संगीत कैसे पैदा हुआ ?
नदी का कल-कल करता जल, सुबह-शाम चिडिया की चहचहाहट, झरने की झर-झर, हवा की साय-साय, रात के सन्नाटे में झींगुरों की झिन-झिन और आधी मे हवा की हरर-हरर की आवाजें मनुष्य आदि काल से सुनता आया है विभिन्न पशु-पक्षियों की आवाजें भी वह सुनता आया है इन्ही सब ध्वनियों में उसने अंतर करना भी सीखा किसी वृक्ष की सूखी टहनी से जब उसने पत्थरों पर वार किया होगा तब उसने एक अलग ही ध्वनि सुनी होगी । सूखी फलियों को हिलाया होगा तो उसके अदर से बीज बज उठे होंगे । पत्ती को मोड़कर उसमे फूक-मारी होगी तो उसे सीटी जैसी ध्वनि सुनाई दी होगी । मनुष्य के मन मे यह बात तो जरूर आई होगी कि इन सब को बजाया जा सकता है । यही से वाद्यों का एक रूप उसके मन में बैठ गया होगा आज भी न्यू गिनी के आदिवासी सूखी हुई फलियों के गुच्छे डोरी मे बाधकर अपनी कमर से लपेट लेते हैं जब वे नाचते है तो इन फलियों के बीज बजते हे जिससे नृत्य मे किसी और वाद्य की जरूरत ही नही पडती है ।
इस युग को हम प्राक् संगीत युग कह सकते हैं जिसमें मनुष्य ने प्रकृति की ध्वनियों और उनकी विशिष्ट लय को जानने और समझने की कोशिश की माना जाता है कि संगीत का आदिम स्रोत प्राकृतिक ध्वनिया ही हैं, लेकिन ये ध्वनियां संगीतका आधार नहींहैं सवाल यह है कि आखिर ऐसी कौन सी ध्वनियां है जो संगीत पैदा कर सकती हैं संगीत केवल उन्ही ध्वनियों से निकलता है जो हमारे मन में किसी न किसी भाव से उपजती है
ध्वनियां कई प्रकार की होती हें । उन ध्वनियों को जिनमें लय होती है हम संगीत के लिए उपयोगी मान सकते है बाकी ध्वनियों का संगीत से कोई लेनादेना नही होता कोयल की कूहू-कूहू, बरसात की रिमझिम, नदियों की कलकल, आदि को संगीत के योग्य ध्वनियां कहा जा सकता है क्योंकि वे एक निश्चित लय पैदा करती हें । लेकिन ये ध्वनियां संगीत नहीं हैं । ये किसी प्रकार की भावना या अभिव्यक्ति से पैदा नहीं होती है, भले ही सुनने वाले के मन में कोई भाव पैदा करती हों । ये केवल मधुर लगती हैं । लेकिन यह भी सच है कि ये प्राकृतिक ध्वनियां मनुष्य के लिए प्रेरणा का स्रोत तो जरूर रही हैं । मनुष्य ने जब प्रकृति की ध्वनियों में छिपे संगीत के गुण को पहचाना होगा तो उन्हें लय में बांधने का प्रयास भी किया होगा । कहा जा सकता है कि संगीत भावव्यंजक यानी भाव प्रकट करने वाली ध्वनियों से पैदा हुआ । भावव्यंजक ध्वनियां ही संगीत का आधार हैं ।
भारतीय दर्शन में संगीत के जन्म को लेकर कई रोचक कथाएं प्रचलित हैं । कहा जाता है कि चारों वेदों की रचना करने वाले ब्रह्मा ने ही संगीत को भी जन्म दिया । इस युग को वैदिक युग कहा गया है क्योंकि इस युग में चार वेदों की रचना हुई । ये चार वेद हैं ऋग्वेद । सामवेद । अथर्ववेद और यजुर्वेद । संगीत के विषय में ब्रहमा ने विस्तार से सामवेद में बताया है । कहा जाता है कि उन्होंने यह विद्या शिव को सिखाई और शिव ने देवी सरस्वती को संगीत के संस्कार दिए । संगीत में पारंगत होने के बाद ही सरस्वती वीणापाणि कहलाईं । इसीलिए सरस्वती के चित्रों में उन्हें हाथों में वीणा उठाये दिखाया जाता है । स्वर्गलोक में निवास करने वाले नारद मुनि बेखटके भूलोक यानी पृथ्वी पर आया-जाया करते थे । यही नारद सरस्वती के शिष्य बने और जब संगीत की विद्या ग्रहण कर चुके तो उन्होंने यह विद्या गंधर्वों । किन्नरों और अप्सराओं को सौंपी । भूलोक पर रहने वाले भरत मुनि और अन्य तपस्वियों ने गंधर्वों और किन्नरों से संगीत का ज्ञान प्राप्त किया और पृथ्वी पर अन्य लोगों को सिखाया । ऐसी ही एक अन्य कथा के अनुसार संगीत की रचना करने वाले ब्रह्मा नहीं बल्कि शिव थे । नारद मुनि ने शिव से संगीत सीखने के लिए कई वर्षों तक कठोर तपस्या की । शिव उनसे प्रसन्न हुए और इस शर्त पर उन्हें संगीत सिखाया कि वे इस ज्ञान को भूलोक पर फैलायेंगे । नारद मुनि स्वर्गलोक से पृथ्वी पर आये और उन्होंने तपस्वियों को संगीत का प्रशिक्षण दिया ।
प्रचलित कथाओं में देवराज इंद्र की संगीत-नृत्य सभा का भी उल्लेख मिलता है । इंद्र की सभा में गायक । नर्तक और वादक सभी हुआ करते थे । गंधर्व गाते थे । अप्सराएं नृत्य करती थी और किन्नर वाद्य बजाते थे । भारतीय संगीत की धारणा में गायन । वादन और नृत्य विभिन्न कलाएं जरूर हैं लेकिन इन तीनों का मेल ही दरअसल संगीत कहलाता है । संगीत रत्नाकर नाम के ग्रंथ में संगीत के विषय में यही कहा गया है ।
"गीतं वाद्यं तथा नृत्तं त्रयं संगीतमुव्चते ।।''
अनुक्रम
1
संगीत केसे पैदा हुआ?
5
2
संगीत का आधार
13
3
संगीत क्यों ओर कैस
19
4
शास्त्रीय, उपशास्त्रीय और लोक संगीत
27
वाद्य यत्रों का अमूल्य खजाना
39
6
हिदुस्तानी संगीत घराने और कलाकार
61
7
कर्नाटक संगीत का परिचय
74
संदर्भ ग्रंथ
82
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