निवेदन
परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका जिन्होंने गीताप्रेसकी स्थापनाकी थी, पारमार्थिक जगत्की एक महान् विभूति हुए हैं । उनपर भगवान्नेविशेष कृपा करके उन्हें प्रकट होकर स्वेच्छासे चतुर्भुजरूपसे दर्शनदिये ।भगवान् प्रकट हुए तब श्रीगोयन्दकाजीके मनमें फुरणा हुई कि भगवान्नेऐसी महान् कृपा किस हेतु की । उनको प्रेरणा हुई कि भगवान् चाहतेहैं कि मेरी निष्काम भक्तिका प्रचार हो । इस उद्देश्यकी पूर्तिहेतु श्रीगोयन्दकाजी द्वारा बड़ा भारी प्रयास हुआ । उनका कहना था कि पारमार्थिक उन्नतिमें चार चीजें विशेष लाभप्रद हैं-सत्संग, ध्यान, नामजप भजनादि तथा निष्काम सेवा-इसमें भी उनका सबसे ज्यादा जोर सत्संगपर था । इसी उदेश्यसे उन्हें कभी सत्संग कराते थकावट नहीं मालूम देती थी, बल्कि वे बड़े उत्साहसे घंटों-घंटों प्रवचन करते रहते थे । गीताभवन स्वर्गाश्रममें लगभग चार महीने सत्संगका समय रहता था । वहाँका वातावरण बड़ा सात्त्विक है, इसलिये वहाँपर दिये गये प्रवचन पाठकोंको विशेष लाभप्रद होंगे । इस भावसे उनके प्रवचनोंको पुस्तकाकार प्रकाशित करनेका विचार हुआ है । किस स्थलपर, किस दिनाङ्कको उनका यह प्रवचन हुआ यह लेखके नीचे दिया गया है । कुछ छोटे प्रवचन एक ही विषयके होनेसे उन्हें एक ही लेखमें संग्रहीत कर दिया गया है । इन प्रवचनोंमें कई ऐसी प्रेरणात्मक बातें हैं जो मनुष्यको परमार्थ-मार्गमें बहुत तेजीसे अग्रसर करती हैं, उदाहरणके तौरपर बताया जाता है कि 'मैंपन' (अहंता) को पकड़नेमें जितना अभ्यास तथा समय लगा है, उतना समय और अभ्यास इसके छोड़नेमें नहीं लगता । जैसे मकानको बनानेमें बहुत समय लगता है, परन्तु उसके तोड़नेमें बहुत कम समय लगता है । ऐसी बहुत-सी अमूल्य बातें इन प्रवचनोंमें आयी हैं । हमें आशा है कि पाठकगण इन प्रवचनोंको एकाग्र मनसे पढ़ेंगे एवं मनन करेंगे । यह निश्चित कहा जा सकता है कि इनसे हमें विशेष आध्यात्मिक लाभ होगा ।
विषय-सूची |
||
विषय |
पृं.सं |
|
1 |
स्वाभाविक ध्यानकी महत्ता |
1 |
2 |
महात्माके संगसे लाभ |
3 |
3 |
महात्माओंकी कृतज्ञता |
4 |
4 |
स्वार्थ - त्यागकी महिमा |
8 |
5 |
नामजपका प्र भाव एवं रहस्य |
11 |
6 |
निर्भरता तथा निष्कामता |
16 |
7 |
भगवान्की लीलामें तत्व एवं रहस्य |
19 |
8 |
निरन्तर ध्यानकी युक्ति |
27 |
9 |
भरतजीका भगवान् राममें प्रेम |
31 |
10 |
द्रष्टाके ध्यानसे स्वरूपकी प्राप्ति |
36 |
11 |
भगवान्का तत्त्व – रहस्य |
40 |
12 |
सिद्धान्त एवं रहस्यकी बातें |
42 |
13 |
ध्यानकी विधि |
48 |
14 |
वास्तविक सिद्धान्त |
59 |
15 |
सगुण-साकार भगवानका ध्यान |
60 |
16 |
महात्मा और भगवान्की विशेषता |
65 |
17 |
ज्ञातृत्वरहित चेतन |
69 |
18 |
महात्माका अनु भव- ''परमात्मा है'' |
72 |
19 |
श्रद्धासे विशेष लाभ |
74 |
20 |
अहंता - ममता कैसे मिटे |
77 |
21 |
भगवान्की लीलाका तत्व – रहस्य |
87 |
22 |
ज्ञाता, ज्ञान तथा ज्ञेयका विवेचन |
92 |
23 |
भावका फल |
97 |
24 |
भगवान्का साकार स्वरूप |
99 |
25 |
राग - द्वेष मिटानेके उपाय |
103 |
26 |
प्रकृति नित्य है अथवा सान्त |
109 |
27 |
भरतजीका रामजीमें प्रेम |
112 |
28 |
समर्पण |
123 |
29 |
भाव - सुधारकी आवश्यकता |
129 |
30 |
सार बातें |
131 |
31 |
प्रश्रोत्तर |
142 |
32 |
भगवान्के गुण - प्रभावादिका अनुभव |
153 |
निवेदन
परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका जिन्होंने गीताप्रेसकी स्थापनाकी थी, पारमार्थिक जगत्की एक महान् विभूति हुए हैं । उनपर भगवान्नेविशेष कृपा करके उन्हें प्रकट होकर स्वेच्छासे चतुर्भुजरूपसे दर्शनदिये ।भगवान् प्रकट हुए तब श्रीगोयन्दकाजीके मनमें फुरणा हुई कि भगवान्नेऐसी महान् कृपा किस हेतु की । उनको प्रेरणा हुई कि भगवान् चाहतेहैं कि मेरी निष्काम भक्तिका प्रचार हो । इस उद्देश्यकी पूर्तिहेतु श्रीगोयन्दकाजी द्वारा बड़ा भारी प्रयास हुआ । उनका कहना था कि पारमार्थिक उन्नतिमें चार चीजें विशेष लाभप्रद हैं-सत्संग, ध्यान, नामजप भजनादि तथा निष्काम सेवा-इसमें भी उनका सबसे ज्यादा जोर सत्संगपर था । इसी उदेश्यसे उन्हें कभी सत्संग कराते थकावट नहीं मालूम देती थी, बल्कि वे बड़े उत्साहसे घंटों-घंटों प्रवचन करते रहते थे । गीताभवन स्वर्गाश्रममें लगभग चार महीने सत्संगका समय रहता था । वहाँका वातावरण बड़ा सात्त्विक है, इसलिये वहाँपर दिये गये प्रवचन पाठकोंको विशेष लाभप्रद होंगे । इस भावसे उनके प्रवचनोंको पुस्तकाकार प्रकाशित करनेका विचार हुआ है । किस स्थलपर, किस दिनाङ्कको उनका यह प्रवचन हुआ यह लेखके नीचे दिया गया है । कुछ छोटे प्रवचन एक ही विषयके होनेसे उन्हें एक ही लेखमें संग्रहीत कर दिया गया है । इन प्रवचनोंमें कई ऐसी प्रेरणात्मक बातें हैं जो मनुष्यको परमार्थ-मार्गमें बहुत तेजीसे अग्रसर करती हैं, उदाहरणके तौरपर बताया जाता है कि 'मैंपन' (अहंता) को पकड़नेमें जितना अभ्यास तथा समय लगा है, उतना समय और अभ्यास इसके छोड़नेमें नहीं लगता । जैसे मकानको बनानेमें बहुत समय लगता है, परन्तु उसके तोड़नेमें बहुत कम समय लगता है । ऐसी बहुत-सी अमूल्य बातें इन प्रवचनोंमें आयी हैं । हमें आशा है कि पाठकगण इन प्रवचनोंको एकाग्र मनसे पढ़ेंगे एवं मनन करेंगे । यह निश्चित कहा जा सकता है कि इनसे हमें विशेष आध्यात्मिक लाभ होगा ।
विषय-सूची |
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विषय |
पृं.सं |
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1 |
स्वाभाविक ध्यानकी महत्ता |
1 |
2 |
महात्माके संगसे लाभ |
3 |
3 |
महात्माओंकी कृतज्ञता |
4 |
4 |
स्वार्थ - त्यागकी महिमा |
8 |
5 |
नामजपका प्र भाव एवं रहस्य |
11 |
6 |
निर्भरता तथा निष्कामता |
16 |
7 |
भगवान्की लीलामें तत्व एवं रहस्य |
19 |
8 |
निरन्तर ध्यानकी युक्ति |
27 |
9 |
भरतजीका भगवान् राममें प्रेम |
31 |
10 |
द्रष्टाके ध्यानसे स्वरूपकी प्राप्ति |
36 |
11 |
भगवान्का तत्त्व – रहस्य |
40 |
12 |
सिद्धान्त एवं रहस्यकी बातें |
42 |
13 |
ध्यानकी विधि |
48 |
14 |
वास्तविक सिद्धान्त |
59 |
15 |
सगुण-साकार भगवानका ध्यान |
60 |
16 |
महात्मा और भगवान्की विशेषता |
65 |
17 |
ज्ञातृत्वरहित चेतन |
69 |
18 |
महात्माका अनु भव- ''परमात्मा है'' |
72 |
19 |
श्रद्धासे विशेष लाभ |
74 |
20 |
अहंता - ममता कैसे मिटे |
77 |
21 |
भगवान्की लीलाका तत्व – रहस्य |
87 |
22 |
ज्ञाता, ज्ञान तथा ज्ञेयका विवेचन |
92 |
23 |
भावका फल |
97 |
24 |
भगवान्का साकार स्वरूप |
99 |
25 |
राग - द्वेष मिटानेके उपाय |
103 |
26 |
प्रकृति नित्य है अथवा सान्त |
109 |
27 |
भरतजीका रामजीमें प्रेम |
112 |
28 |
समर्पण |
123 |
29 |
भाव - सुधारकी आवश्यकता |
129 |
30 |
सार बातें |
131 |
31 |
प्रश्रोत्तर |
142 |
32 |
भगवान्के गुण - प्रभावादिका अनुभव |
153 |