SALE CLOSES IN

Easy Returns
Easy Returns
Return within 7 days of
order delivery.See T&Cs
1M+ Customers
1M+ Customers
Serving more than a
million customers worldwide.
25+ Years in Business
25+ Years in Business
A trustworthy name in Indian
art, fashion and literature.

उपदेशामृत: Upadeshamrit - A Collection of Amma's Teachings (Set of 2 Volumes)

$18.90
$28
10% + 25% off
Includes any tariffs and taxes
Express Shipping
Express Shipping
Express Shipping: Guaranteed Dispatch in 24 hours
Specifications
Publisher: AMRITA BOOKS, KERALA
Author Swami Jnanamritananda Puri
Language: Hindi
Pages: 462
Cover: PAPERBACK
8.50 X 5.50 inch
Weight 430 gm
Edition: 2022
ISBN: Vol-1: 9789388246620Vol-2: 9789388246552
HBK485
Delivery and Return Policies
Ships in 1-3 days
Returns and Exchanges accepted within 7 days
Free Delivery
Easy Returns
Easy Returns
Return within 7 days of
order delivery.See T&Cs
1M+ Customers
1M+ Customers
Serving more than a
million customers worldwide.
25+ Years in Business
25+ Years in Business
A trustworthy name in Indian
art, fashion and literature.
Book Description
प्रस्तावना

विश्व में ऐसे समदर्शी महात्मा अत्यंत दुर्लभ हैं जो चराचर जगत को आत्मा में और आत्मा को संपूर्ण चराचर जगत में सदा देखते रहते हैं। कहीं हम उन्हें देख भी लें, तो भी आत्मा के नितान्त मौन में लीन वे महात्मा शायद हमसे बात करने और हमें उपदेश देने तैयार न हों। किन्तु, यदि कोई पूर्णज्ञानी महात्मा मातृवात्सल्य की आर्द्रता एवं आचार्य की अहैतुक कृपा से उपदेश देने व शासित करने को तैयार हों, तो उसे हमारा परम-सौभाग्य ही बताया जा सकता है। श्रीमाता अमृतानन्दमयी देवी के दर्शन एवं अमृतवचन पूरे विश्व के लाखों लोगों में जीवन-परिवर्तन के नवकन्दलों का विकास कर रहे हैं। इसी पृष्ठभूमी में ब्रह्मचारियों, भक्तजनों तथा जिज्ञासु आगंतुकों के साथ अम्मा ने (१९८५ जून से १९८५ नवम्बर इस कालावधी में) जो वार्तालाप किए हैं, उनका एक अमूल्य संग्रह इस ग्रन्थ के रूप में संकलित करके प्रथम भाग में सहर्ष प्रकाशित किया जा रहा है। उर्वरित भाग आप सब की सेवा में द्वितीय भाग में भी शीघ्र ही प्रस्तुत किया जाएगा।

जो महात्मा विश्व के उद्धार का सन्देश ले आते हैं, उनकी वाणी में सामयिक और चिरस्थायी आयाम होते हैं। वे चिरस्थायी सनातन मूल्यों पर ही बात करते हैं। तथापि वे युग की पुकार को भी अपनाते हैं। श्रोताओं की मानसिक धड़कनें अपने हृदय में अपनाकर उसके प्रतिस्पंदन रूपी वाक्य ही उनके मुख से निकलते हैं।

आधुनिक युग में मानव सुख-भोग एवं पद-प्रतिष्ठा के बाहरी लाभके लिए पागल की तरह भाग-दौड़ कर रहा हैं। इस भाग-दौड़ में मानव को सनातन मूल्य, हृदय के उदात्त भाव एवं आत्म-शान्ति के नष्ट होने की दर्दशा भुगतनी पड़ती है। ऐसी सामाजिक स्थिति में अम्मा अपने परिवर्तनकारी अमूल्य अमृतवचन बरसाती हैं। अपनी आत्मा को भुलाकर मानव जिस भाग-दौड में लीन है, वह जीवन की शुचिता और मुग्धता को नष्ट कर देती है। आज अविश्वास प्रतिदन्द्रिता और भय की भावना व्यक्तिगत संबंधों और पारिवारिक बंधनों को शिथिल बना देती है। उपभोग संस्कृति के अतिशय प्रवाह में प्रेम मृगतृष्णा में परिणत होता जा रहा है।

