'भारतीय संस्कृति का वैश्विक स्वरूप' के लेखन का मुख्य उद्देश्य भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रचार-प्रसार को दर्शाना था। तीसरी शताब्दी ईस्वी पुर्व से लेकर बारहवीं - तेरहवीं शताब्दी ईस्वी तक लगभग सम्पूर्ण एशिया महाद्वीप भारतीय संस्कृति से ओत-प्रोत रहा है। दक्षिण में श्रीलंका, दक्षिण पूर्व में म्यांमार थाईलैंड, कम्पुचिया, लाओस, वियतनाम, इंडोनेशिया एवं मलेशिया तथा पश्चिमोत्तर में अफगानिस्तान, मध्य एशिया, चीन, तिब्बत, नेपाल एवं भूटान जैसे देशों का भारत से सांस्कृतिक संबंध एक हजार वर्षों से भी अधिक काल तक बना रहा। इनमें इंडोनेशिया एवम् मलेशिया ने दसवीं शती ईस्वी में इस्लाम को स्वीकार कर लिया शेष सभी राष्ट्र आज भी भारतीय धर्म एवं संस्कृति के वाहक बने हुए हैं। चीन से बौद्ध धर्म कोरिया एवं कोरिया से जापान जा पहुँचा। उपरोक्त सभी राष्ट्र धर्म, भाषा, लिपि, कला एवं स्थापत्य कला आदि सभी क्षेत्रों में भारत के ऋणी रहे। इनकी अर्थव्यवस्था एवं समाजिक संरचना पर भी भारत का गहन प्रभाव पड़ा। प्रस्तुत पुस्तक में इन सभी तथ्यों पर सविस्तार प्रकाश डाला गया है।
मेरे शिष्य डॉ अभय कुमार, सहायक प्राध्यापक, प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति व पुरातत्त्व विभाग, काशी हिन्दू विश्वशाखा एवं उनके शोध छात्र श्री मुरलीधर ने हिन्दी भाषी पाठकों तक इस पुस्तक को पहुचाने हेतु कठिन परिश्रम किया है। जिसमें दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों में भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार को स्थान दिया गया है।
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