण, कथानक में रोचकता, संवेदनशीलता, लेखन शैली, भाषा, संदेश, उद्देश्य, धैर्य, अभ्यास के साथ-साथ श्रोताओं और पाठकों की समझ बेमिसाल है। 'सोनती और कांस के फूल' नामक किताब पढ़कर स्टीवेंसन की पंक्ति का स्मरण होता है, "पुस्तकें जीवन की रक्तहीन स्थानपन्न होती हैं।"

प्रतीत होता है कि लेखिका रजनी जी बड़े मनोयोगपूर्वक, विद्या की देवी माँ सरस्वती की साधना करते हुए अपनी कहानियां गढ़ती हैं। प्रत्येक कहानी के एक-एक शब्द मोतियों की तरह गूंथे गए हैं, पिरोए गए हैं। इनकी कहानियों के पात्र जीवंत एवं उद्दात प्रतीत होते हैं। वैसे तो कहानियों की अनेकानेक विधा विद्यमान है लेकिन रजनी जी की कहानियों को मैं "लोक यथार्थवाद की कहानियां" से विभूषित करता हूँ। ये तमाम कहानियां छत्तीसगढ़ राज्य के दंडकारण्य क्षेत्र में स्थित बस्तर-कांकेर इलाके की पृष्ठभूमि में लिखे गए हैं। अपितु यूँ कहा जाए कि अपनी व्यापक दृष्टि के जरिए लेखिका सुदूर बस्तर का परिचय सारा संसार से करा रही हैं। प्रकृति के प्रति उनका अनुराग अवर्णनीय है। अपने विभिन्न पात्रों के माध्यम से उन्होंने एक ऐसी मानव-श्रृंखला का निर्माण करने का प्रयास किया है जिसके द्वारा बस्तर के घने जंगल से निकलकर पात्र सम्पूर्ण विश्व को संदेश देना चाहता है कि प्रकृति से जुड़ना ही शाश्वत है। प्रकृति ही समाधान है। इन कहानियों को पढ़ते समय संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तहत गठित "ग्रो ब्रूटलैंड अयोग" की संस्तुति का स्मरण स्वाभाविक है- "सोंचो, साथ क्या जाएगा!" जी हां, लेखिका अपनी कहानियों के जरिए आह्वान करती हैं कि प्रकृति की ओर लौटें। रजनी जी की कहानियों का नायक-नायिका सदैव ही समाज के अंतिम पायदान पर खड़ा व्यक्ति होता है। दूसरे शब्दों में, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के "अंतिम जन" का दर्शन इन पात्रों में नैसर्गिक रूप से प्रकट होता है। ऐसा लगता है कि कहानी का नायक-नायिका गर्वित होकर पुरजोर ढंग से अपनी सबलता की मुनादी करता प्रतीत हो रहा है। ध्यातव्य है कि किसी भी जंजीर की मजबूती का आधार उसकी सबसे कमजोर कड़ी होती है। इस प्रकार, लेखिका अपील करती हैं कि अपनी कमजोर कड़ी को अविलम्ब मजबूत किए जाने की अविलंब आवश्यकता है। शासकों से अपेक्षा की गई है कि जनसाधारण प्रकृति रक्षक को 'मॉब' (भीड़) नहीं अपितु 'मास' (जनता) समझा जाए। रजनी जी एक विशुद्ध मानवतावादी हैं। इस नाते उनका सतत आग्रह है कि एक मानव का दूसरे मानव के साथ वही उद्दात व्यवहार अपेक्षित है जिससे कि मानव, मानवता एवं मानवीयता रूपी त्रिपटक का इक्बाल बुलंद हो। संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में 10 दिसंबर (अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस), 1948 को पेरिस में घोषित मानव अधिकारों का सार्वभौम घोषणापत्र भी 'मानव' को सभ्यता की इकाई एवं केंद्रबिंदु मानता है। इस संदर्भ में टूमैन स्वामी विवेकानंद की उक्ति अत्यंत प्रार्थनीय है, "मैं उस ईश्वर की पूजा करता हूँ जिन्हें अज्ञानी लोग मनुष्य कहते हैं।

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