प्राक्कथन
मूनान रंगमंच की जन्मस्थली रहा है। प्राबीन काल में गूनानी वास्तु एवं मूति जिल्य ने आने वाले बास्तुकारों और मूतिकारों के लिए आदर्श मानदण्ड का कार्य किया है। यूनानी संस्कृति ने सम्पूर्ण विश्व संस्कृति और सभ्यता के विकास पर अपना अपूर्व प्रभाव डाला है। पांचवी चोची शताब्दी ईसा पूर्व का समय यूनानी संस्कृति के इतिहास का स्वर्ण युग था, जिग संस्कृति की निर्माता स्वयं यूनानी जनता थी। प्राचीन यूनानी भाषा ने आधुनिक भाषाओं को अनगिनित वैज्ञानिक एव पारिभाषिक शब्द दिये हैं। "क्लासिकल युगीन मूतिकला" यूनानी मूतिकला के स्वर्ण युग की देन है। यूनानी मूर्तिकला में प्रारंभ से ही मानव रूप को प्रकृति के अन्य रूपों से अधिक महत्व दिया गया है। यूनानी मूर्तिकला अपने एकात्मकता के लिए प्रसिद्ध है तथा इनके रंगों में जो उभरकर वास्तु-कला में सामने आयी है वह मृतिकला में चार चांद लगा देती है। स्वतंत्र रूप से बड़ी मूतिया जो बास्तुकला से जुड़ी है अपना एक अलग ही अनूठापन प्रदर्शित करती है। यूनानो मृतिकला में मानव प्रमुख है। उसके रूप को किसी भी अनावश्यक अलंकरण या आभूषण से सजाने की आवश्यकता महसूस नहीं की गयी। अन्य युगों की तरह क्लासिकल युग में भी इसो सिद्धान्त को मानकर मानव को कला का केन्द्र विन्दु मान लिया गया जो यूनानी मूर्तिकला की विशेषता है। क्लासिकल युग में एकल मूतियां अधिक प्रचलित थी। यद्यपि वास्तु के अंगों के रुप में उत्कीर्ण फलक भी बनते थे। यूनानी चितक मानव रुप को ही सृष्टि की श्रेष्ठ देन मानते थे। आर्केइक काल में प्रथमतः मानव की एकल मूर्तियां बनी। यूनानी मूतिकार के लिए मानव रुप से बढ़कर प्रकृति में कोई आकृति प्रत्येक युग के अनुसार कथाओं की व्याख्या की है। सुविधा की दृष्टि से मैंने इस पुस्तक को एड अध्यायों में विभक्त किया है। यूनानी मूर्तिकला के विभिन्न पक्षों पर पाश्चात्य विद्वानों द्वारा कुस-न-कुछ समय-समय पर विचार व्यक्त किया जाता रहा है। हमारे विभाग में यह एक नवे विषय के रुप में सामने आया है जिस पर अध्ययन करना बोडी कठिनाई महसूस करा रहा है फिर भी अनने गुरुवर के प्रेरणास्वरूप इस विषय पर हमने अपना अध्ययन जारी रखा जिसके अन्तर्गत मैंने यूनान की क्लासिकल युगीन मूर्तिकला का अध्ययन किया और अपने इस छोटे से पंच को पष्ठ अध्यायों में विभक्त किया है। प्रथम अध्याय के अन्तर्गत यूनान के संक्षिप्त इतिहास को वर्णित करते हुए यहाँ की तत्का लीन धार्मिक स्थिति का भी उल्लेख किया गया है जिसमें यह भी दर्शाया गया है कि किन-किन कार्यों से सम्बन्धित कौन-कौन से देवी-देवताओं की कल्पना यूनानवासियों ने की साथ ही मूर्तिकला के बारे में उसकी संक्षिप्त व्याख्या भी प्रस्तुत है। द्वितीय अध्याय के अन्तर्गत आरंभिक क्लासिकल युग की मूर्तिकला को व्याख्याबित किया गया है। इसमें विशेषकर यूनान के एकोपोलिस तथा ओलम्पिया के ज्यूस मन्दिर पर बनी म तियों का उल्लेख किया गया है। तृतीय अध्याय के अन्तर्गत क्लासिकल मूर्तिकला का उल्लेख हुआ है जिसके अन्तर्गत मुख्य रूप के कुछ मूर्तिकारों जैसे-माइरान, पोलीक्लिटस, फिडियस तथा फोसिलस द्वार निर्मित मूर्तियों का वर्णन उल्लेखनीय है। चतुर्व अध्याय के अन्तर्गत उत्तर क्लासिकल मूर्तिकला को व्याख्यायित किया गया है
लेखक परिचय
जन्म इक्कीस अप्रैल सन् उन्नीस सौ सत्तावन । जन्म स्थान- याम जेवी तहसील-चन्दोली, वाराणसी । शिक्षा एम० ए० (कला इतिहास ) पो० एच० डी० (कला इतिहास विभाग) काशी हिन्दू विश्व विद्यालय, वाराणसी । विशेष- प्रकाशित कृतियाँ - प्रस्तुत पुस्तक "वलासिकल यूनानी मूर्तिकला" के अतिरिक्त, "खजुराहो की शैव एवं शाक्त प्रतिमाएँ" । प्रेल में- "मुण्डेश्वरी मन्दिर की कला" इसके अतिरिक्त कला विषयक कई शोध पत्र प्रकाशित होचुके हैं।
पुस्तक परिचय
क्लासिकल यूनानी मूतिकता, चौथी पांचवी ईसवी पूर्व में उत्कीर्ण यूनानी मूर्तिकला की परम उपलब्धि है। यह युग यूनानी कला-संस्कृति का स्वर्ण युग था। इस युग की एकल मूतियाँ डो सामान्यतः मानव परक है; यूनानी कला वैशिट्य का अनुपम उदाहरण है। यूनानी कलाकारों ने अपनी मान्यता के अनरूप मानव अंकन को विशेष महत्व दिया है जिनमें वीरोचित पौरुष प्रदर्शन का सफलतम अंकन है, उनकी देव मूर्तियाँ भी मानव अंकन के आधार पर उत्कीर्ण हुई हैं। इस युग की मूर्तिकला को आरम्भिक क्लासिकल, क्लासिकल, और उत्तर क्लासिकल तीन वर्गो में विभक्त किया गया है। प्रत्येक युग की विषयगत उपलब्धियों को यथा साध्य पाठकों तक पहुंचाने का प्रयत्न किया गया है। साथ ही यूनानियों द्वारा प्रेरणा ग्रहण करने के लिए किन-किन देवताओं की उद्भावना की गयी तथा उनके अंकन में किस कलात्मक्ता का समावेश किया गया है वस्तुत्तः सभी पक्षों को उजागर करने का सद्भयास किया गया है। आशा है प्रस्तुत पुस्तक पाठकों के लिए उपयोग सिद्ध होगी ।
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