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श्रीरामचरितमानस में आध्यात्मिकता- Spirituality in Shri Ramcharitmanas

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Specifications
Publisher: LAVYANYA PRAKASHAK, DELHI
Author Jyotsna Mohan
Language: SANSKRIT, HINDI AND AWADHI
Pages: 363
Cover: HARDCOVER
10x7.5 inch
Weight 900 gm
Edition: 2024
HBY314
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Book Description
उपोद्घात
औचित्याद् वृत्तमुक्तस्य वचनात् तत्त्वचिन्तनम्। मैत्र्यादिसारमत्यन्तमध्यात्मं तद्वितो विदुः ॥ अध्यात्म क्या है? योगविन्दु में स्पष्ट कि औचित्य विधिवत् चरित्र-सेवी पुरुष का शास्त्रानुगामी तत्त्व चिन्तन, मैत्री, करुणा, प्रमोद तथा माध्यस्थ रूप उत्तम भावनाओं का जीवन में सम्यक् स्वीकार ज्ञानी जनों द्वारा अध्यात्म कहा जाता है। स्पष्ट है कि जो आत्मा को आत्मा से धारण करता है वह अध्यात्म है और अध्यात्म ही तप है। यदि संसार में ऐसा कोई देश है, जिससे सभ्यता के सूर्व का सर्वप्रथम उदय हुआ, जिसमें ज्ञानमहोदधि की उताल तरङ्ग अनादिकाल से सुदूर कोनों को भी आप्लावित करती रही है, कर्म, ज्ञान और भक्ति की परमत्रिवेणी पूर्वतिहासिक काल से दुःखदावानलदग्ध प्राणियों के सन्तप्त हृदयों को शान्ति सुधा पिलाती रही है. जिसको युग युग में संख्यातीत संत महापुरुषों और अवतारों को प्रकट करने का गौरव प्राप्त है, जहाँ आध्यात्मिकता की लता खूब फली-फूली है, तो यह पुण्य भूमि भारतवर्ष है। यदि समस्त विश्व में कहीं कोई ऐसी जाति है, जिससे भूभाग पर सर्वप्रथम मानव सभ्यता और संस्कृति को जन्म दिया, जिसने जीवन की अत्यन्त उलझी हुई तपोमय ग्रन्थियों को त्याग-स्नेहपूर्ण आलोकशाली ज्ञानप्रदीप के सहारे सुस्पष्ट रीति से सुलझाकर मनुष्य जाति का परम कल्याण किया, जिसने गम्भीर विचारपूर्ण 'दर्शनों' की प्रौढ़ रचना के द्वारा ज्ञान सागर को गागर में भर दिया, जिसने विश्व को अठारह विद्या और चौसठ कलाओं के आलोक से चकाचौंध कर दिया, जिसको दुःख सहना सिखाना गया है. दुःख देना नहीं, जिसने सदा से अन्य धर्मावलम्बियों के प्रति सहिष्णुता की भावना रक्खी है, जो आत्मा चाहिए। धर्म-विषयक समस्याएँ दार्शनिक भावना का संबल है। हम देखते हैं कि जब-जब धर्म को अति पहुँचती हैं; परम्परागत संसार काल परिवर्तन के कारण मनुष्य से अपना विश्वास खो बैठते हैं, ऐसे समय में व्यास, शंकर, बुद्ध, अरविन्द जैसे युग पुरुष की चेतना आध्यात्मिक जीवन की गहराइयों में हलचल उत्पन करती हुई जनमानस पर छा जाती है। भारतीय विचारधारा के इतिहास में निःसन्देह ये बड़े महत्त्वपूर्ण क्षण रहते हैं, जबकि आत्मा की पुकार पर मनुष्य का मन एक युग में पदार्पण करता है। दर्शन के सत्य और जनसाधारण के दैनिक जीवन का घनिष्ठ सम्बन्ध ही धर्म को सदा सजीव