| Specifications |
| Publisher: THE DIVINE LIFE SOCIETY | |
| Author Swami Sivananda | |
| Language: Sanskrit Text With Word-to-Word Meaning and Hindi Translation | |
| Pages: 606 | |
| Cover: Hardcover | |
| 9.0 inch X 6.0 inch | |
| Weight 860 gm | |
| Edition: 2024 | |
| NZK945 |
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श्री स्वामी शिवानंद सरस्वती
८ सितम्बर , १८८७ को संत अप्पय्य दीक्षितार तथा अन्य अनेक ख्याति - प्राप्त विद्वानों के सुप्रसिद्ध परिवार में जन्म लेने वाले श्री स्वामी शिवानन्द जी में वेदांत के अध्यन एवं अभ्यास के लिए समर्पित जीवन जीने की तो स्वाभाविक एवं जन्मजात प्रवृति थी ही, इसके साथ साथ सबकी सेवा करने की उत्कण्ठा तथा समस्त मानव जाती से एकत्व की भवन उनमे सहजात ही थी !
सेवा के प्रति तीव्र रूचि ने उन्हें चिकित्सा क्षेत्र की ओर उन्मुख कर दिया और जहा उनकी सेवा की सर्वाधिक आवश्यकता थी , उस ओर सिघ्र ही वे अभिमुख हो गये ! मलया ने उन्हें अपनी ओर खींच लिया ! इससे पूर्व वह एक स्वास्थ्य - सम्बन्धी पत्रिका का संपादन कर रहे थे ! जिसमे स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं पर विस्तृत रूप से लिखा करते थे ! उन्होंने पाया की लोगो को सही जानकारी की अत्यधिक आवश्यकता है , अतः सही जानकारी देना उनका लक्ष्य ही बन गया !
यह एक देवी विधान एवं मानव - जाति पर भगवान् की कृपा ही थी कि देह - मन के इस चिकित्सक ने अपनी जीविका का त्याग करके , मानव कि आत्मा के उपचारक होने के लिए त्यागमय जीवन को अपना लिया ! १९२४ में वह ऋषिकेश में बस गये , यहाँ कठोर तपस्या की ओर एक महान् योगी, सन्त, मनीषी एवं जीवन्मुक्त महात्मा के रूप में उद्भासित हुए !
१९३२ में स्वामी शिवानन्द जी ने 'शिवानन्द आश्रम' की स्थापना की; १९३६ में 'द डिवाइन लाइफ सोसाईटी ' का जन्म हुआ; १९४८ में 'योग - वेदान्त फारेस्ट एकाडेमी' का शुभारम्भ किया ! लोगो का योग और वेदांत में प्रशिक्षित करना तथा आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार - प्रसार करना इनका लक्ष्य था ! १९५० में स्वामी जी ने भारत ओर लंका का द्रुत - भ्रमण किया I १९५३ में स्वामी जी ने 'वर्ल्ड पार्लियामेंट ऑफ़ रिलीजन्स' (विश्व धर्म सम्मलेन) आयोजित किया ! स्वामी जी ३०० से अधिक ग्रंथो के रचियता है तथा समस्त विश्व में विभिन्न धर्मो, जातियो ओर मतों के लोग उनके शिष्य है ! स्वामी जी के कृतियों का अध्ययन करना परम ज्ञान के स्तोत्र का पान करना है ! १४ जुलाई , १९६३ को स्वामी जी महासमाधि में लीन हो गये !












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