अभिलाषा की पूर्ति की काम्य भक्ति निश्छल ईश्वर प्रेम का स्थान हथिया लेती है। मानव अस्थायी लाभ देने वाली प्रतिभा को अतिरंजित स्थान देता है। वह विवेक के प्रतिश्रुत स्थायी श्रेय को ठुकराता है। ऊँचे आध्यात्मिक आदर्श एवं उदात्त अनुभूतियाँ जीवन में प्रकट होने के बदले केवल शब्दों में सीमित रहती है। ऐसे ही युग में अम्मा निश्छल भक्ति की, हृदय की, विवेक की, प्रेमपूर्ण निज जीवन की भाषा में बोलती हैं। अम्मा की अमृतवाणी की अत्यंत तत्काल आवश्यक, तथा साथ ही स्थायी प्रासंगिकता भी यही है।

अम्मा दशकों से लाखों स्त्री-पुरुषों से प्रत्यक्ष मिलकर उनकी बहुमुखी समस्याएँ स्वयं सुनती समझती आईं हैं। इन समस्याओं का समाधान देते अम्मा के अमृतवचनों में मानव जीवन के बारें में उनकी गहन अंतर्दृष्टि व्यक्त होती है। तर्कवादी व आस्थावान् को, शास्त्रज्ञ और सामान्य व्यक्ति को, गृहिणी व व्यापारी को, पण्डित व पामर को, स्त्री और पुरुष को उनके जरूरतों और योग्यता के अंतर के अनुसार अम्मा उनके स्तर तक उतरकर अनुयोज्य उत्तर देती हैं।

अम्मा अपने जीवन की ओर दिशा-निर्देश कर घोषित करतीं हैं कि 'मैं सब को उस सत्य के रूप में, ब्रह्म के रूप में देखतीं हूँ। अतएव सत्य को नमन करती हूँ। अपने को नमन करती हूँ, सब को आत्मस्वरूप जानकर सबकी सेवा करती हूँ।' अम्मा यद्यपि अद्वैत को परम सत्य स्वीकार करती हैं, तथापि नामरूप, रूपध्यान, कीर्तन, अर्चना, सत्संग और निष्काम लोक-सेवा सबके समंजस सम्मेलन का पथ ही प्रायः लोगों को अपने उपदेशों में बताती हैं।

अम्मा के उपदेश कोरे सिद्धान्त नहीं हैं। वे अत्यन्त व्यवहारिक और जीवनस्पशीं हैं। जिज्ञासु पाठक देख सकते हैं कि अम्मा के उपदेश कितने ही क्षेत्रों पर उज्ज्वल प्रकाश डालते हैं, सामूहिक एवं वैयक्तिक जीवन की सुव्यवस्था के लिए आध्यात्मिक शिक्षण और साधना की आवश्यकता, आत्मान्वेषण में निष्काम लोक सेवा का स्थान, अंतरंग प्रार्थना एवं प्रेम-भक्ति का महत्त्व, गृहस्थ का धर्म, दैनिक जीवन की समस्याएँ, स्त्री-पुरुष धर्म, साधकों के लिए पथ-प्रदर्शन, सैद्धान्तिक पहेलियाँ आदि अनेक आयामों पर अम्मा के शब्द प्रकाश डालते हैं। हमें बीच-बीच में इन शब्दों में अम्मा का आठान गूँजता सुनाई दे सकता है। वे हमें प्रेरणा देती हैं कि तड़क-भड़क और दुर्व्यसन त्यागकर आध्यात्मिक जीवन बिताओ, दुःखित एवं पीड़ित लोगों की सेवा करो।