और वास्तविक बनाता है। आध्यात्मिक अनुभव भारत के सम्पन्न साँस्कृतिक इतिहास की आधारभित्ति है। यह एक अद्भुत विरोधाभास है. जहाँ एक ओर किसी व्यक्ति का सामाजिक जीवन जन्मगत जाति की कठिन रूढ़ि से जकड़ा हुआ है, वहाँ उसे अपना मत स्थिर करने में पूरी स्वतन्त्रता है। प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह किसी सम्प्रदाय में जन्मा हो, तर्क द्वारा उस सम्प्रदाय की समीक्षा कर सकता है। महाभारत में कहा है- 'ऐसा कोई मुनि नहीं जो अपनी भिन्न सम्मति न रखता हो।' यह सब भारतीय मस्तिष्क की प्रवल बौद्धिकता का प्रमाण है जो मानवीय कार्य-कलाप के समस्त पक्षों के अभ्यन्तर सत्य एवं नियमों को जानने के लिए प्रयत्नशील है। यह वौद्धिक प्रेरणा केवल दर्शनशास्त्र और ब्रह्मविद्या तक ही सीमित नहीं है, बल्कि तर्कशास्त्र और व्याकरणशास्त्र में, अलङ्कारशास्त्र और भाषाविज्ञान में, आयुर्विज्ञान और ज्योतिषशास्त्र में, वस्तुतः स्थापत्यकला से लेकर प्राणिविज्ञान तथा समस्त ललित कलाओं और विज्ञानों में व्याप्त है। यहाँ का वौद्धिक जीवन कितना, भारतीय विचारधारा का सर्वोपरि स्वरूप, जिसने इसकी समग्र संस्कृति को ओतप्रोत कर रखा है और जिसने इसके सब चिन्ताओं को एक विशेष प्रकार का ढाँचा प्रदान किया हैं, इसकी आध्यात्मिक प्रवृत्ति है। आध्यात्मिक अनुभव भारत के सम्पन्न साँस्कृतिक इतिहास की आधारभिति है। भारतीय जीवन में आध्यात्मिक प्रयोजन का स्थान सदा ही सर्वोपरि रहता है। परन्तु आध्यात्मिक कोई विभिन्नता और विविधता शून्य एकरसता नहीं। यह अत्यन्त समृद्ध तथा मूर्त जीवन का एक स्तर है. मानसिक तथा बौद्धिक से अधिक समृद्ध विविधापूर्ण आध्यात्मिक जीवन की समता का अर्थ विभिन्नता और मौलिकत्ता रहित समानता नहीं। इसका अर्थ है, वास्तव में रजोगुणी आवेगों के उतार-चढ़ाव से मुक्त तथा बाह्य आग्रहशील उद्वेलनों से स्वतन्त्र शान्त अन्तर में गम्भीर तथा मौलिक आत्मप्रेरणा द्वारा जीवन की स्थिति और गति का निर्धारण। इन भावों में जहाँ शान्ति और समता एक न्यूनतम सामान्य अंश होगा, वहाँ उनमें समृद्धता में कम या अधिक अथवा स्तर में ऊँच या नीच के भेद होंगे। अथवा इनमें एक क्रम विकास दिखायी देना और अनन्त भावी विकास की सम्भावना तो सदा ही उपस्थित रहेगी। यदि दर्शनशास्त्र की ओर देखें तो हम इस तथ्य पर पहुँचते हैं कि भारत में दर्शनशास्त्र मूलभूत रूप से आध्यात्मिक है। ज्ञान का आनन्द मनुष्य को उपलब्ध एक पवित्रतम आनन्द है और भारतीय मस्तिष्क में इसके लिये प्रवल लालसा की ज्वाला विद्यमान है। भारत की प्रगाढ़ आध्यात्मिकता ने हो, न कि उसके द्वारा विकसित किसी बड़े राजनैतिक डाँचे या सामाजिक संगठन ने, इसे काल के विध्वंसकारी प्रभावों और इतिहास की दुर्घटनाओं को सहन कर सकने की सामर्थ्य प्रदान की।

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