| Specifications |
| Publisher: Vishwavidyalaya Prakashan, Varanasi | |
| Author Kalyanmal Lodha | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 205 | |
| Cover: Hardcover | |
| 8.5 inch X 5.5 inch | |
| Weight 360 gm | |
| Edition: 2000 | |
| ISBN: 8171242510 | |
| NZD078 |
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पुस्तक के विषय में
'वाग्द्वार' सांस्कृतिक बोध तथा भारतीय परम्परा से संयुक्त नये गवाक्ष खोलने वाले कवियों की रचनात्मक चेतना के वैशिष्ट्य की समीक्षा है। कवियों ने अपने कवि कर्म को संस्कृति और समाज के साथ मिलकर नवीन उद्भावनाएं की हैं। कवि की रचनात्मक शक्ति जहां एक ओर इतिहास क्षण से जुड़ती है, वहीं दूसरी ओर मानवीय क्षण से। सौन्दर्यानुभूति भी जीवन के क्षणिक, परिमित और सर्वदा क्षेत्र की अभिव्यक्ति होती है। कबीर, तुलसी, सूर, मैथिलीशरण गुप्त, प्रसाद, निराला, महादेवी और भारतीय आत्मा पं० माखनलाल चतुर्वेदी ऐसे ही सनातनधर्मी कवि हैं, जिन्होंने परम्परा की जड़ता में न बंधकर उसकी नवीन प्रवहमानता को सांस्कृतिक संपुष्टता का नवीन आयाम दिया है । इन्हीं कवियों की रचनाओं का मौलिक एवं समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत करता 'वाग्द्वार' ।
लेखक के विषय में
कल्याणमल लोढ़ा
जन्म : 28 सितम्बर 1921 ( जोधपुर) आचार्य एवं अध्यक्ष, हिन्दी वि भाग, कलकत्ता विश्वविद्यालय ( कृत कार्य), भूतपूर्व कुलपति, जोधपुर विश्वविद्यालय, बंगीय हिन्दी परिषद् के पूर्वाध्यक्ष, भारतीय विद्या भवन के व्यवस्थापक सदस्य, अखिल भारतीय लेखक संघ के अध्यक्ष आदि अनेक शै क्षणिक, साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्थाओं से सम्बद्ध व मान्य विद्वान्। प्रमुख कृतियाँ :
वाक्पथ, आधुनिक हिन्दी कविता के पात्र, वाग्मिता, इतस्तत:, प्रसाद सृष्टि व दृष्टि, वाग्विभव, वाग्द्वार ।
प्रमुख सम्पादन :
प्रज्ञाचक्षु सूरदास, भारतीय साहित्य में राधा, भक्ति तत्त्व, कामायनी, श्रीगीता तत्व चिन्तन, मैथिलीशरण गुप्त अभिनन्दन ग्रन्थ, हिन्दी अनुशीलन, सोमतत्त्व, प्रणव तत्व आदि ।
समान :
विवेक पुरस्कार, साहित्य वाचस्पति, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, मधुवन, मध्यप्रदेश द्वारा 'कलाश्री', तुलसी मानस संस्था भोपाल द्वारा प्रशस्ति पत्र एवं सम्मान, राजस्थान सरकार की पत्रिका 'सुजस' द्वारा गौरव उपाधि ।
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विषय-क्रम |
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भूमिका : वाग्वै पथ्या स्वस्ति : |
1-17 |
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1 |
साधु संग्राम है रैन दिन जूझना |
1-18 |
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2 |
तुलसी का कवि व्यक्तित्व |
19-33 |
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3 |
तुलसी का रचना-संसार |
34-61 |
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4 |
प्रीति पुरातन लखै न कोई |
62-73 |
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5 |
सूर काव्य का पूनर्मूल्यांकन |
74-88 |
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6 |
गुप्तजी का मानवतावाद |
89-105 |
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7 |
यशोधरा : स्रोत, काव्य और विकास |
106-121 |
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8 |
प्रज्ञापुरुष प्रसाद |
122-140 |
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9 |
निराला : काल खलता रहा कला फलती रही |
141-170 |
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10 |
महादेवी : छाया-सी काया वीतराग |
171-189 |
|
11 |
पं० माखनलाल चतुर्वेदी 'भारतीय आत्मा' |
190-202 |

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