अम्मा समझाती हैं 'बच्चों, ईश्वर का साक्षात्कार ही मानव जीवन का परम ध्येय है। आध्यात्मिकता अंधविश्वास नहीं है। वह अंधकार को दूर हटाता आदर्श है। किसी भी परिस्थिति और बाधा का सामना मंदहास पूर्वक करने का तत्त्व ही आध्यात्मिकता है। वह मन की विद्या है। इस विद्या का अध्ययन करने पर ही हम अन्य विद्याओं से सही लाभ उठा सकेंगे।'

अम्मा का अक्षय ज्ञानकोश संवादों में प्रकट है। जो व्यवहारिक जीवन की कठोर समस्याओं में सान्त्वना के लिए आते हैं, उन्हें अम्मा सान्त्वना के वचन सुनाती हैं। जो जिज्ञासु आध्यात्मिक जीवन के विषय में सन्देह और प्रश्न प्रस्तुत करते हैं, उन्हें उत्तर देतीं हैं। अपने शिष्यों को समय-समय पर अनुशासन देती हैं। इन्हीं के रूप में अम्मा की अक्षय ज्ञान-ज्योति प्रकट होती है। जो संवाद करते हैं, उनकी प्रकृति, संस्कृति और प्रसंग के अनुसार अम्मा प्रत्येक उत्तर देती हैं। जब प्रश्न करने वाले अपने अंतरंग की बात स्पष्ट प्रस्तुत कर नहीं पाते तब भी हृदय की भाषा जानने वाली अम्मा उचित उत्तर देती हैं। अम्मा से घनिष्ठ परिचय रखने वालों को यह सहज अनुभव होता है कि मन में उठे प्रश्न पूछने से पहले ही अम्मा उनका उत्तर देतीं हैं। अम्मा प्रश्न करने वालों का उत्तर देने के साथ ही, उसे मौन होकर सुनने वाले अन्य श्रोताओं को आनुषंगिक रूप से उपदेश भी जोड़ देती हैं। यह अम्मा का तरीका है। केवल वही व्यक्ति, जिसको अम्मा ने लक्षित किया है, समझ पाएगा कि वह उपदेश उसके लिए है।

सुहृदय पाठक जब अम्मा की वाणियों का विश्लेषण करें, तब उन्हें ऐसी विशेषताओं पर गौर करना चाहिए। महात्माओं की वाणी के कई अर्थतल होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्तर का अर्थ ग्रहण करना चाहिए। उपनिषद् की यह कथा प्रसिद्ध है कि ब्रह्माजी ने जब 'द' उच्चारण किया, तब असुरों, मानवों और देवों ने उसे यथाक्रम 'दया', 'दान' और 'दम' के रूप में आत्मसात् किया।

अम्मा को प्रवचन देते हए सुनना एक सुमधुर अनुभूति है। वे चारों तरफ के जीवन की पृष्ठभूमी से जीवन्त उपमाएँ, उदाहरण, अलंकार और उपकथाएँ देती हैं। वे जनरंजक पर अतिशय सरल भाषा में बोलती हैं। वे अपनी वाणी को मातृवात्सल्य के अमृत में घोलकर हाव-भावों से जब वार्तालाप करतीं हैं, तब उन्हें देखना, उन शब्दों को सुनना श्रोताओं तथा अन्य लोगों के लिए अपने आप में अत्यंत मधुर अनुभूति देता है। अम्मा की करुणामयी आँखें व तेजोदीप्त मुख-मण्डल दर्शकों और श्रोताओं के मानस-दर्पण में अमिट ध्यानमूर्ति के रूप में परिणत हो जाते हैं।

