हिन्दी के मूर्धन्य आलोचक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल सूर, तुलसी और जायसी की कृतियों के सम्पादक और उनके सन्दर्भ में विस्तृत विवेचना करने वाले प्रथम आचार्य हैं। उनके इस रस विवेचन से भक्ति के क्षेत्र में प्रतिष्ठित कवियों के कवि-कर्म और लोक संग्रही व्यक्तित्व का उद्घाटन हुआ है। सूर, तुलसी और जायसी से सन्दर्भित यह आलोचना उनकी कृतियों की भूमिका के रूप में तो प्रस्तुत ही हुई, 'त्रिवेणी' नाम से स्वतंत्र रचना के रूप में भी सामने आयी, जिसका व्यावहारिक समीक्षा के क्षेत्र में अप्रतिम महत्त्व है।
'सूर' के सन्दर्भ में उनका यह लेख सर्वप्रथम 'भ्रमरगीत सार' की भूमिका के रूप में प्रस्तुत हुआ। 'भ्रमरगीर सार' सूरसागर के एक विशेष सन्दर्भ को ही प्रस्तुत करता है। अतः भूमिका में सूर के सन्दर्भ में कवि ने उन तथ्यों को ध्यान में रखा है परन्तु शुक्ल जी के अन्तर्मन में कहीं न कहीं सूर के सन्दर्भ में विस्तृत विवेचना की भावना थी। इसका मुख्य कारण सम्भवतः यह रहा होगा कि शुक्ल जी ने 'भ्रमरगीत सार' की भूमिका में वर्णित लेख में सूर के कवि कर्म को ही केन्द्र में रखा है और सूर की भक्ति को उतना महत्त्व नहीं दिया है। साथ ही सूर के कृष्ण के लोकानुरंजक रूप को महत्त्व देकर सूर को श्रृंगार और वात्सल्य का सर्वश्रेष्ठ कवि तो सिद्ध किया लेकिन एकदेशीयता से कुछ विरोधी स्वर भी उठे। इसलिए शुक्ल जी ने सूर की विस्तृत विवेचना को उचित समझा और भक्ति को केन्द्र में रखकर पुनः समीक्षा प्रारम्भ की। दुर्भाग्यवश शुक्ल जी का देहावसान हो गया। अतः इसके दो ही निबन्ध लिखे जा सके। भक्ति का विकास और श्री वल्लभाचार्य। सूर के सन्दर्भ में शुक्ल जी की मान्यताओं की आधारभूत सामग्री इन दोनों निबन्धों में मिलती है।
प्रस्तुत संग्रह में शुक्ल जी के दोनों परवर्ती निबन्ध और 'भ्रमरगीत सार' में प्रस्तुत भूमिका का संकलन किया गया है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल प्रभृति आलोचक प्रवर द्वारा प्रवर्तित सिद्धान्तों और उनके निकष पर महाकवि सूरदास की वह समीक्षा सूर सन्दर्भ में उपलब्ध सहस्रों ग्रंथों के बावजूद आज भी ऐतिहासिक और प्रासंगिक दोनों हैं क्योंकि परवर्ती विद्वानों ने शुक्ल जी के सूत्र वाक्यों का अधिकांशतः उत्प्रेरण किया है। सूर केन्द्रित समीक्षा के पर्यालोचन में आज भी शुक्ल जी की मान्यतायें न केवल प्रासंगिक हैं वरन् प्रेरक भी हैं।
'सभा' के परवर्ती संस्करणों में शुक्ल जी की कुछ टिप्पणियों का उल्लेख भी मिलता है। प्रस्तुत कृति में उन टिप्पणियों को भी अविकल रूप से प्रस्तुत किया जा रहा है। ये टिप्पणियाँ कृति के अध्ययन में सहायक होंगी।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist