भारत की स्वतंत्रता के लिए 1857 से ही रखी गई उस वक्त से ही लोग जागृत को चुके थे 1857 के संग्राम समय से ही नामी-गिरामी स्वतंत्र सैनिक जन्मे और उन्होंने अपने तरीके के संग्राम किया। कितने कामयाब रहे तो कितने नाकाम रहे, नाकाम होने की वजह उस समय भारत में देसी राजाओं का अंग्रेज तरफ से रवैया था, एक एक जुटता का, कभी संचार माध्यम और नेतागिरी का अभाव फिर भी जनता ने स्वतंत्रता पाने की आजाद होने की लो और ललक को कायम रखी।
विश्व की प्रजा ने अपनी स्वतंत्रता के लिए संग्राम खेले पर भारत की स्वतंत्रता का संग्राम अपने आप में बड़ा ही अनोखा और परीक्षक था जिसकी मिसाल आज भी कायम है।
भारत की स्वतंत्रता के आंदोलन में रंग, जाति और एवं हर एक भेदभाव को मिटाकर, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्म और वर्ण के लोगों ने अपना योगदान दिया। गरीब, अमिर, कलाकार, साहित्यकार, शिक्षणकार, हर एक तबके के लोग एक जुट होकर संग्राम में संघर्ष किया। इस संग्राम में अनगिनत घटनाएं घटी। कहीं परिस्थितियों का जन्म हुआ, मजबूरियां पैदा हुई, जुल्म ढाए गए। यह सब आजादी के मतवालों ने सहन किया यह सब का मकसद आजादी था। इस राष्ट्रीय आंदोलन का उद्देश्य नए भारत का निर्माण, नए भारत का उदय। संग्राम में संसार के सबसे बड़े ताकतवर साम्राज्य को चुनौती दी, उसके घमंड को लोहा दिया। इस आंदोलन में भारत का कोना-कोना जाग उठा इस जागृति का अहम पहलू भारतीय महिलाओं की जागृति, महिला शक्ति जागृत हुई। उनमें नई शक्ति का संचार हुआ। वैसे महिला जागृति का अभियान बरसों से चला, यह प्रयत्न कहीं महानुभावों ने की। जैसे दयानंद सरस्वती महादेव, गोविंद रानाडे, श्रीमती एनी बेसेंट, स्वामी, विवेकानंद राजा राममोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, महर्षी करवे, लोकमान्य तिलक और महात्मा गांधी इन सबने स्त्रि समान, उन्नति, स्त्रि स्वतंत्रता, जागृति प्रगति जैसे पहलुओं पर खूब प्रयत्न किए। कहीं कार्यक्रम, यों की जिसके जरिए लोगों ने देखा कि स्त्रियों में संघ शक्ति राज्य शक्ति नेतृत्व शक्ति सहनशक्ति जैसी किमती शक्तियां हैं जिन्हें बाहर लाना चाहिए।
इतिहास की कड़ियां जुड़ती चली गई, समय का प्रभाव बदलता गया। इतिहास के पन्ने पलट के चले गए। भारत के इतिहास में भी बदलाव आना जरूरी था। महात्मा गांधी ने जब दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नीति पर आंदोलन छेड़ा उस आंदोलन में बहनों ने अपनी ताकत का परिचय करवाया गांधीजी ने वहां से स्त्री शक्ति का परखी और उन्होने जान लिया कि कष्ट सहन करके किसी का भी हदय परिवर्तन करने की ताकत केवल स्त्रियों में है।
गांधीजी ने स्वतंत्रता की निव गुजरात से ही रखीं जाहिर है गुजरात भी जागृत हुआ, उसमें महिलाएं भी शामिल थी। बहनों ने उत्साह से कार्य नियुक्त हुई। अलबत ऐसा भी हुआ कहीं बहनों ने परिवार से प्रेरणा मिली। उनका परिवार भी इस संग्राम में शामिल हुआ कहीं अपने देश श्रद्धा तो कहीं देश प्रेम से खींची चली गए। कईयों ने अपने परिवार का विरोध कर सहन करना पड़ा, तो कइयों ने परिवार को बगावत करनी पड़ी। देश प्रेम उनमें इतना प्रबल था कहीं बहनों ने परिवार का त्याग किया। देश के प्रति फना होना उनका मजहब, मकसद और मंजिल बन गई थी।
Hindu (हिंदू धर्म) (13447)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (715)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2074)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1544)
Yoga (योग) (1154)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24553)
History (इतिहास) (8927)
Philosophy (दर्शन) (3592)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist