अपनी कोई निसफ सदी की रचना-यात्रा पर पर नजर डालता हूँ, तो लगता है, समय-समय पर साहित्य की अलग-अलग विधाओं में मेरा मन रमता रहा है। पर कहानी से मेरा रिश्ता कुछ अलग सा है। कहानियाँ मेरे लिए ऐसे अंतरंग दोस्तों की तरह हैं जो दुखी-सुखी क्षणों में सीझे हुए चुपचाप साथ चले आते हैं। और देर तक साथ बैठ, बहुत सी कही-अनकही बातों के तार छेड़ देते हैं।
इस तरह बहुत उदास अकेलेपन और भीतर-भीतर विश्वासों के टूटते चले जाने के इस यंत्रणापूर्ण समय में, अंदर से बाहर, बाहर से अंदर तक आवाजाही करती मेरी ये कहानियाँ कंधे पर हाथ धरे, चुपचाप पास बैठकर धीमे-धीमे बतियाती, दुख हलकाती रही हैं।
इनमें हादसे हैं। हादसों की तकलीफें हैं। गुस्सा है, आँसू हैं तो जीवन के बहुत-बहुत प्रेमल क्षण, कोमल अनुभूतियाँ, आस्था और विश्वास की शीतल छाँह और मेरे कुछ एकांतिक मूड्स भी, जो शायद कहानियों के अलावा कहीं और इस कदर खुले ही नहीं। इनमें ऐसा बहुत कुछ है जो जीवन से फिसलकर सीधे कहानियों में चला आता है। और शायद यही चीज है जो मेरी कहानियों को औरों से अलगाती है। इसीलिए मेरी कहानियों के बहुत से पाठकों का कहना है, "मनु जी, आपकी कहानियों का यही अनौपचारिक अंदाज हमें पसंद है। आप अपने साथ बहा ले जाते हैं और एक बार पढ़ने के बाद आपकी कहानियाँ हमेशा के लिए हमारे साथ हो लेती हैं।
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