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आधुनिक हिंदी कविता का इतिहास- History of Modern Hindi Poetry

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Specifications
Publisher: Vani Prakashan
Author Nandkishore Nawal
Language: Hindi
Pages: 553
Cover: HARDCOVER
9x6 inch
Weight 720 gm
Edition: 2023
ISBN: 9788196102739
HBS835
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Book Description
पुस्तक परिचय
पिछले दिनों हिंदी साहित्य के एक-दो इतिहास-ग्रंथ निकले हैं। वे एक तो सर्वेक्षणात्मक हैं और दूसरे, प्रत्यक्ष अनुभव के आधार पर रचित नहीं होने के कारण गलत तथ्यों से भरे हुए हैं। एकाध विधा-विशशेषज्ञ का इतिहास भी निकला है। उसे भी हम सही अर्थों में इतिहास नहीं कह सकते, क्योंकि वह संकुचित दृष्टि से लिखा गया है। चूँकि सहस्राधिक वर्षों में हिंदी साहित्य का अत्यधिक विस्तार हो गया है, इसलिए पूरे इतिहास की रचना करना किसी एक लेखक के लिए संभव नहीं है। दूसरे, कि किसी भी विधा में अनेक प्रकार के रचनाकार होते हैं, इसलिए किसी बनी-बनाई धारणा के आधार पर इतिहास नहीं लिखा जा सकता। उसके लिए विधा-विशेष का व्यापक अनुभव और दृष्टि का मुक्त होना आवश्यक है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के साक्ष्य से हम जानते हैं कि लोक-मंगल जैसे व्यापक प्रतिमान से भी हिंदी साहित्य के साथ पूरा न्याय नहीं हुआ। साहित्य का इतिहास पूरा नहीं, तो अलग-अलग विधाओं का प्रत्येक पीढ़ी में लिखा जाना चाहिए। नया इतिहास रचनाकारों में से नए ढंग से चयन करता है, उन्हें नया क्रम प्रदान करता है और अपने नए एवं व्यापक दृष्टिकोण के द्वारा, जो मात्र साहित्यिक ही हो सकता है, नए निष्कर्षों पर पहुँचता है, जिससे नए साहित्य को बल प्राप्त होता है। रेने वेलेक ने जोर देकर कहा है कि साहित्यिक इतिहास को इतिहास भी होना चाहिए और साहित्य भी। यह तभी संभव है, जब इतिहास में उचित आलोचनात्मक विश्लेषण का समावेश हो, पर इस सावधानी के साथ कि उस पर आलोचना हावी न हो जाए। डा. नवल ने आधुनिक हिंदी कविता और कवियों पर अनेक पुस्तकें लिखी हैं और इस बार उन्होंने एक बड़ी योजना को हाथ में लेकर उसे सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। विश्वास है, इस पुस्तक से गुजरनेवाले पाठक भी यह महसूस करेंगे।

लेखक परिचय
जन्म : 12 सितंबर, 1937 (चाँदपुरा, वैशाली)। शिक्षा: एम.ए., पीएच.डी. (हिंदी, पटना विश्वविद्यालय)। पटना विश्वविद्यालय (हिन्दी विभाग) में प्राध्यापक। 31 अक्टूबर, 1998 को यूनिवर्सिटी प्रोफेसर के रूप में अवकाश प्राप्त। अब स्वतंत्र लेखन और संपादन। मौलिक कृतियाँ : हिंदी आलोचना का विकास, समकालीन काव्य-यात्रा, मुक्तिबोध : ज्ञान और संवेदना, मुक्तिबोध की कविताएँ : बिंब-प्रतिबिंब, निराला : कृति से साक्षात्कार, मैथिलीशरण, कविता: पहचान का संकद निकष, तुलसीदास। उल्लेखनीय संपादित कृतियाँ: निराला रचनावली (आठ खंड), दिनकर रचनावली (पाँच खंड-काव्य), स्वतंत्रता पुकारती, अँधेरे में ध्वनियों के बुलबुले, संधि-वेला, पदचिह्न, हिंदी साहित्य : बीसवीं शती, हिंदी की कालजयी कहानियाँ, मैथिलीशरण संचयिता, नामवर संचयिता, हिंदी साहित्यशास्त्र, जनपद : विशिष्ट कवि । मुख्य संपादित पत्रिकाएँ : 'आलोचना' (सहसंपादक के रूप में), कसौटी । वर्तमान पता : 301, राजप्रिया अपार्टमेंट, बुद्धा, कॉलोनी, पटना-800 001 निधन : 12 मई, 2020

भूमिका
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने साहित्य का इतिहास-दर्शन प्रस्तुत करते हुए लिखा है : "प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिंब होता है तब यह निश्चित है कि जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य के स्वरूप में परिवर्तन होता चला जाता है। आदि से अंत तक इन्हीं चित्तवृत्तियों की परंपरा को परखते हुए साहित्य-परंपरा के साथ उनका सामंजस्य दिखाना ही 'साहित्य का इतिहास' कहलाता है। जनता की चित्तवृत्ति बहुत-कुछ राजनीतिक, सामाजिक, सांप्रदायिक तथा धार्मिक परिस्थिति के अनुसार होती है। अतः कारण स्वरूप इन परिस्थितियों का किंचित् दिग्दर्शन भी साथ ही साथ आवश्यक होता है।" इस उद्धरण का महत्त्व अलग से बतलाने की जरूरत नहीं, तथापि एक-दो बातों का उल्लेख आवश्यक है। जहाँ तक साहित्य में जनता की चित्तवृत्ति के प्रतिबिंबित होने का सवाल है, ज्ञातव्य है कि चूँकि जनता और साहित्य के बीच में एक चीज और आती है, रचनाकार, इसलिए उसके मनोमुकुर से अपवर्तित होकर ही उक्त प्रतिबिंब साहित्य में उतरता है। यह अपवर्तन उस प्रतिबिंब को विकृत बना देता है, बल्कि कभी-कभी तो अनपहचाना ही नहीं, उसके बिलकुल उलट, जबकि रचनाकार का आशय उलट नहीं होता। दूसरी बात यह कि जनता की चित्तवृत्ति में जब परिवर्तन होता है, तो साहित्य में भी परिवर्तन होता है, यह इतिहास में काल-विभाजन को अनिवार्य बना देता है। बिना उसके इतिहास की कोई सुसंगत धारणा निर्मित नहीं हो सकती। आचार्य शुक्ल के काल-विभाजन में त्रुटियाँ हो सकती हैं, लेकिन उनकी मान्यता में कोई त्रुटि नहीं है।

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