वर्तमान दिनों में आध्यात्मिक ग्रंथों का कोई अकाल नहीं है। फिर भी आज का दुःखद सत्य यह है कि आदर्श केवल शब्दों में हैं। जीवन में नहीं हैं। किन्तु अम्मा अपने व्यवहारिक जीवन के आधार पर बोलती हैं। अम्मा ऐसी कोई बात नहीं बतातीं जिसका आचरण वे अपने जीवन में नहीं कर दिखाती हैं। अम्मा बीच-बीच में स्मरण दिलाती भी हैं कि तत्त्व और मंत्र केवल होठों से रटनें के लिए नहीं, व्यवहार में लाने के लिए हैं। अम्मा ने शास्त्रों का अध्ययन विधिवत नहीं किया है, गुरुमुख से शिक्षण नहीं पाया है। पर उनकी वाणी से गहन आध्यात्मिक तत्त्व धारावाही रूप से जो बह निकलते हैं, उसका मर्म उनकी अपरोक्ष स्वानुभूति ही है। महात्माओं का जीवन ही शास्त्रों की बुनियाद है। अम्मा के कई उपदेश अम्मा के ही जीवन के दर्पण हैं, जैसे 'जिसने सत् को जाना है, सारा संसार उसकी सम्पत्ति है।' 'गरीबों के प्रति दया ही ईश्वर के प्रति हमारा कर्तव्य है।' 'ईश्वर का आश्रय हम लें तो वे आवश्यक समय पर आवश्यक वस्तुएँ पहुँचा देंगे।' अम्मा के प्रत्येक व्यवहार में कारुण्य और ईश्वर-प्रेम का नृत्य सा अनुभव होता है। अम्मा के जीवन में पाए जाने वाली मन, वचन और कर्म की एकरूपता ही उनके इस कथन का आधार है 'अम्मा के जीवन का ध्यानपूर्वक निरीक्षण और अध्ययन करें तथा उसके तत्त्वों को आत्मसात करें तो दूसरे शास्त्रों का अध्ययन आवश्यक नहीं है'। अम्मा मूर्तिमान वेदान्त के रूप में जनसामान्य के मध्य विराजमान हैं।

अपने सान्निध्य से पृथ्वी को पवित्र करने वाले महात्मा जंगम तीर्थ हैं। वर्षों के निरन्तर तीर्थ-यात्रा और मन्दिरों के दर्शन मन को शुद्ध बनाते हैं। किन्तु महात्माओं की एक दृष्टि, एक स्पर्श, एक शब्द, मानव को पवित्र बनाता है। तथा उसमे उच्च संस्कृति के बीज बोते हैं। महात्माओं के वचन केवल वैखरी नहीं होते। वे अपने वचनों के साथ अनुग्रह की भी वर्षा करते हैं। जो श्रोता उस वाणी का गहन अर्थ समझे बिना ही सुनता है, उसमें भी वह वाणी किसी न किसी दिन चैतन्य जगाती है। उसी प्रकार वे वचन जब ग्रंथ रूप में प्रकट होते हैं, तब उस ग्रंथ का पारायण आम सत्संग और ध्यान के रूप में परिणत होता है। अम्मा जैसे सत्य-दृष्टा महात्मा देशकाल की सीमाओं से परे होते हैं। अम्मा की अमृतवाणी पढ़ते और सुनते समय हम अदृश्य रूप से अम्मा से अंतरंग सम्बन्ध पालन करने और उनके अनुग्रह का पात्र होने में समर्थ बन जाते हैं। इस सद्ग्रन्थ के वचन का असली महत्त्व भी वही है।

हम प्रार्थना करते हैं कि यह ग्रंथ सब पाठकों को अम्मा के जीवन में सदा प्रकाशित उच्च आध्यात्मिक आदर्शों को अपने जीवन में अमल में लाने, एवं परम सत्य के पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दे सके। इस प्रार्थना के साथ अमृतवाणी का यह लघु संकलन भक्तों की सेवा में समर्पण किया जा रहा है।

Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at help@exoticindia.com
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through help@exoticindia.com.
Add a review
Have A Question
By continuing, I agree to the Terms of Use and Privacy Policy
Book Categories