| Specifications |
| Publisher: Randhir Prakashan, Haridwar | |
| Author Akshat Swami | |
| Language: Sanskrit Text with Hindi Translation | |
| Pages: 112 | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 21.5 cm x 14 cm | |
| Weight 180 gm | |
| ISBN: 9789391939519 | |
| HBD090 | |
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'शिव स्वरोदय' की रचना के सम्बन्ध में एक प्रसंग के अनुसार एक बार पार्वती जी ने भगवान शंकर से सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करने वाले योग के विषय में पूछा, तो भगवान शंकर ने इस जिज्ञासा का उत्तर देते हुए पार्वती जी को जो ज्ञान दिया, वही शिव स्वरोदय के नाम से प्रसिद्ध है। शिव स्वरोदय के अन्तर्गत शिव पार्वती सम्वाद के रूप में स्वर विज्ञान के सभी रहस्यों को उजागर किया गया है। पार्वती द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर में शिव स्वयं स्वर विद्या के प्रारम्भिक ज्ञान से लेकर गहनतम् आश्चर्य को सरल शब्दों में उद्घाटित करते हैं।
पार्वती (शक्ति) भगवान् शिव से शिव स्वरोदय के अन्तर्गत मुख्यतः यह प्रश्न पूछती हैं -
1. कौन सा ज्ञान पूर्णता प्रदान करता है?
2. ब्रह्माण्ड की रचना कैसे हुई ?
3. ब्रह्माण्ड कैसे परिवर्तित और विलीन होता है?
4. ब्रह्माण्ड का निर्धारण कौन करता है?
इन प्रश्नों को आधार मानकर भगवान् शिव स्वर उत्थान का पूर्ण विवेचन करते हुए उत्तर देते हैं कि सृष्टि सूक्ष्म तत्वों के कारण उत्पन्न होती है, उन्हीं से पोषित होती है और अंततः उन्हीं में विलीन हो जाती है। परमसत्ता निराकार है, जिससे आकाश विकसित होता है, उससे वायु निर्गमित होती है, वायु से तेजस (अग्नि), तेजस से जल और जल से पृथ्वी उत्पन्न होती है। यह पाँच तत्व ब्रह्माण्ड में फैले हुए हैं, सृष्टि इन्हीं से बनती है। सृष्टि के निर्माण और विनाश की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है।
यह सृष्टि अनेक रहस्यों से परिपूर्ण है, आधुनिक विज्ञान भौतिक जगत् के कुछ रहस्यों को उजागर कर सका है, परन्तु सूक्ष्म जगत् के अधिकांश रहस्य आधुनिक विज्ञान की पहुँच से परे हैं। इन्हीं रहस्यों की सूक्ष्म परत में प्रवेश करने का विज्ञान शिव स्वरोदय है। यह स्वर विज्ञान सभी रहस्यों का सरताज है। यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का सार प्रकट करता है।
इस पुस्तक के श्लोक 11-12 में शिव कहते हैं यह विज्ञान सभी प्रकार के ज्ञान का मुकुटमणि है। यह सभी ज्ञानों में सूक्ष्मतम है। इसे समझना और धारण करना सरल है, यह सत्य पर आधारित है। नास्तिक व्यक्ति के लिए यह एक आश्चर्य है, आस्थावान के लिए यह एक सुदृढ़ आधार है।
ज्ञान किसे प्राप्त हो सकता है? इस प्रश्न के सन्दर्भ में शिव श्लोक 13 में कहते हैं कि जो शांत, शुद्ध, अच्छे आचरण वाला, गुरु को समर्पित, दृढ़ निश्चयी और कृतज्ञ हो, वही इसका अधिकारी है।
श्लोक 22 में शिव स्वर महिमा की चर्चा करते हुए कहते हैं कि स्वर की शक्ति शत्रुओं पर विजय दिलाती है, मित्रों की प्राप्ति कराती है, धन और यश प्रदान करती है।
श्लोक 25 में शिव स्वयं पार्वती को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि हे सुंदर मुख वाली देवी, सभी पवित्र पुस्तकें, नैतिक कहानियाँ, शिक्षाएँ और उपनिषदज्ञान स्वरज्ञान के परे नहीं है।
श्लोक 28 में शिव कहते हैं कि यह ज्ञान किसी अज्ञानी के मूढ़ प्रश्नों का उत्तर देने हेतु कदापि प्रकट नहीं करना चाहिए, अपितु इसे अपने चित्त, वाणी और बुद्धि में धारण करना चाहिए।
इस प्रकार ऐसे अद्वितीय रहस्य से भरपूर यह प्राचीन शिव स्वरोदय आप सभी स्वर विद्या के पथिकों के मार्ग प्रशस्त हेतु यहाँ प्रकाशित किया गया है।
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