ये मेरी पाँचवीं और यात्रा अनुभवों की तीसरी पुस्तक है। कहीं भी यात्रा पर जाता हूँ, और जब लौटता हूँ, चाहे वह देश हो या विदेश, मुझे लगता है कि जो कुछ मैंने देखा है या अनुभव किया है, उसे दूसरों के साथ भी साझा कर सकूँ। दूसरों के साथ संवाद करने, बताने, दिखाने तथा लिखकर पढ़ाने में जो अप्रतिम सुख मुझे प्राप्त होता है, वो यात्रा करने से कहीं बड़ा सुख है। मैं जहाँ भी जिस देश में गया वहाँ भारत ही ढूँढ़ने की कोशिश करता रहा हूँ। चाहे पेरिस में विशाल और विश्वप्रसिद्ध लुई 14वें के महल को भारतीय उद्योगपति लक्ष्मी मित्तल द्वारा अपनी बेटी की शादी में एक सप्ताह के लिए किराए पर लेना, या कि सात मंजिला लंदन के खिलौने वाली दुकान हैमलीज को मुकेश अंबानी द्वारा खरीदना, अथवा लंदन के लॉईस का वह पवेलियन जहाँ हीरो कप जीतने के बाद सौरभ गांगुली द्वारा अपनी टी-शर्ट उतार कर हवा में लहराना, या कि जौनपुर के मुस्तफा द्वारा दुनिया के विशालतम डिपार्टमेंटल स्टोर में से एक सिंगापुर में होना, या फिर दूर कम्बोडिया में 'मोदी रेस्टोरेंट' में देसी भोजन करना, ये सारे क्षण मुझे समय-समय पर गौरवान्वित करते रहे। सारी जगह पर वहाँ का विदेशी गाइड हमें भारतीय जानकर यह बताता रहा कि यह सब आपके इण्डिया के लोगों ने किया है। भला कौन भारतीय होगा जिसे यह सब किसी विदेशी से सुनकर भारत के प्रति अथाह प्रेम न उमड़े और गौरव का अनुभव न हो।
लेकिन पिछले दिनों जिन देशों की यात्रा मैंने की, उन सभी में भारतीय संस्कृति अथवा हिन्दू संस्कृति की पहचान भरी पड़ी थी। ये सभी देश दक्षिण-पूर्व एशिया के हैं। जहाँ कम्बोडिया, वियतनाम, सिंगापुर और थाईलैंड बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं, वहीं इंडोनेशिया इस्लाम धर्म को मानने वाला देश है, पर इन सभी देशों में हिन्दू संस्कृति के अवशेषों के साथ-साथ वर्तमान समय में भी यहाँ के जीवन और रहन-सहन में हिन्दू संस्कृति का प्रभाव मिलेगा। हिन्दू संस्कृति का दक्षिण-पूर्व एशिया की संस्कृतियों पर गहरा और स्थायी प्रभाव रहा है। विशेष रूप से इंडोनेशिया, कम्बोडिया, वियतनाम, थाईलैंड और सिंगापुर में हिन्दू संस्कृति का यह प्रभाव जीवन के विभिन्न पहलुओं में देखा जा सकता है, जिसमें धर्म, कला, वास्तुकला, साहित्य और सामाजिक रीति-रिवाज शामिल हैं। दक्षिण-पूर्व एशिया में हिन्दू धर्म के प्रसार का पता प्राचीन व्यापार मार्गों और भारतीय व्यापारियों और संन्यासियों के प्रवास से लगाया जा सकता है। समय के साथ, हिन्दू धर्म ने स्वदेशी मान्यताओं और प्रथाओं के साथ संवाद स्थापित किया, जिससे संस्कृतियों का एक अनूठा मिश्रण हुआ। हिन्दू धर्म ने दिव्य प्राणियों, कर्म, पुनर्जन्म और जाति-व्यवस्था की अवधारणाओं को प्रस्तुत किया, जिसका दक्षिण-पूर्व एशियाई समाजों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। हिंदू-प्रेरित मंदिर, मूर्तियाँ और सजावटी रूपांकन पूरे क्षेत्र में पाए जा सकते हैं, जो हिन्दू संस्कृति की जटिल शिल्प कौशल और प्रतीकात्मकता को प्रदर्शित करते हैं। रामायण और महाभारत की महाकाव्य कथाओं को व्यापक रूप से अनुकूलित किया गया और स्थानीय भाषाओं में अनुवादित किया गया, जिसने दक्षिण-पूर्व एशिया की साहित्यिक परंपराओं को आकार दिया। हिन्दू धर्म ने सामाजिक मानदण्डों, रीति-रिवाजों और समारोहों, जैसे विवाह, जन्म और मृत्यु संस्कारों को प्रभावित किया।
हिन्दू संस्कृति, जो वास्तव में भारतीय संस्कृति का ही पर्याय है, ने विभिन्न दक्षिण पूर्व एशियाई देशों को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है। प्रत्येक देश ने हिन्दू धर्म के तत्त्वों को अपनी स्थानीय परंपराओं, कला, वास्तुकला और सामाजिक संरचनाओं में एकीकृत किया है, जिससे सांस्कृतिक पहचान का एक अनूठा मिश्रण बना है। भौगोलिक और भाषाई अंतरों के बावजूद, हिन्दू धर्म की विरासत इन देशों में ऐतिहासिक कथाओं, धार्मिक प्रथाओं और सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों के माध्यम से प्रतिध्वनित होती है।
इंडोनेशिया का बाली द्वीप अपनी जीवंत हिन्दू संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें पारंपरिक नृत्य, संगीत और समारोह शामिल हैं। यह बात पूरी दुनिया में मशहूर है कि इंडोनेशिया में बाली कई तरह की ललित कलाओं के लिए स्वर्ग है। इनमें से एक है मूर्तिकला। अगर आप वाली जाते हैं, तो आप वहाँ के हर कोने में देवी-देवताओं की मूर्तियाँ देख सकते हैं जो राजसी ढंग से खड़ी हैं, मानों आपका स्वागत करने के लिए तैयार हों। इंडोनेशिया के बाली द्वीप में जैसे ही हम देनपासर हवाई अड्डे से निकलकर उबूद की ओर चलते हैं, एक विशाल मूर्ति बड़े चौराहे पर दिखाई देती है, जो बाली द्वीप के लिए एक नया प्रतीक बन गई है, 'तीती बांदा' (Titi Banda) की मूर्ति। ये प्रतिमा महाकाव्य रामायण के एक दृश्य से ली गयी है। इस मूर्ति में वीच में प्रभु राम धनुष थामे हुए खड़े हैं और उनके साथ पत्थर उठाये अनेक कपि पुल निर्माण में लगे हैं।
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