भारत के आबू पर्वत शिखर से पवित्रता और रूहानियत की सुगन्ध को विश्व के कोने-कोने में ले जाने वाली बह्माकुमारियां भौतिकता के अंधकारमय विश्व के लिए लाइट हाऊस है। 'ओम् शांति' के मंत्र के जयघोष और 'पवित्र बनी योगी बनो' के नारे की गूंज भिन्न-भिन्न धर्म, भाषा, रंग, जाति और संस्कृति के लोगों को रूहानी स्नेह के बंधन में बांध कर नई दैवी सतयुगी सृष्टि की पुनस्थापना की महान् और श्रेष्ठ सेवा में उपस्थित ब्रह्माकुमारीज ने सही मायने में आध्यात्मिकता का वैश्वीकरण कर दिया है।
भारत की गौरवमयी स्वर्णिम संस्कृति और अद्भुत वैज्ञानिक संयोग के साथ ब्रह्माकुमारीज़ को संयुक्त राष्ट्र संघ की गैर सरकारी संस्था के रूप में मान्यता प्राप्त होने का गौरव प्राप्त होने के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् (ECOSOC) में सलाहकार होने का सम्मान प्राप्त है एवं यह यूनीसेफ का भी सक्रिय सदस्य है।
आज विश्व के 138 देशों में जिन ब्रह्माकुमार व ब्रह्माकुमारियों ने आध्यात्मिक ज्ञान के माध्यम से अगाध विश्वास तथा अमिट आशा का संचार किया है उनमें ब्रह्माकुमारी राजयोगिनी बहन उषा जी के ओजस्वी मन की विराट तथा श्रेष्ठतम मनन शक्ति का फल है यह महान् प्रेरणाप्रद ग्रंथ जिसमें आत्मा, परमात्मा, राजयोग, सृष्टि चक्र अथवा कालचक्र तथा कर्मों की गुहा गति जैसे गहरे विषयों को कहानियों के नवीन प्रयोग के माध्यम से जिस ताज़गी, जिस नवीनता तथा अजेय सम्मोहन की सृष्टि की है वह मानव के लिए चिरन्तन वरदान है जो मानव मन में विस्मृत मौलिक अनादि-अविनाशी सौन्दर्य को पुनः सुरजीत कर देते हैं।
वैज्ञानिक उन्नति के कारण एक ओर मानव को अत्यन्त विकसित सुख-सुविधाएँ उपलब्ध है, मानव की पहुँच चाँद और मंगल ग्रह तथा स्पेस तक हो गई है, दूसरी ओर आतंकवाद, नक्सली हिंसा, साम्प्रदायिक दंगों, पर्यावरण प्रदूषण के कारण मानवता के अस्तित्व पर आने वाले संकट से आज का विश्व बार-बार दहल जाता है।
मानव इतना स्वार्थी, आत्मकेन्द्रित तथा भोग-लालसा से पीड़ित हो चुका है कि उसके पास जीवन सम्बन्धी कोई श्रेष्ठ दृष्टिकोण तथा विश्व-कल्याण सम्बन्धी कोई सक्रिय गम्भीर योजना का अभाव दिखाई देता है। आज का मनुष्य केवल देह की इकाई बन कर रह गया है, उसके हृदय के द्वार बन्द हो गए है, उसका आध्यात्मिक एवं चेतनात्मक विकास अवरुद्ध हो गया है, वह भीतर से खाली है, उसके मन में सच्चा सुख और सच्ची शांति नहीं है, इन सबसे बढ़कर ऐसे महाघातक ध्वंसात्मक शस्त्रों को जन्म दे रहा है जिससे पृथ्वी पर उसका अस्तित्व ही शेष न रहे। नैतिक संकट तो आपातकाल जैसा बन चुका है। ऐसे में राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी उषा बहन जी द्वारा लिखी गई यह पुस्तक एक दिव्य औषधि की तरह मन की समस्त क्लांति को मिटाकर उसे नवीन आध्यात्मिक शक्ति से सम्पन्न करती है। इसके अध्ययन से व्यक्ति चेतना के उच्चतम सोपानों में विचरण करते हुए शाश्वत प्रकाश पुंज सर्वोच्च सत्ता परमात्मा के साथ का अनुभव करते हुए सुख, शांति और आनंद की अनुभूति करते-करते पावनता की राह पर चलते-चलते अपनी मंजिल पा लेता है।
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